यूपी पंचायत चुनाव के आरक्षण पर हाईकोर्ट का फैसला, यहाँ जानिए अब क्या होगा गणित?


उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण प्रक्रिया के लिए योगी सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए अखिलेश सरकार के फैसले को पलटकर 1995 के आधार पर सीटों के आरक्षण के लिए आवंटन करने का नियम तय किया था. सीएम योगी के इस दांव से लंबे समय से पंचायतों पर काबिज सियासी परिवारों के वर्चस्व को तोड़ने की रणनीति मानी जा रही थी, लेकिन अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2015 के आधार पर आरक्षण प्रणाली को लागू कर पंचायत चुनाव कराने का निर्देश दिया है।



हाईकोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि अखिलेश सरकार के दौर में बने शासनादेश के आधार पर पंचायत चुनाव के सीटों के आरक्षण की रूपरेखा तय की जाएगी. ऐसे में 1995 के आधार पर योगी सरकार ने पंचायत सीटों के लिए चक्रानुसार आरक्षण की लिस्ट जारी की थी, जिसके तहत तमाम ऐसी सीटें आरक्षण के दायरे में आ गई थीं, जो पिछले ढाई दशक में आरक्षण में नहीं आई थीं. हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद अब दोबारा से सूबे की सीटों के आरक्षण की लिस्ट जारी होगी।


क्या थी अखिलेश सरकार में व्यवस्था?
तत्कालीन अखिलेश सरकार ने साल 2015 के पंचायत चुनाव के पहले यहां चल रही आरक्षण की व्यवस्था दी थी. तत्कालीन सपा सरकार ने 2015 के पंचायत चुनाव में उत्तर प्रदेश पंचायतीराज (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली 1994 में 10वां संशोधन कर ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के पूर्व में हुए आरक्षण को शून्य कर दिया था. इसके लिए साल 2011 की जनगणना के आधार पर सीटें तय की गई थीं. ऐसे ही 2021 की जनगणना के बाद 2025 के पंचायत चुनाव के समय 2015 और 2020 के चक्रानुक्रम आरक्षण को शून्य कर दिया जाएगा।



मान लीजिए, किसी ब्लॉक में 100 ग्राम पंचायतें हैं. वहां 2015 के चुनाव में 27 ग्राम प्रधान पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रही हैं तो 2020 के पंचायत चुनाव में भी ये 27 के आगे वाली ग्राम पंचायतों के प्रधान पद आरक्षित होंगे. इस तरह इन दो चुनावों में कुल 54 ग्राम पंचायतें ही आरक्षित हो पाएंगी. इसके बाद 2021 में नई जनगणना होगी और 2025 के चुनाव के पहले पंचायतों का पुनर्गठन व परिसीमन कराना होगा. तब 2015 और 2020 के चक्रानुक्रम आरक्षण को शून्य कर नए सिरे से पंचायतों का आरक्षण किया जाएगा, 


इससे 54 ग्राम पंचायतों के बाद बाकी 46 ग्राम पंचायतों में प्रधान का पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित नहीं हो पाएगा. 2025 में फिर वही ग्राम पंचायतें आरक्षित होनी शुरू हो जाएंगी जो 2015 में आरक्षित हो रही हैं. नतीजतन ब्लॉक की तमाम ग्राम पंचायतों के पिछड़ों, दलितों या अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण का अवसर नहीं मिल पाएगा. पंचायतों के आरक्षण के 2015 के शासनादेश में कहा गया है कि जब भी नया परिसीमन होगा, पंचायतों के पुराने चक्रानुक्रम के आरक्षण को बिना संज्ञान में लिए हुए नए सिरे से लागू किया जाएगा. एक तरह से प्रदेश में हर दस साल पर जनगणना होती है और इसके बाद नए सिरे से पंचायतों का परिसीमन होना चाहिए।



