पं. हरिशंकर तिवारी को लेकर उनके गांव के इस प्रोफेसर ने कह दी ये बात

Harishankar Tiwari News in Hindi: गोरखपुर में पूर्व मंत्री स्वर्गीय पंडित हरिशंकर तिवारी की 88 वीं जयंती पर 5 अगस्त को उनकी प्रतिमा लगाने के लिए बन रहे चबूतरे को प्रशासन ने कुछ दिनों पूर्व बुलडोजर से गिरा दिया था। जिसके बाद यह मुद्दा गरमा गया।

पूर्वांचल के एक बाहुबली नेता और पूर्व मंत्री स्वर्गीय पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) एक विवादास्पद राजनीतिक व्यक्तित्व रहे हैं। इस लेख में हम इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा करेंगे, जिसमें मूर्ति स्थापना की पृष्ठभूमि, इसके पीछे के सामाजिक संदेश और इससे जुड़े विवाद शामिल हैं।

पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) का परिचय

पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर में अनेक उतार-चढ़ाव देखे। वे चिल्लूपार विधानसभा से सात बार विधायक रहे और उत्तर प्रदेश की सरकार में मंत्री भी रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने बाहुबल और राजनीतिक कूटनीति के माध्यम से अपना साम्राज्य स्थापित किया।

Harishankar Tiwari की पहचान पूर्वांचल के बाहुबलियों में होती थी। उनका नाम अक्सर विवादों में रहा, और उनके कार्यों को लेकर अनेक आरोप भी लगे। उनके नेतृत्व में कई लोगों ने अपने अधिकारों का हनन अनुभव किया, जिससे उनके व्यक्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं।

गौरतलब है कि देश की राजनीति में एक समय ऐसा था जब इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) मोर्चा खोले हुए थे. इस दौरान छात्र जेपी के साथ और इंदिरा के खिलाफ विरोध कर रहे थे. लेकिन पूर्वांचल में अलग ही कहानी चल रही थी. पूर्वांचल में माफिया, शक्ति और सत्ता की लड़ाई शुरू हो चुकी थी. यहां के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र कट्टों और बंदूकों की नाल साफ कर रहे थे.

यही वो वक्त था जब पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) की एंट्री होती है. लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस क्षेत्र के युवाओं की दिलचस्पी किताबों को छोड़ कट्टों और खतरनाक हथियारों में होने लगी.

जेल में रहते हुए हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) चुनाव जीते और साल 1997 से लेकर 2007 तक वे लगातार यूपी में मंत्री बने रहे. वह 22 सालों तक चिल्लूपार सीट से विधायक रहे.

Harishankar Tiwari को केवल 2 बार हार का सामना करना पड़ा. वह पहली बार साल 2007 में और दूसरी बार साल 2012 में चुनाव हारे. भाजपा, सपा, बसपा सभी सरकारों में वे कई मंत्रालयों को संभालते रहे.

मूर्ति स्थापना का मामला

हाल ही में पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) की मूर्ति उनके पैतृक गांव टांडा में स्थापित की जाने वाली थी। हालांकि, प्रशासन ने इसे नियमों के खिलाफ बताते हुए रोक दिया। इस निर्णय के पीछे 28 वर्ष अमेरिका में रहे उनके गांव के ही निवासी बीएचयू के प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी का विरोध था, जिन्होंने प्रशासन को पत्र लिखकर सार्वजनिक जमीन पर इस मूर्ति स्थापना का विरोध किया था।

देखें वीडियो-

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प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है कि एक अपराधी की मूर्ति लगाकर समाज में गलत संदेश दिया जा रहा है। उनका मानना है कि इससे युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

प्रशासन की कार्रवाई

प्रशासन ने Harishankar Tiwari की मूर्ति स्थापित करने के लिए बनाए गए चबूतरे को हटाने का निर्णय लिया। यह कार्रवाई प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी की शिकायत के आधार पर की गई। प्रशासन का तर्क था कि यह कार्रवाई नियमों के अनुसार की गई है, और किसी भी प्रकार की अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

