हिन्दुत्व के लॉजिक में और अन्य में क्या फर्क है?

इस दुनिया में वो कौन से लोग हैं जो समस्याएं और अराजकता पैदा करते हैं?
किन लोगों की वजह से पूरी दुनिया की अमन-शांति खतरे में है?
वो लोग जो करोड़ों देवी देवताओं को मानते और पूजते हैं या वो लोग जो ये कहते हैं कि दुनिया में सिर्फ एक ही है, बस यही सच है इसके अलावा सब झूठ है और जो इसको मानते हैं वो अपने हैं बाकी सब काफिर (दुश्मन) हैं, उन्हें दुनिया में रहने का कोई हक नहीं है।
हिंदुत्व का लॉजिक क्या है?
हिंदू धर्म में तो पहाड़ की भी पूजा होती है,
मिट्टी की मूर्ति की भी पूजा होती है, सूर्य की,
चांद की सबकी पूजा होती है। यहां तो धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश सबकी पूजा होती है।
हिंदू धर्म तो कहता है कि ‘कण कण में भगवान है’
मतलब हर चीज, हर इंसान में भगवान है, इसलिए किसी से भी मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे मंदिर में भगवान के सामने करते हैं।
क्या इससे अच्छी फिलासफी या विचारधारा दुनिया में कोई और हो सकती है?
क्या हिन्दू धर्म की इस विचारधारा वाला व्यक्ति किसी को नुकसान पहुंचा सकता है या किसी अन्य धर्म के लोगों से लड़ाई झगड़ा या विवाद की स्थिति पैदा होने की कोई संभावना बनती है?
क्या हिंदू धर्म की ये विचारधारा हमें कहीं से भी धार्मिक कट्टरता सिखाती है या अन्य धर्म के लोगों को मारने काटने की शिक्षा देती है?
हिन्दुत्व की उदारवादी विचारधारा में तो जीवित या निर्जीव सब में भगवान का रूप देखा जाता है। हिंदुत्व में तो सर्व धर्म समभाव की भावना है। यहां तो ‘जीयो और जीने दो’ की भावना है। यहां तो कट्टरता बिलकुल है ही नहीं।
हिंदू तो मजारों पर भी दीया, अगरबत्ती जलाते हैं, चादर चढ़ाते हैं। लेकिन क्या अन्य लोग भी कभी मंदिर में जाकर पूजा करते हैं?
एक कट्टर विचारधारा है, जिसमें ये है की बस हमारा ही धर्म सबसे ऊपर है, हमारा ही धर्म सही है, बाकी सब झूठ है। बस हमारे धर्म को मानने वाले लोग ही अपने हैं, बाकी सब काफिर (दुश्मन) हैं। 
देखा जाए तो सही मायने में यह कट्टर विचारधारा ही सारी समस्याओं की जड़ है। 
आप अपनी विचारधारा को जबरदस्ती दूसरों पर कैसे थोप सकते हैं?
जो आपकी विचारधारा और धर्म को न माने वो दुश्मन है? उसे दुनिया में जीने का कोई हक ही नहीं? उसे आप खत्म कर देंगे?
ये कौन सा लॉजिक है? ये कैसी विचारधारा है?
ये तो पूरी तरह कट्टरतावादी, तानाशाही और हिंसात्मक विचारधारा कही जायेगी, और स्वाभाविक सी बात है की ऐसी विचारधारा को मानने वाले लोग आतंकवादी, हिंसात्मक और हमलावर तो होंगे ही? 
क्या ऐसी धार्मिक कट्टरता वादी विचारधारा को मानने वाले लोग अमन पसंद हो सकते हैं? 
‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’
अब आप देखिए वो कौन सा धर्म है जो इस बात को सबसे ज्यादा जस्टिफाई करता है?
सबसे बड़ी बात तो ये है कि हिन्दुत्व की विचारधारा में यदि जरा सी भी धार्मिक कट्टरता होती, दूसरे धर्मों के प्रति नफरत और हिंसा का स्थान होता तो आज हिंदुस्तान में इतनी बड़ी संख्या में दूसरे धर्म के लोग अमन चैन से नहीं रह रहे होते। 

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