अन्नदाता कंगाल, बिचौलिए मालामाल, जिम्मेदार कौन?

दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि सबको रोटी देने वाला हमारे कृषि प्रधान देश का अन्नदाता किसान गांवों से शहरों की ओर पलायन क्यों कर रहा है? क्या कारण है की आजकल कोई भी खेती नहीं करना चाहता? आखिर क्यों सबका अन्नदाता किसान गांव में अपनी खेती बाड़ी और जमीन जायदाद रहते शहरों में रोजी रोटी के लिए महज 8-10 हजार रुपए की मजदूरी करने को विवश है?
क्या कारण है की गांव में खेती किसानी करने वाला अन्नदाता अपनी जन्मभूमि और अपनों को छोड़ शहर में एक गुमनाम और मजदूरों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर है?
क्या कारण है की अनाज के व्यापारी तो मालामाल हो रहे हैं लेकिन अनाज उगाने वाला किसान फटेहाल और कर्ज में डूबा है?
आइए आज हम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
खेती से दूर भागने का सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है वो है किसान को उसकी उपज का सही मूल्य न मिलना।
किसान खून पसीना और लागत लगाकर धान गेंहू की खेती करता है जिसे व्यापारी 18-20 रुपए किलो के भाव से खरीद ले जाते हैं और शहर में 45-50 रुपए किलो बेचते हैं। अब किसान को तो उसकी लागत और मेहनत के बराबर भी नहीं मिला और बिचौलिए ने सिर्फ इधर से उधर करके दुगुना तिगुना कमा लिया।
अब आप सोचिए कि सभी दैविक आपदाओं से लड़ते, दिन रात एक करके फसल उगाने वाले उस अन्नदाता किसान को क्या मिला? उसके हाथ क्या लगा?
यदि लागत जोड़ी जाए तो किसान को तो उसकी लागत के बराबर मूल्य भी नहीं हासिल हुआ। जबकि सारा रिस्क तो उस किसान ने उठाया। सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, आंधी तूफान, चक्रवात, फसल रोग, कीड़े, मकोड़े आदि हर तरह की आपदा से किसान ने कितने महीनों उस फसल को बचाकर रखा, लेकिन बड़े अफसोस की बात है की उस बेचारे किसान को उसकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिला।
यहां एक सवाल ये उठाया जा सकता है की किसान ने अपनी फसल या अनाज सरकारी फसल क्रय केंद्र पर क्यों नहीं बेचा?
इसका जवाब ये है की सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या किसान के उपज की लागत और मेहनत का सही मूल्यांकन है? और अधिकतर सरकारी क्रय केंद्र किसानों के घरों से इतनी अधिक दूरी पर हैं की वहां तक अपनी उपज को लेकर जाने में बहुत अधिक किराया भाड़ा लग जाता है, जिसके कारण किसानो को अपने दरवाजे पर ही अपना अनाज व्यापारियों के हाथों बेचना ज्यादा सही लगता है।
यदि सरकार हर गांव में क्रय केंद्र खोल सकती तो शायद बिचौलियों द्वारा किसानों का शोषण बंद हो सकता था। लेकिन सरकार को अपनी उपज बेचने में एक पेंच ये भी है की तुरंत भुगतान नहीं मिलता। और पहले से ही कर्ज में डूबे किसान को तो तुरंत पैसे चाहिए। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर व्यापारी किसान की उपज को औने पौने दामों में खरीद लेते हैं।
आज स्थिति यह है की आप किसी भी अनाज और गल्ले के व्यापारी को देखिए तो वो दिन रात मालामाल हो रहा है। बड़े ही दुर्भाग्य की बात है की अनाज व्यापारी और बिचौलिए लाखों करोड़ों में खेल रहे हैं और अनाज पैदा करने वाला अन्नदाता खुद रोटी रोटी को मोहताज है।
आप किसी भी छोटे से गल्ला व्यापारी या अनाज बेचने वाले दुकानदार को देख लीजिए, उसके पास कोई कमी नहीं होगी। वो दिन रात मालामाल हो रहा है, क्योंकि वो अन्नदाता किसान को ठग कर मालामाल हो रहा है।
अनाज बेचकर मालामाल हो रहे बिचौलियों के बच्चे महंगे स्कूलों में अच्छी शिक्षा पा रहे हैं, महंगी गाड़ियों से चल रहे हैं, महंगे कपड़े पहन रहे हैं, वहीं अनाज के असली मालिक अन्नदाता का परिवार फटेहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है।
यह हमारे कृषि प्रधान देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है की अनाज का असली मालिक, सबको अन्न देनेवाला किसान ही फटेहाल, मोहताज और कर्ज में डूबा है।
सबका पेट भरने वाला खुद आज रोटी को मोहताज होकर शहरों की ठोकरें खा रहा है, मजदूरी कर रहा है। यह हम सब के लिए बड़े ही शर्म की बात है। 
आज हम सब महंगाई बढ़ने से परेशान हैं। पिछले साल 20 रुपए किलो बिकने वाला आटा आज दुगुना होकर 40 रुपए किलो तक पहुंच गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं की इसका लाभ कौन ले रहा है? इससे किसकी जेबें भर रही हैं, कौन मालामाल हो रहा है? 
कायदे से तो अनाज के दाम बढ़ने का सीधा फायदा अनाज उगाने वाले किसान को ही मिलना चाहिए, लेकिन बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है की इसका सारा लाभ बिचौलिए ही लेते हैं, किसान की स्थिति आज भी जस की तस है। किसान का गेहूं आज भी 18-19 रुपए किलो ही बिक रहा है।
बड़े अफसोस की बात है की अनाज के दाम मार्केट में तो पिछले साल से दुगुने हो चुके हैं लेकिन उस अनाज के असली मालिक अन्नदाता किसान को उसका कोई फायदा न मिलकर सारा लाभ बिचौलिए ले रहे हैं। ये तो सरासर अन्याय है की दिन रात एक करके अनाज उगाने वाला फटेहाल ही रहे और बिचौलिए मालामाल होते रहें।
यह सब देखते हुए क्या कोई भी किसान खेती करना चाहेगा? ऐसी मेहनत का क्या फायदा जिसका लाभ कोई बिचौलिया उठाए?
यही असली कारण है जिसकी वजह से आज सबको रोटी देने वाला हमारा अन्नदाता खेती किसानी छोड़ रोजी रोटी के लिए शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी करने को विवश है।
दोस्तों, आशा है की इस लेख की शुरुआत में उठाए गए सभी सवालों के जवाब आप सबको मिल ही गए होंगे, लेकिन यहां कुछ सवाल सरकार से…
क्या कोई भी सरकार हमारे अन्नदाता की मजबूरी को समझ पायेगी? क्या सरकार कोई ऐसी व्यवस्था लाएगी जिससे अनाज उगाने वाले अन्नदाता को उसकी उपज का उचित दाम मिले? क्या सरकार किसान और जनता के बीच दलालों और बिचौलियों की भूमिका को खत्म कर पाएगी? व्यापारियों और पूंजीपतियों को बढ़ावा देने वाली सरकारें हमारे अन्नदाता की स्थिति को कब समझेंगी?
सरकार की ये कैसी नीति है, क्या सिस्टम है की अन्नदाता अपनी उपज का सही दाम न मिलने से परेशान, जनता महंगाई से बेहाल और बीच में बिचौलिए मालामाल? 
सरकार किसकी है? किसान की, जनता की या बिचौलियों, व्यापारियों और पूंजीपतियों की? 
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