प्रशासन की इस कार्रवाई ने गांव में राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया। कुछ लोग इसे सही मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजनीति का एक हिस्सा मानते हैं।

समाज पर मूर्ति के प्रभाव

प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी का कहना है कि मूर्ति स्थापना का मुद्दा केवल एक मूर्ति लगाने का नहीं है, बल्कि यह समाज में अपराध और राजनीति के संबंधों पर भी प्रकाश डालता है। जब समाज में ऐसे व्यक्तियों की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं, तो यह संदेश जाता है कि अपराधियों को सम्मानित किया जा रहा है।

वे आगे कहते हैं कि इससे युवा पीढ़ी को गलत संदेश मिलता है, और वे इसे अपने आदर्श मानने लगते हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे समाज में नैतिकता का हनन होता है।

राजनीतिक दृष्टिकोण

राजनीति में हमेशा से ही ऐसे मुद्दों का उपयोग किया जाता रहा है। पंडित हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) की मूर्ति स्थापना का मामला भी राजनीतिक हितों से जुड़ा हुआ है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दलों ने इस मुद्दे को उठाते हुए योगी सरकार पर बदले की भावना से कार्य करने का आरोप लगाया है। यह राजनीतिक खेल समाज में और भी विभाजन पैदा करने का काम कर रहा है।

प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी का दृष्टिकोण

प्रोफेसर वशिष्ठ त्रिपाठी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) को आदर्श नहीं मानते। उनका मानना है कि हरिशंकर तिवारी का व्यक्तित्व विवादास्पद रहा है, और उन्हें समाज में आदर्श के रूप में स्थापित नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) के खिलाफ उनके पास ठोस प्रमाण हैं, और वे इस बात को साबित करने के लिए तैयार हैं। उनका मानना है कि समाज को ऐसे व्यक्तियों से दूरी बनानी चाहिए।

समाज में नैतिकता का संकट

प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी का कहना है कि यह मामला एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। क्या हम ऐसे व्यक्तियों को सम्मानित करना चाहते हैं, जिनका इतिहास विवादास्पद रहा है? समाज में नैतिकता का संकट बढ़ता जा रहा है। जब समाज में अपराधियों को सम्मान दिया जाता है, तो यह युवा पीढ़ी को गलत दिशा में ले जाता है।

वे आगे कहते हैं कि समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि ऐसे व्यक्तियों की मूर्तियां स्थापित करने से हम किस प्रकार का संदेश भेज रहे हैं। यह केवल एक व्यक्ति की पहचान नहीं, बल्कि समाज की पहचान भी है।

निष्कर्ष

गोरखपुर में पंडित हरिशंकर तिवारी की मूर्ति स्थापना का मामला एक गंभीर मुद्दा है, जो समाज में नैतिकता, राजनीति और अपराध के संबंधों को उजागर करता है। प्रशासन की कार्रवाई और प्रोफेसर वशिष्ठ त्रिपाठी का विरोध यह दर्शाता है कि समाज में अभी भी ऐसे लोग हैं, जो सही और गलत के बीच का अंतर समझते हैं।

प्रोफेसर राजा वशिष्ठ त्रिपाठी कहते हैं कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समाज में केवल उन व्यक्तियों को सम्मान दिया जाए, जो वास्तव में आदर्श हैं। इसके लिए हमें जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, ताकि युवा पीढ़ी सही मार्ग पर चल सके।

*Disclaimer– यह लेख प्रोफेसर वशिष्ठ त्रिपाठी द्वारा एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू पर आधारित है, ये लेखक के निजी विचार नहीं हैं।

देखिए प्रोफेसर वशिष्ठ त्रिपाठी का एक न्यूज चैनल को दिया गया इंटरव्यू-

https://youtu.be/3C87g1wyBbM?si=qKlG1jjrPVaa-OL8

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