अभी हाल ही में 10th और 12th क्लास के रिजल्ट्स आयेे हैं। 90% या अधिक स्कोर करने वाले बच्चों के अभिभावक बड़े गर्व से उनका नाम और फोटो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। बहुत से लोगों ने CBSE बोर्ड परीक्षा में अपने पुत्र-पुत्रियों को मिले गौरवशाली अंक साझा किए हैं। भला अपनी संतान की उल्लेखनीय सफलता पर किस माता-पिता को गर्व नहीं होगा? उनकी छाती चौड़ी नहीं होगी? ऐसे सभी सफल बच्चों और उनके माता-पिता को बहुत बहुत बधाई।
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लेकिन उनका क्या जिन बच्चों ने 62% या उससे कम स्कोर किया? उनके अभिभावकों के पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं है क्या? ऐसे छात्र और छात्राएँ जो इस परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला सके, अपने माता-पिता की आशाओं और आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर सके, वे निश्चित ही निराश और हताश होंगे। हो सकता है उन्हें तरह-तरह के तानों का भी सामना करना पड़ रहा हो।
यह पोस्ट ऐसे ही छात्र-छात्राओं और अभिवावकों के लिए है।
पिछले साल दिवंगत अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की एक फ़िल्म आयी थी ‘छिछोरे’। उस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे अभिभावकों द्वारा बच्चों से बहुत ज्यादा expectation रखना घातक हो सकता है। फ़िल्म में पिता बने सुशान्त अपने IIT की तैयारी कर रहे होनहार बेटे की सफलता के प्रति इतने अधिक आश्वस्त होते हैं कि रिजल्ट आने से पहले ही पार्टी तक कि तैयारी कर चुके होते हैं। शैम्पेन की बोतल तक पहले से ही खरीदकर रख ली जाती है।
ये सब देखकर उनके बेटे पर और भी अधिक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है जिससे वो बहुत ज्यादा मेन्टल प्रेशर फील करने लग जाता है। फिर जब रिजल्ट आता है और उसका सेलेक्शन नहीं होता है तो वह बिल्डिंग से कूदकर सुसाइड करने की कोशिश करता है। उसके बाद जब वो ICU में पड़ा जिंदगी और मौत से जूझ रहा होता है तब उसके पेरेंट्स को ये फील होता है कि उन्होंने गलत किया।
1987 की बात है। Italy के रोम नगर में Athletics की World Championships चल रही थीं। 1500 मी की दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व कश्मीरा सिंह कर रहे थे। 1500 मीटर की दौड़ में ट्रैक के कुल पौने चार चक्कर लगाने होते हैं। यानी पहले राउंड में कुल 300 मीटर और बाकी 3 राउंड में कुल 1200 मी।
दौड़ शुरू हुई…कश्मीरा सिंह ने दौड़ शुरू होते ही बढ़त बना ली। ट्रैक पे लगभग 40 से ज़्यादा धावक दौड़ रहे थे। पर कश्मीरा सिंह सबसे आगे थे।
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कमेंटेटर ने बताया….India का Athlete सबसे आगे चल रहा है…
3rd Round तक कश्मीरा सिंह सबसे आगे चले। पर कमेंटेटर उनकी इस दौड़ से कतई इम्प्रेस नहीं था। वो पीछे चल रहे किन्ही दो अन्य धावकों पे निगाह रखे हुए था।
बहरहाल चौथा और आखिरी राउंड शुरू हुआ। एक धावक बढ़ के कश्मीरा सिंह से आगे आ गया और उसके बाद कश्मीरा सिंह उस भीड़ में खो गए और फिर कभी नहीं दिखे । बाद में जब लोगों ने Record Book देखी तो पता चला की शायद कश्मीरा सिंह 40 में से 38वें स्थान पे रहे।
ज़िन्दगी की दौड़ में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप पहले राउंड में आगे हैं कि नहीं। फर्क इस बात से पड़ता है कि Finishing लाइन पे सबसे पहले कौन पहुंचा। उस दौड़ में सोमालिया के Abdi Bile फिनिशिंग लाइन पे सबसे पहले पहुंचे और उन्होंने Gold Medal जीता।
इतिहास में नाम Abdi Bile का दर्ज है न कि कश्मीरा सिंह का।
मित्रों…अभी तो ज़िन्दगी की Marathon दौड़ का बमुश्किल पहला राउंड पूरा हुआ है… फिनिशिंग लाइन पे न जाने कौन पहुंचेगा सबसे पहले। शुरू में बहुत तेज़ दौड़ने वाले ज़रूरी नहीं की इसी दमखम से लगे रहे।
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सबसे आगे वो आएगा जो धैर्य-पूर्वक लगा रहेगा, जो बिना हार माने दौड़ता रहेगा। वो जिसकी निगाह लक्ष्य पे रहेगी। जीतना ज़रूरी भी नहीं, मज़ा दौड़ पूरी करने में भी है ।
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ज़िन्दगी की दौड़ में अक्सर 40% वाले भी जीतते है इसलिये दौड़ते रहो…रुकना मत
और एक अंतिम विनती कि आप अपने बच्चो की तुलना किसी और से न करे…क्योकि हर एक बच्चा अद्वित्य है, अद्भुत है, अतुल्य है।
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