क्या है भारत में हलाल सर्टिफिकेशन का चक्रव्यूह? क्या इस पैसे से होती है आतंकवादियों की मदद?

आजकल हलाल, बायकाट हलाल, हलाल सर्टिफाइड, हलालोनॉमिक्स और हलाल सम्बंधित कई सारे शब्द और लेख आपको सोशल मीडिया पर देखने को मिल जाएँगे। क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि आखिर ये सब क्या है? 
कुछ ऐसे ही सवाल मेरे मन में भी उठे जब मैंने आईटीसी कंपनी द्वारा निर्मित आशीर्वाद आटे के पैकेट पर एक हरे रंग का लोगो देखा। इसमें 100% वेजिटेरियन लोगो के ठीक पास एक हरे रंग का लोगो था, जिसमें शायद उर्दू में कुछ लिखा हुआ था। 


तब मुझे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया और मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या अब अपने देश में आटा भी “हलाल सर्टिफाइड” आने लगा। लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले मैंने जब इंटरनेट पर खोजबीन की तो इस बात की पुष्टि हुई कि वह हलाल सर्टिफिकेशन का ही लोगो है। 
इस बारे में जब मैंने इंटरनेट पर थोड़ा और खोजबीन की और ज्यादा जानकारी के लिए मैंने संगम टॉक्स के यूट्यूब चैनल पर सरदार रवि रंजन सिंह की हलालोनॉमिक्स पर वीडियो देखा, जिसके बाद मुझे सब कुछ समझ आया।


जिसे आप भी नीचे दिए लिंक पर देख सकते हैं…
यह वीडियो देखने के बाद मेरे मन में कुछ और सवाल उठे। फिर क्या था आने वाले कुछ दिनों में मुझे जब भी समय मिलता मैं हलाल या हलाल सर्टिफिकेशन सम्बन्धी वीडियो या लेख जो भी देखने पढ़ने को मिला, देखता पढ़ता चला गया और उन्हीं वीडियोज, लेखों द्वारा प्राप्त हुई जानकारी को मैं यहाँ आप लोगों से शेयर करने जा रहा हूँ। क्योंकि मुझे लगता है कि आज के समय में यह जानना हर हिन्दुस्तानी के लिए बहुत ही जरूरी है।
सबसे पहले हलाल मांस के बारे में जानने की कोशिश करते हैं..



प्रश्न: हलाल मांस क्या है?
उत्तर: सरल भाषा में कहें तो हलाल मांस मुस्लिम समुदाय द्वारा एक निश्चित नियमों के द्वारा जानवरों को मारने का एक तरीका है। जिस जानवर को मारा जाना है, उसका सिर मक्का/काबा की तरफ होना चाहिए और इस्लामिक शब्द बिस्मिल्लाह का उच्चारण मारने के समय अनिवार्य है। यहाँ जानवर को एक ही झटके में नहीं मारा जाता, बल्कि यह एक धीमी प्रक्रिया है, जिसमे उसे तड़पाकर मारा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वध केवल मुस्लिम कसाई द्वारा ही किया जा सकता है।
प्रश्न: झटका मांस क्या है?
उत्तर: झटका का अर्थ है कि जानवर को एक ही वार द्वारा तुरंत मार दिया जाता है, जैसा कि नाम से पता चलता है “एक ही झटके में”। इसमें जानवर को बहुत कम पीड़ा पहुंचाई जाती है। इस मामले में जानवर के सिर को किसी विशेष दिशा में करने या किसी भी तरह की प्रार्थना का उच्चारण करने का कोई विशिष्ट नियम नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी वध कर सकता है।
जैसा कि पहले प्रश्न के उत्तर में उल्लेख किया गया है, केवल एक मुस्लिम ही हलाल वध सकता है, अगर सभी हलाल खाने लगे तो सभी गैर-मुस्लिम कसाई व्यवसाय से बाहर हो जाएँगे और उनमें से अधिकांश पहले से ही हो चुके हैं।
प्रश्न: यदि हर कोई झटका खाना शुरू कर दे तो क्या यह मुस्लिम कसाई को व्यवसाय से बाहर नहीं करेगा?
उत्तर: बिल्कुल नहीं। वे अभी भी अपने विशेष ग्राहक समूह के लिए हलाल मांस का उत्पादन कर सकते हैं वहीं झटका मांस की माँग गैर-मुस्लिम कसाई को व्यवसाय में रखेगी।
जैसे-जैसे मैं इसके बारे में जानता गया इस विषय में मेरी रूचि इसलिए बढ़ी क्योंकि “हलाल” शब्द का अर्थ इससे कहीं अधिक गहरा है।
हलाल सर्टिफिकेशन समितियाँ
हलाल सिर्फ और सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। जैसा कि मैंने पहले बताया आटा भी हलाल सर्टिफाइड होता है। अब आप पूछेंगे वह कैसे? बड़ा ही सरल उत्तर है, इसमें भी वही धारणा है।


