बॉलीवुड पर अबतक का सबसे सनसनीखेज खुलासा, ये रिपोर्ट उड़ा देगी आपके होश

बॉलीवुड फिल्मों पर इस्लाम को महिमामण्डित करने और हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने के आरोप तो अक्सर लगते रहे हैं। इसके लिए बॉलीवुड पर दाऊद इब्राहिम के प्रभाव को भी जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। कहा जाता है कि बॉलीवुड की फिल्में हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा ज़हर भर रही हैं। इस शिकायत की सच्चाई जानने के लिए अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के एक प्रोफेसर ने एक अध्ययन किया है, जिसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। 


आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने बीते छह दशक की 50 बड़ी फिल्मों की कहानी को अपने अध्ययन में शामिल किया और पाया कि बॉलीवुड एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीते करीब 50 साल से लोगों के दिमाग में यह बात भर रहा है कि हिंदू और सिख दकियानूसी होते हैं। उनकी धार्मिक परंपराएं बेतुकी होती हैं। मुसलमान हमेशा नेक और उसूलों पर चलने वाले होते हैं। जबकि ईसाई नाम वाली लड़कियां बदचलन होती हैं। हिंदुओं में कथित ऊंची जातियां ही नहीं, पिछड़ी जातियों के लिए भी रवैया नकारात्मक ही है। यह पहली बार है जब बॉलीवुड फिल्मों की कहानियों और उनके असर पर इतने बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है।

ब्राह्मण, ठाकुर भ्रष्ट, वैश्य बेइमान कारोबारी


आईआईएम के इस अध्ययन के अनुसार फिल्मों में 58 फीसदी भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62 फीसदी फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74 फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है। यहां तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।


हैरानी इस बात की है कि यह लंबे समय से चल रहा है और अलग-अलग समय की फिल्मों में इस मैसेज को बड़ी सफाई से फिल्मी कहानियों के साथ बुना जाता है। अध्ययन के तहत रैंडम तरीके से 1960 से हर दशक की 50-50 फिल्में चुनी गईं। इनमें A से लेकर Z  तक हर शब्द की 2 से 3 फिल्में चुनी गईं। ताकि फिल्मों के चुनाव में किसी तरह पूर्वाग्रह न रहे। अध्ययन के नतीजों से साफ झलकता है कि फिल्म इंडस्ट्री किसी एजेंडे पर काम कर रही है।

बजंरगी भाईजान देखने के बाद अध्ययन
प्रोफेसर धीरज शर्मा कहते हैं कि “मैं बहुत कम फिल्में देखता हूं। लेकिन कुछ दिन पहले किसी के साथ मैंने बजरंगी भाईजान फिल्म देखी। मैं हैरान था कि भारत में बनी इस फिल्म में ज्यादातर भारतीयों को तंग सोच वाला, दकियानूसी और भेदभाव करने वाला दिखाया गया है। जबकि आम तौर पर ज्यादातर पाकिस्तानी खुले दिमाग के और इंसान के बीच में फर्क नहीं करने वाले दिखाए गए हैं।” यही देखकर उन्होंने एक तथ्यात्मक अध्ययन करने का फैसला किया।
वो यह जानना चाहते थे कि फिल्मों के जरिए लोगों के दिमाग में गलत सोच भरने के जो आरोप लगते हैं क्या वाकई वो सही हैं? यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि फिल्में नौजवान लोगों के दिमाग, व्यवहार, भावनाओं और उनके सोचने के तरीके को प्रभावित करती हैं। यह देखा गया है कि फिल्मों की कहानी और चरित्रों के बर्ताव की लोग निजी जीवन में नकल करने की कोशिश करते हैं।


पाकिस्तान और इस्लाम का महिमामंडन
प्रोफेसर धीरज और उनकी टीम ने 20 ऐसी फिल्मों को भी अध्ययन में शामिल किया जो पिछले कुछ साल में पाकिस्तान में भी रिलीज की गईं। उनके अनुसार ‘इनमें से 18 में पाकिस्तानी लोगों को खुले दिल और दिमाग वाला, बहुत सलीके से बात करने वाला और हिम्मतवाला दिखाया गया है। सिर्फ पाकिस्तान की सरकार को इसमें कट्टरपंथी और तंग नजरिए वाला दिखाया जाता है।

