devraha baba ki jivani: भारत की धरती इतनी पवित्र है कि इसमें कई दिव्य संतों एवं महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनके बारे में आप जानकर चकित रह जायेंगे। ऐस ही एक दिव्य संत थे देवरहा बाबा (devraha baba), जिन्हें आप योगी, तपस्वी, महात्मा, दिव्यात्मा मान सकते हैं।
देवरहा बाबा (devraha baba) उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सलेमपुर तहसील के मईल गॉव में स्थित सरयू नदी के किनारे मचान में निवास करते थे। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने अपने सांतवे अवतार श्री राम को त्याग कर बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया था।
देवरहा बाबा (devraha baba) एक ऐसे योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे कि डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने उनके समय-समय पर दर्शन कर खुद को धन्य महसूस किया था. वे पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में भी पारंगत थे।
सिद्धि योग में जो शक्तियॉ हैं, उनका वर्णन पुराणों में विस्तार से है, लेकिन इसका जीता-जागता उदाहरण आपको देवरहा बाबा (devraha baba) के रूप में मिल जाता है।
देवरहा बाबा (devraha baba) बहुत ही सहज, सरल और शांत प्रवृत्ति के थे। देवरहा बाबा को बहुत ज्ञान था और उनसे मिलने के लिए देश दुनिया के बड़े-बड़े लोग आते थे।
सहज, सरल और सादा जीवन जीने वाले देवरहा बाबा (devraha baba) अपने भक्तों से बिना कुछ पूछे उनके मन की सारी बातें जान लेते थे। इसे आप चमत्कार कह सकते हैं या फिर उनकी साधना शक्ति।
देवरहा बाबा का जन्म (birth of devraha baba)
देवरहा बाबा (devraha baba) के जन्म के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे. बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल भी मानते हैं।
देवरहा बाबा (devraha baba) का जन्म एक अनसुलझा रहस्य ही रह गया, क्योंकि बाबा ने किसी भी इंटरव्यू या अपने किसी भी भक्त को अपने जन्म के बारे में कभी नहीं बताया। लेकिन जब बार-बार उनसे पूछा जाता था तो मुस्कुराकर वे यही जवाब दे दिया करते थे कि ‘बच्चा मेरी उम्र तुम नहीं जान पाओगे।’
आप यह बात सुनकर चौंक गये होंगे कि कोई इंसान इतने वर्षों तक कैसे जी सकता है? लेकिन यही प्रश्न जब उनके भक्त उनसे पूछते थे तो वे जवाब देते थे कि ‘बेटा यह सब अष्टांग योग व खेचरी मुद्रा का कमाल है।’ और इसमें एक हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि वो कभी भोजन नहीं करते थे। वे यमुना का पानी पीते थे और दूध, शहद व श्रीफल के रस का सेवन करते थे।
श्रद्धालुओं के कथनानुसार देवरहा बाबा (devraha baba) अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे. प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।
श्रद्धालुओं को बड़ा आश्चर्य होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है. लोगों के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे. उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे. चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होती थी।
लोगों में विश्वास है कि देवरहा बाबा (devraha baba) जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया।
देवरहा बाबा (devraha baba) हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे. कहा जाता है कि, वे किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे. यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे. उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी. खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे. लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था. वह अवतारी पुरुष थे. उनका निर्जीव वस्तुओं पर भी नियंत्रण था।
अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा (devraha baba) ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई. अत्यंत सहज, सरल और सुलभ देवरहा बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी खुद को आश्वस्त महसूस करते थे।
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था. देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।
1987 की बात है, जून का महीना था. वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा (devraha baba) का डेरा जमा हुआ था. अधिकारियों में अफरातफरी मची थी. प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था. प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए.
भनक लगते ही देवरहा बाबा (devraha baba) ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा. वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।
अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह आदेश दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता।
इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं. आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से खबर आ गई कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है. कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा. इसे आप क्या कहेंगे? चमत्कार या संयोग?
देवरहा बाबा (devraha baba) की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे. उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं. उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे. सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे।
योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था. ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे. कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते.
ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही. धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे. उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं. जन कल्याण के लिए वृक्षों, वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवों के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा (devraha baba) से आशीर्वाद लेने गईं. उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया. वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया।
इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं.
देवरहा बाबा (devraha baba) महान योगी और सिद्ध संत थे. उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे. आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था. मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया.
उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था. बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे. उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया. दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया. श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
ऐसा माना जाता है कि देवरहा बाबा (devraha baba) को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।
चाहे जितनी ठंडी या चाहे जितनी गर्मी हो देवरहा बाबा (devraha baba) कभी कपड़ा नहीं पहनते थे। वे हमेशा बाघ की छाल को लपेटे रहते थे।
यह तो सिर्फ भक्तों द्वारा देखी गयी घटना है, लेकिन बताया जाता है कि इससे पहले कई सैकड़ों वर्षों तक उन्होंने हिमालय में तपस्या की है, जिसका कोई अनुमान नहीं है।
देवरहा बाबा (devraha baba) की ख्याति इतनी थी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया. दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।
प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना. यह सन 1911 की बात है. जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को ब्रितानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी. उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं।
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे. बाबा देखते ही बोल पड़े, यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।
बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे. उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी. खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।
उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं. और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने खुले हाथों से लुटाई. जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया. वितरण में कोई विभेद नहीं। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा.
मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है. कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी. याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह।
देवरहा बाबा की बलिष्ठ कदकाठी भी थी. लेकिन देह त्यागने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता. लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे.
देवरिया के मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे. कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।
देवरहा बाबा ने खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही लुटा दिया. उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी.
शाहपुर, बेलघाट (गोरखपुर) निवासी एनआरआई अभिमन्यु सिंह बताते हैं कि- “मुझे बचपन में देवरहा बाबा के हाथों से प्रसाद प्राप्त हुआ था। उनका चेहरा मुझे आज भी याद है। मेरा ननिहाल बन पिपरा में है, मैं उनकी मचान के ठीक नीचे अपने बाबूजी के कंधे पर बैठा था और देवरहा बाबा अपने हाथों से मुझे प्रसाद दिए थे।”
देवरहा बाबा की मृत्यु (death of devraha baba)
अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है. मौसम तक का मिजाज बदल गया. यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं. मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड़ निकलने पर आमादा है।
19 तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी. आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना नदी जैसे समुंदर को मात देने के लिए उतावली थी। लहरों की उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगी और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर चेतना शून्य हो गया। प्रकृति के साथ-साथ भक्तों की अपार भीड़ भी हाहाकार करने लगी।
देवरहा बाबा (devraha baba) भगवान राम के भक्त थे। उनके मुख से हमेशा राम नाम निकलता था। बाबा भक्तों को राममंत्र की दीक्षा दिया करते थे। उनका कहना था कि-
“‘एक लकड़ी हृदय को मानो, दूसर राम नाम पहिचानो। राम नाम नित उर पे मारो, ब्रम्हा दिखे संशय न जानो।’
देवरहा बाबा (devraha baba) का कहना था कि जीवन को पवित्र बनाये बिना ईमानदारी, सात्विकता, सरसता के बिना भगवान नहीं मिलते। इसलिए सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध व पवित्र बनाओ।
देवरहा बाबा ने 34 साल पहले ही कर दी थी राम मंदिर निर्माण की भविष्यवाणी
देवरहा बाबा (devraha baba) ने आज से 34 साल पहले ही अयोध्या में राम मंदिर बनने की भविष्यवाणी कर दी थी जो आखिरकार सच साबित हुयी.
तत्कालीन पीएम राजीव गांधी 6 नवंबर 1989 की सुबह 8.40 बजे विशेष विमान द्वारा बाबा से मिलने वृंदावन के देव आश्रम पहुंचे थे. उनके साथ तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री नटवर सिंह, गृह मंत्री बूटा सिंह तथा यूपी के सीएम एनडी तिवारी भी थे. इस दौरान वे बाबा के आश्रम में 2 घंटे रहे तथा बाबा से बातचीत कर आशीर्वाद लिया था. उसी बातचीत के बाद राजीव गांधी राम मंदिर के शिलान्यास पर सहमत हुए थे, जबकि यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी इसके खिलाफ थे.
देवरहा बाबा (devraha baba) राम मंदिर निर्माण का सर्व सहमति से रास्ता निकालना चाहते थे और संतों की ओर से उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से ये कहा था कि राम मंदिर अवश्य बनेगा. देवरहा बाबा (devraha baba) गौसेवा व गौरक्षा के पुरजोर समर्थक थे. उन्होंने राजीव गांधी को देश की समृद्धि हेतु गौसेवा और गौरक्षा का मंत्र भी दिया था.
राम मंदिर को लेकर राजीव गांधी की सहमति पर बाबा इतने प्रसन्न हुए थे कि उन्होंने राजीव गांधी के सिर पर अपने हाथों से पगड़ी पहनाया था जिसे पहनकर राजीव गांधी बेहद खुश होते हुए आश्रम से बाहर निकले थे. इस भेंट के बाद ही 10 नवंबर को राम मंदिर शिलान्यास की कवायद शुरू हुई. तब प्रभु श्रीराम की मूर्ति से 192 फुट दूर शिलान्यास करने पर सहमति बनी थी.
–साभार सोशल मीडिया