जब खेती के उपयोग में आने वाली भूमि, गेहूँ उगाने वाला किसान, गेहूँ की कटाई करने वाले मजदूर से लेकर मण्डियों तक पहुँचाना, फिर उसकी बस्तों में पैकिंग, बाद में उसे पीस कर आटे में परिवर्तित करना, वापस पैक कर के बाजार में ग्राहकों तक पहुँचाने का हर काम जब एक समुदाय विशेष के लोग ही करें, तब वह हलाल है, ऐसा मेरा मानना है।
यह पढ़ने और सुनने में बहुत ही हास्यास्पद लग रहा होगा क्यूँकि यह भारत में संभव नहीं है, वर्तमान समय में। इसीलिए यहाँ एंट्री होती है भारत में मौजूद हलाल सर्टिफिकेशन समितियों की। इनमें से कुछ के नाम मैंने नीचे दिए हैं।
Jamiat Ulama-E-Hind – http://halalhind.com/Jamiat Ulama-i-
Hind Halal Trust – https://www.jamiathalaltrust.org/
Halal India – https://halalindia.co.in/
Global Islamic Shariah Services – https://www.halalcertificationindia.com/
Halal Certification Services India Private Limited (HCS) – https://halalcertificate.in/
Halal Council of India – https://halalcouncilofindia.com/

हलाल इंडिया के कार्यकारी निदेशक मोहम्मद जिन्ना हलाल सर्टिफिकेशन के बारे में कहते हैं कि यह एक स्वच्छ आपूर्ति श्रृंखला और अनुपालन को दर्शाता है जो सोर्सिंग से लेकर निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं तक सब कुछ कवर करता है। उत्पाद किसी भी रसायन और अल्कोहल से मुक्त होना चाहिए, पशु व्युत्पन्न (जानवरों की चर्बी या कीड़ों से रंगा हुआ), हलाल सौंदर्य प्रसाधन भी दूध डेरिवेटिव और मोम से मुक्त होने चाहिए और उनका परीक्षण पशुओं पर नहीं होने चाहिए।

क्या है इस हलाल का गणित?

यह हलाल सर्टिफिकेशन समितियाँ भारत में मौजूद सभी छोटी-बड़ी कंपनियों के उत्पादों को हलाल सर्टिफिकेशन दे रही हैं, एक शुल्क के बदले। उदाहरण के रूप में कॉरनिटोज कंपनी को ही ले लीजिए।
कॉरनिटोज के भारत में कुल 59 उत्पाद हैं, जो आप उनकी वेबसाइट पर देख सकते हैं। यह सभी उत्पाद जमीअत उलमा-इ-हिन्द हलाल ट्रस्ट द्वारा सर्टिफाइड हैं और प्रमाण स्वरुप आपको जमीअत उलमा-इ-हिन्द हलाल ट्रस्ट का लोगो सारे उत्पादों के पैकेट्स पर दिख जाएगा। अब कॉरनिटोज कंपनी को प्राप्त हुए इस सर्टिफिकेशन के पीछे छुपे गणित पर एक नज़र डालते हैं।

जमीअत उलमा-इ-हिन्द हलाल ट्रस्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध फीस चार्ट के मुताबिक कॉरनिटोज को रजिस्ट्रेशन के लिए 20000.00 रुपए का भुगतान करना पड़ता है। उसके पश्चात प्रत्येक उत्पाद को सर्टिफाई करने के लिए 500.00 रुपए अलग से।
कुल 59 उत्पादों के पैकेट पर हलाल लोगो छापने के लिए 20000.00 रुपए और कन्साइनमेंट सर्टिफिकेशन के लिए 29500.00 रुपए, ऑडिट करने वालों के लिए 5000.00 रुपए (5 ऑडिटर्स के लिए) और इस सब के ऊपर 18% GST, यानी 18720.00 रुपए और जोड़ दें। तो कुल मिलकर हो गए 122720.00 रुपए। इसके बाद वार्षिक रिन्यूअल के समय 52510.00 रुपए और कोई भी नया उत्पाद सर्टिफाई करवाने के लिए 500.00 + 18% GST
अब दिखने में यह राशि कुछ ज्यादा बड़ी नहीं लगती, बड़ी लगे भी तो क्या, इस राशि का भुगतान तो कॉरनिटोज कर रही है। लेकिन यहाँ ये ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है कि ऐसे सभी शुल्कों को MRP में जोड़ कर गाहकों से ही वसूला जाता है। 
तो चलिए उसका भी गणित देख लेते हैं..