 
साल 2015 के पंचायत चुनाव में उत्तर प्रदेश के 71 जिलों में ग्राम क्षेत्र और जिला पंचायतों का नए सिरे से पुनर्गठन किया गया था जबकि कानूनी दांवपेच के चलते गोंडा, मुरादाबाद, गौतमबुद्ध नगर और संभल में पंचायतों का पुनर्गठन नहीं हो सका था. पिछली बार इन जिलों में भी जिन ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों का आरक्षण था, वह अपने तयशुदा रोटेशन के मुताबिक ही बदलेगा. रोटेशन की प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जाएगा. इस फॉर्मूले से एससी, एसटी व ओबीसी के जो ग्राम प्रधान पद 2015 में आरक्षित थे, वे ही फिर से आरक्षित ही रह जाएंगे।


जानें योगी आदित्यनाथ सरकार का फॉर्मूला
वहीं, योगी सरकार ने यूपी पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण और आवंटन संबंधी 11वां संशोधन लाकर अखिलेश सरकार द्वारा 2015 में लाया गया 10वां संशोधन समाप्त कर दिया था. इस बार योगी सरकार ने इन चार जिलों में आरक्षण का पुनर्गठन कर दिया था और 1995 के आधार पर आरक्षण प्रक्रिया के तहत सीटों की सूची जारी की गई थी. इस फॉर्मूले के तहत 1995 के बाद से जो सीटें कभी भी आरक्षण के दायरे में नहीं आई थी, उन सभी को आरक्षित कर दिया गया है।



पंचायत चुनाव में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की सर्वाधिक आबादी वाले जिला, क्षेत्र और ग्राम पंचायतों को रोटेशन में आरक्षित किया जाएगा. 1995, 2000, 2005, 2010 और 2015 में जो पंचायतें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित थीं, वे इस बार अनुसूचित जाति के लिए आवंटित नहीं की जाएंगी. ऐसे ही जो पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित रह चुकी हैं, उन्हें पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित नहीं किया जाएगा।


1995 से लेकर 2015 तक पांच चुनावों में अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित रहीं सीटें इस बार उस कैटेगरी के लिए आरक्षित नहीं की जाएगी. प्रत्येक ब्लॉक में एससी-एसटी पिछड़े और सामान्य वर्ग की आबादी अंकित करते हुए ग्राम पंचायतों की सूची वर्णमाला के क्रम में बनाई जाएगी. फॉर्मूले के अनुसार एससी-एसटी और पिछड़े वर्ग के लिए प्रधानों के आरक्षित पदों की संख्या उस ब्लॉक पर अलग-अलग पंचायतों में उस वर्ग की आबादी के अनुपात में घटते क्रम में होगी।


अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार के बताया था कि इस रोटेशन पॉलिसी का सबसे अहम सिद्धांत ये है कि जो ग्राम, क्षेत्र या जिला पंचायतें अभी तक किसी कैटेगरी के लिए आरक्षित नहीं हुई हैं, उन्हें सबसे पहले उसी कैटेगरी के लिए आरक्षित किया जाएगा. सबसे पहले अनुसूचित जनजाति महिला, फिर अनुसूचित जनजाति, फिर अनुसूचित जाति महिला, पिछड़ा वर्ग महिला, अनुसूचित जाति पुरुष, जनरल कैटेगरी महिला और फिर जनरल कैटेगरी।



उदाहरण के तौर पर 2015 में जिन पंचायतों में पहले एससी के लिए आरक्षण था, उसे ओबीसी का आरक्षण तय किया जाएगा. ऐसे ही जो पंचायतें अब तक ओबीसी के लिए आरक्षित होती रही हैं, उन्हें एससी के लिए आरक्षित किया गया था. इसके बाद जो बची बाकी पंचायतों को आबादी के घटते अनुपात में चक्रानुक्रम के अनुसार सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित किया गया. इसी आधार को मानते हुए 58194 ग्राम पंचायत सीटें और 75 जिला पंचायतों में 3051 जिला पंचायत वॉर्ड सदस्य के आरक्षण तय किए थे. लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद अब फिर से 2015 के लिहाज से सीटें तय होंगी।


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