ऐसे में सवाल आता है कि हर फिल्म भारतीय लोगों को पाकिस्तानियों के मुकाबले कम ओपन-माइंडेड और कट्टरपंथी सोच वाला क्यों दिखा रही है? इतना ही नहीं इन फिल्मों में भारत की सरकार को भी बुरा दिखाया जाता है।
पाकिस्तान में रिलीज़ हुई ज्यादातर फिल्मों में भारतीय अधिकारी अड़ंगेबाजी करने वाले और जनता की भावनाओं को नहीं समझने वाले दिखाए जाते हैं।’ फिल्मों के जरिए इमेज बनाने-बिगाड़ने का ये खेल 1970 के दशक के बाद से तेजी से बढ़ा है। जबकि पिछले एक दशक में यह काम सबसे ज्यादा किया गया है। 1970 के दशक के बाद ही फिल्मों में सलीम-जावेद जैसे लेखकों का असर बढ़ा, जबकि मौजूदा दशक में सलमान, आमिर और शाहरुख जैसे खान हीरो सक्रिय रूप से अपनी फिल्मों में पाकिस्तान और इस्लाम के लिए सहानुभूति पैदा करने वाली बातें डलवा रहे हैं।


बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर
अध्ययन के तहत फिल्मों के असर को जानने के लिए इन्हें 150 स्कूली बच्चों के एक सैंपल को दिखाया गया। प्रोफेसर धीरज शर्मा के अनुसार 94 प्रतिशत बच्चों ने इन फिल्मों को सच्ची घटना के तौर पर स्वीकार किया।’ यह माना जा सकता है कि फिल्म वाले पाकिस्तान, अरब देशों, यूरोप और अमेरिका में फैले भारतीय और पाकिस्तानी समुदाय को खुश करने की नीयत से ऐसी फिल्में बना रहे हों। लेकिन यह कहां तक उचित है कि इसके लिए हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों को गलत रौशनी में दिखाया जाए?

वैसे भी इस्लाम को हिंदी फिल्मों में जिस सकारात्मक रूप से दिखाया जाता है, वास्तविक दुनिया में उनकी इमेज इससे बिल्कुल अलग है। आतंकवाद की ज्यादातर घटनाओं में मुसलमान शामिल होते हैं, लेकिन फिल्मों में ज्यादातर आतंकवादी के तौर पर हिंदुओं को दिखाया जाता है। जैसे कि शाहरुख खान की ‘मैं हूं ना’ में सुनील शेट्टी एक आतंकी संगठन का मुखिया बना है जो नाम से हिंदू है।
सलीम-जावेद सबसे बड़े जिहादी 
सलीम जावेद की लिखी फिल्मों में हिंदू धर्म को अपमानित करने की कोशिश सबसे ज्यादा दिखाई देती है। इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है। पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कॉमेडियन आदि ही दिखाया जाता है। ज्यादातर हिंदू किरदारों की जातीय पहचान पर अच्छा खासा जोर दिया जाता था। इनमें अक्सर बहुत चालाकी से हिंदू परंपराओं को दकियानूसी बताया जाता था। इस जोड़ी की लिखी तकरीबन हर फिल्म में एक मुसलमान किरदार जरूर होता था जो बेहद नेकदिल इंसान और अल्ला का बंदा होता था। इसी तरह ईसाई धर्म के लोग भी ज्यादातर अच्छे लोग होते थे।

सलीम-जावेद की फिल्मों में मंदिर और भगवान का मज़ाक आम बात थी। मंदिर का पुजारी ज्यादातर लालची, ठग और बलात्कारी किस्म का ही होता था। फिल्म “शोले” में धर्मेंद्र भगवान शिव की आड़ लेकर हेमा मालिनी को अपने प्रेमजाल में फँसाना चाहता है, जो यह साबित करता है कि मंदिर में लोग लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं। इसी फिल्म में एके हंगल इतना पक्का नमाजी है कि बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढ़ने चल देता है कि उसने और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए।
दीवार फिल्म का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला ही बार-बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है। फिल्म “जंजीर” में भी अमिताभ बच्चन नास्तिक हैं और जया, भगवान से नाराज होकर गाना गाती है, लेकिन शेरखान एक सच्चा मुसलमान है। फिल्म ‘शान” में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साधु के वेश में जनता को ठगते हैं, लेकिन इसी फिल्म में “अब्दुल” ऐसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है। फिल्म “क्रान्ति” में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीम खान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है।