अगर कॉरनिटोज ने हर उत्पाद के पूरे वर्ष में 1000 यूनिट बनाए तो कुल मिला कर हो गए 59000 यूनिट और कॉरनिटोज द्वारा दी गई 122720.00 रुपए की राशि को 59000 में बाँट दें तो किसी भी एक उत्पाद को खरीदने वाले ग्राहक के हिस्से में आए 2 रुपए 8 पैसे।

क्या है हलाल का मकड़जाल?
अगर बात सिर्फ कॉरनिटोज तक ही सीमित रहती तो शायद किसी को फर्क नहीं पड़ता, परन्तु ऐसा नहीं है। भारत में मौजूद हर दूसरी छोटी-बड़ी कंपनी हलाल सर्टिफाइड हो चुकी है और बाकि भी होने के कगार पर हैं।
इसका अर्थ ये हुआ कि ऐसी हर एक कंपनी प्रत्येक वर्ष इन हलाल बोर्ड्स को एक बड़ी राशि का भुगतान कर रही है। इनमें से कुछ कम्पनियाँ जिनके बारे में मुझे पता चला उनके नाम और उनके द्वारा दी जाने वाली राशि का एक अनुमानित आँकड़ा मैं नीचे लिख रहा हूँ। यह आँकड़ा ऊपर प्रयोग किए गए गणित और फीस चार्ट के आधार पर है।
इनके इलावा भी और बहुत सारी कंपनियाँ हैं, उदाहरण के लिए…
Britannia, Parle, Hamdard, Hindustan Unilever Limited, Tata Chemicals Limited, India Gelatine and Chemicals Limited, Glaxo Smith Kline Consumer Healthcare, Iba, Banjara’s, Emami, Cavin-Kare, Morgain Group, Tejas Naturopathy, Indus Cosmeceuticals, Maja Healthcare, VCare Pharcos etc.

ये सभी कंपनियाँ हलाल सर्टिफाइड तो हैं परन्तु अपने उत्पादों पर अभी तक हलाल का लोगो नहीं छाप रहीं। यहाँ आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि एक आम व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग में आने वाली हर एक वस्तु हलाल सर्टिफाइड है और अब ये राशि 2 रुपए 8 पैसे से बढ़ कर कहीं ज़्यादा हो चुकी है, जो आप दे रहे हैं और वो भी बिना जाने।
इस प्रकार भारत में मौजूद ये चुनिन्दा हलाल सर्टिफिकेशन समितियाँ प्रत्येक वर्ष बड़ी ही आसानी से करोड़ों या शायद अरबों रुपए की आय का लाभ उठा रही हैं।

हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत क्यों?
एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर इन सारी कंपनियों को ज़रूरत क्या थी हलाल सर्टिफिकेशन लेने की? ज़्यादातर भारतीय कंपनियाँ अपने उत्पादों को विदेशों में निर्यात करती हैं। जब इन कंपनियों को किसी इस्लामिक देश में निर्यात करना होता है तब हलाल सर्टिफिकेशन लेना अनिवार्य है और यहीं से शुरुआत हुई उनके हलाल सर्टिफिकेशन की।
इस बात को ये कंपनियाँ बड़े गर्व से बतातीं हैं जब उसी समुदाय विशेष के लोग उनसे पूछते हैं। इसके चलते इन्हें थोड़ी-बहुत आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा, शायद इसीलिए हर एक हलाल सर्टिफाइड कंपनी ने अपने उत्पादों पर अभी तक हलाल का लोगो छापना चालू नहीं किया या जिन्होंने छापना चालू किया था, उन्होंने बंद कर दिया जैसे कि अशीर्वाद आटा।

अगर मैं भारत में मौजूद फ़ास्ट फ़ूड सेंटर्स , रेस्टोरेंट्स या होटल्स की बात करूँ जो हलाल परोसते हैं तो उनके मुताबिक केवल 5-7% ग्राहक ही आकर पूछते हैं कि उनके यहाँ हलाल परोसा जाता है कि नहीं, बाकि 93-95% ग्राहकों को ना तो कोई फर्क पड़ता है और ना ही उन्होंने कभी ये पूछा।
आश्चर्य की बात है कि सिर्फ इसी 5-7% ग्राहकों को बनाए रखने के लिए उन्होंने हलाल परोसना शुरू किया। लेकिन अगर इस देश के प्रधानमंत्री ताली या थाली बजाने को कहें, या दीप प्रज्वलित करने का निवेदन करें तो लोगों को लगता है कि उन्हें हिन्दू धर्म या मान्यताओं से जुड़े कार्य करने पर मजबूर किया जा रहा है।

यहाँ मैं ये बात भी बता दूँ कि अपने देश में अब एक होटल या रेस्टोरेंट को भी अलग से हलाल सर्टिफिकेशन लेना पड़ता है, सिर्फ हलाल सर्टिफाइड विक्रेताओं से खाद्य सामग्री लेना पर्याप्त नहीं है।
अब सवाल ये उठता है कि ये हलाल का पैसा आखिर जाता कहाँ है?
यहाँ सरदार रवि रंजन सिंह अपने सम्बोधन में कहते हैं कि इसका एक हिस्सा जिहाद में जाता है। यहाँ आपको जिहाद की बहुत सारी परिभाषाएँ मिल जाएँगी और ज्यादातर अच्छी ही मिलेंगी, तो जरा एक नज़र उस पर भी डाल लेते हैं।
“जिन कंपनियों के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इस्लामिक देशों में मौजूद हैं, उन्हें हलाल सर्टफिकेशन लेने के लिए एक निश्चित राशि दान करनी पड़ती है किसी चैरिटेबल संगठन को। लेकिन अपनी पसंद की नहीं। यहाँ भी हलाल समितियों द्वारा दी गई चैरिटेबल संगठनों की सूची को ही इस्तेमाल में लाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने इनमें से कुछ चैरिटेबल संगठनों को आतंकवादी समूह घोषित किया हुआ है।”
रवि रंजन सिंह
भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर ली गई राशि को जमीअत उलेमा-इ-हिन्द कहाँ खर्च करती है? 
जमीअत उलेमा-इ-हिन्द आतंकवाद के मामलों में आरोपी एक समुदाय विशेष के लोगों को लगातार कानूनी समर्थन प्रदान करता है और इस बात की पुष्टि वह स्वयं अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की गई सूची से करते हैं। यह सूची उर्दू में है।

ये तो हुई एक हलाल समिति की बात, लेकिन भारत में मौजूद बाकी सारी हलाल समितियाँ अपनी आय का क्या करती हैं, क्या उसके बारे में किसी को कुछ पता है?
PM CARES Fund में कितना पैसा जमा हुआ और उसे कहाँ खर्च किया गया, ये सबको जानना है, लेकिन ये हलाल समितियाँ सर्टिफिकेशन के नाम पर जो पैसा लेती हैं, वो कहाँ जाता है ये कोई पूछेगा? और अगर पूछ भी लिया तो क्या वो कुछ बताएँगे?
अंत में हलाल के बारे में मेरे मन में कुछ अहम सवाल कौंध रहे हैं, जिन्हें मैं आपके सामने रख रहा हूँ। अगर किसी के पास उत्तर हो तो अवश्य बताएँ..

अगर हलाल सर्टिफिकेशन के माध्यम से हलाल समितियों का काम सिर्फ उत्पादन की गुणवत्ता के स्तर को और ऊपर लेकर जाना है या ये तय करना है कि उनमें किसी विशिष्ट रसायनों का उपयोग ना हुआ हो, तो क्या इसकी याचिका Food Safety and Standards Authority of India aka FSSAI से नहीं की जा सकती थी?
जिस देश ने अल्पसंख्यकों के विकास, रोजगार, उनकी धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए न जाने कितनी लाभकारी योजनाएँ चलाईं, देश के संविधान में ना जाने कितने प्रावधान जोड़े, क्या वहाँ उनके खान-पान से सम्बंधित FSSAI थोड़ी सी अतिरिक्त जाँच नहीं करती?
जिस प्रकार हर साल FSSAI अपनी वेबसाइट पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करती है, जिसमें उनकी आय से लेकर उनके खर्च किए गए एक-एक रुपए का पूरा हिसाब होता, क्या ये हलाल समितियाँ भी अपनी वार्षिक आय का हिसाब इस देश के नागरिकों को देंगी?
UK में सैकड़ों शरिया अदालतें हैं और उसी को कुछ दिन पहले AIMIM पार्टी ने भारत में भी प्रचलित करने की कोशिश की, ठीक उसी तरह क्या ये हलाल समितियाँ भी FSSAI के लिए एक चुनौती है?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब की तलाश हर सच्चे हिंदुस्तानी को होगी या अवश्य होनी ही चाहिए। यदि आपको जागरूक करने का मेरा यह छोटा सा प्रयास पसंद आया हो तो मुझे कमेंट करके अवश्य बताएं साथ ही इसे आगे और अधिक से अधिक लोगों को शेयर भी जरूर करें।
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