अमर-अकबर-एंथोनी में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है लेकिन उनके बच्चों (अकबर और एंथोनी) को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई बेहद नेकदिल इंसान है। कुल मिलाकर आपको सलीम-जावेद की फिल्मों में हिंदू नास्तिक मिलेगा या फिर धर्म का उपहास करने वाला। जबकि मुसलमान शेर खान पठान, डीएसपी डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेविड जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे।
हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो, लेकिन अबकी बार ज़रा गौर से देखिएगा केवल “सलीम-जावेद” की ही नहीं, बल्कि “कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट” जैसे ढेरों कलाकारों की कहानियों का भी यही हाल है। “सलीम-जावेद” के दौर में फिल्म इंडस्ट्री पर दाऊद इब्राहिम का नियंत्रण काफी मजबूत हो चुका था। हम आपको बता दें कि सलीम खान सलमान खान के पिता हैं, जबकि जावेद अख्तर आजकल सबसे बड़े सेकुलर का चोला ओढ़े हुए हैं।


अब तीनों खान ने संभाली जिम्मेदारी
मौजूदा समय में तीनों खान एक्टर फिल्मों में हिंदू किरदार करते हुए हिंदुओं के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। इनमें सबसे खतरनाक कोई है तो वो है आमिर खान। आमिर खान की पिछली कई फिल्मों को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि सभी का मैसेज यही है कि भगवान की पूजा करने वाले धार्मिक लोग हास्यास्पद होते हैं। इन सभी में एक मुस्लिम कैरेक्टर जरूर होता है जो बहुत ही भला इंसान होता है। “पीके” में उन्होंने सभी हिंदू देवी-देवताओं को रॉन्ग नंबर बता दिया। लेकिन अल्लाह पर वो चुप रहे।


पहलवानों की जिंदगी पर बनी “दंगल” में हनुमान जी की एक तस्वीर तक नहीं मिलेगी। जबकि इसमें पहलवानों को मांस खाने और एक कसाई का दिया प्रसाद खाने पर ही जीतते दिखाया गया है। सलमान खान भी इसी मिशन पर हैं, उन्होंने “बजरंगी भाईजान” में हिंदुओं को दकियानूसी और पाकिस्तानियों को बड़े दिलवाला बताया। शाहरुख खान तो “माई नेम इज़ खान” जैसी फिल्मों से काफी समय से इस्लामी जिहाद का काम जारी रखे हुए हैं।
संस्कृति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश
हॉलीवुड की फिल्में पूरी दुनिया में अमेरिकी संस्कृति, हावभाव और लाइफस्टाइल को पहुंचा रही हैं। जबकि बॉलीवुड की फिल्में भारतीय संस्कृति से कोसों दूर हैं। इनमें संस्कृति की कुछ बातों जैसे कि त्यौहार वगैरह को लिया तो जाता है लेकिन उनका इस्तेमाल भी गानों में किया जाता है। लगान जैसी कुछ फिल्मों में भजन वगैरह भी डाले जाते हैं लेकिन उनके साथ ही धर्म का एक ऐसा मैसेज भी जोड़ दिया जाता है कि कुल मिलाकर नतीजा नकारात्मक ही होता है।

फिल्मों के बहाने हिंदू धर्म और भारतीय परंपराओं को अपमानित करने का खेल बहुत पुराना है। सिनेमा के शुरुआती दौर में ये होता था लेकिन खुलकर नहीं। लेकिन 70 के दशक के दौरान ज्यादातर फिल्में यही बताने के लिए बनाई जाने लगीं कि मुसलमान रहमदिल और नेक इंसान होते हैं, जबकि हिंदुओं के पाखंडी और कट्टरपंथी होने की गुंजाइश अधिक होती है।
आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा की इस स्टडी में होने वाले खुलासों ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है और साथ ही बीजेपी के कद्दावर नेता डॉक्टर सुब्रमणियम स्वामी के उस दावे को भी सही साबित कर दिया, जिसमे उन्होंने कहा है कि बॉलीवुड में दाऊद का कालाधन लगता है और दाऊद के इशारों पर ही बॉलीवुड का इस्लामीकरण किया जा रहा है।

डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी समेत कई हिन्दू संगठन भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि एक साजिश के तहत मोटी कमाई का जरिया बन चुके बॉलीवुड में “हिन्दू” कलाकारों को “किनारे” किया जा रहा है और मुस्लिम हीरो, गायक आदि को ज्यादा से ज्यादा काम दिया जा रहा है. पाकिस्तानी कलाकारों को काम देने के लिए भी दाऊद गैंग बॉलीवुड पर दबाव बनाता है।
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1 thought on “बॉलीवुड पर अबतक का सबसे सनसनीखेज खुलासा, ये रिपोर्ट उड़ा देगी आपके होश”

  1. Bahot kaam ki chij aap ne hum tak pahuchaya haiiske liye hum aap ke aabhari hai, aur aap ki har ek sabd sach hai

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