भारतीय इतिहास (Indian History) में राजपूताना (Rajputana) का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहां के रणबांकुरों ने देश, जाति, धर्म तथा स्वाधीनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने में कभी संकोच नहीं किया। उनके इस त्याग पर संपूर्ण भारत को गर्व रहा है। वीरों की इस भूमि में राजपूतों के छोटे-बड़े अनेक राज्य रहे, जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया।
राजपूताना के गौरवशाली इतिहास (Rajputana History) में ऐसे ही एक महान योद्धा हुए हैं महाराणा प्रताप (Maharana Pratap). तो आइए जानते हैं राजपूत (Rajput) आन बान और शान के ध्वजा वाहक महान वीर योद्धा और हमारे देश के गौरव महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के बारे में विस्तार से। maharana pratap story in hindi, maharana pratap history in hindi
महाराणा प्रताप का जन्म (Maharana Pratap Birth)
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म जेष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदनुसार 9 मई 1540 को उदयपुर, राजस्थान (Udaipur, Rajasthan) के राजघराने (Royal Family) में हुआ। महाराणा प्रताप का जन्म (maharana pratap ka janm) कुम्भलगढ दुर्ग (Kumbhalgarh Forte) में हुआ था। प्रताप के पिता राणा सांगा के पुत्र महाराणा उदय सिंह और माँ जयवंता बाई थी जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी।
महाराणा प्रताप का बचपन (Maharana Pratap ka bachpan) Maharana Pratap Childhood
महाराणा प्रताप का बचपन (maharana pratap ka bachpan) का नाम कीका था। वे अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे। गौरव, सम्मान, स्वाभिमान व स्वतंत्रता के संस्कार इन्हें विरासत में मिले थे। बचपन से ही महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता प्रिय थे। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को बचपन में ही ढाल तलवार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा, क्योंकि उनके पिता उन्हें अपनी तरह कुशल योद्धा बनाना चाहते थे। बालक प्रताप ने कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय दे दिया था। जब वो बच्चो के साथ खेलने निकलते तो बात बात में दल का गठन कर लेते थे। दल के सभी बच्चो के साथ साथ वो ढाल तलवार का अभ्यास भी करते थे, जिससे वो हथियार चलाने में पारंगत हो गये थे। धीरे धीरे समय बीतता गया। दिन महीनों में और महीने सालो में परिवर्तित होते गये। इसी बीच प्रताप अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण हो गये और उनका आत्मविश्वास देखकर उनके पिता उदय सिंह फूले नही समाते थे।
Maharana Pratap ने अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार अपने सौतेले भाई जगमाल (Jagmal) को राजा बनाने का निश्चय किया लेकिन मेवाड़ (Mewar) के विश्वासपात्र चुंडावत राजपूतो ने जगमाल के सिंहासन पर बैठने को विनाशकारी मानते हुए जगमाल को राजगद्दी छोड़ने को बाध्य किया। जगमाल सिंहासन को छोड़ने का इच्छुक नहीं था। इसलिए वो बदला लेने के लिए अजमेर जाकर अकबर (Akbar) की सेना में शामिल हो गया और उसके बदले उसको जहाजपुर की जागीर मिल गयी।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक (Maharana Pratap ka Rajyabhishek)
महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक
(Maharana Pratap ka Rajyabhishek) 28 फरवरी, 1572 को गोगुन्दा में हुआ था, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुुंभलगढ़़ दुुर्ग (Kumbhalgarh Forte) में हुआ। राणा प्रताप (Rana Pratap) के पिता उदयसिंह (Udaisingh) ने अकबर (Akbar) से भयभीत होकर मेवाड़ (Mewar) त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और उदयपुर (Udaipur) को अपनी नई राजधानी (Capital) बनाया था। हालांकि तब मेवाड़ (Mewar) भी उनके अधीन ही था। महाराणा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय अपने छोटे पुत्र जगमाल (Jagmal) को गद्दी सौंप दी थी जो कि नियमों के विरुद्ध था। उदयसिंह की मृत्यु के बाद राजपूत (Rajput) सरदारों ने मिलकर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को मेवाड़ (Mewar) की गद्दी पर बैठाया।
राणा प्रताप (Rana Pratap) के शासक बनने के समय हालात ठीक नहीं थे। उस वक्त दिल्ली (Delhi) पर अकबर (Akbar) का शासन था और अकबर की नीति हिन्दू राजाओ की शक्ति का उपयोग कर दुसरे हिन्दू राजाओं को अपने नियन्त्रण में लेने की थी। जब राजकुमार प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया गया उस वक़्त मुगल (Mughal) सेनाओ ने चित्तोड़ (Chittor) को चारो और से घेर लिया था। प्रताप को अकबर (Akbar) की सम्पन्न मुगल (Mughal) सेना व मानसिंह (Mansingh) की राजपूत (Rajput) सेना से लोहा लेना पड़ा।
हल्दी घाटी का युद्ध Battle of Haldighati (haldi ghati ka yudh)
हल्दी घाटी का युद्ध (haldi ghati ka yudh) 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ (Mewar) तथा मुगलों (Mughals) के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने किया था। भील सेना के सरदार राणा पूंजा भील थे। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी।
इस हल्दीघाटी युद्ध (haldi ghati yudh) में 20,000 राजपूतों (Rajput) को साथ लेकर राणा प्रताप (Rana Pratap) ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया। अकबर (Akbar) की कूटनीति के कारण प्रताप का भाई शक्तिसिंह भी मुगल (Mughal) सेना के साथ था। फिर भी, अपनी छोटी-सी सेना से प्रताप ने हल्दी घाटी (haldi ghati) में मोर्चा जमाया जिससे मुगल सेना को नाकों चने चबाने पड़े।
मुगल (Mughal) सेना की भारी क्षति हुई, परंतु विशाल सैन्य शक्ति के दबाव को देखकर राणा प्रताप (Rana Pratap) को युद्ध (haldi ghati yudh) से हटना पड़ा। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप (maharana pratap) को झाला मानसिंह ने आपने प्राण देकर बचाया और महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए कहा। शक्ति सिंह ने अपना अश्व देकर महाराणा प्रताप (maharana pratap) को बचाया। युद्ध में बुरी तरह से घायल उनके प्रिय अश्व चेतक (chetak) की भी मृत्यु हो गयी। haldighati युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17000 लोग मारे गए।
इस घटना से सरदार झाला, राणा के घोड़े चेतक (maharana pratap ka ghoda chetak) और अनुज शक्ति सिंह को प्रसिद्धि मिली। झाला ने ताज पहनकर अपने आत्मबलिदान से प्रताप को बचाया, चेतक (chetak) ने प्रताप को युद्ध-भूमि से निकालकर प्राण त्यागे और अनुज शक्तिसिंह ने भी पश्चाताप करके क्षमा मांगी।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध (haldighati yudh) में कोई विजयी नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह (maharana pratap singh) विजयी हुए। अकबर (akbar) की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत (Rajput) कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध (haldighati yudh) पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों (Rajput) ने मुग़लों (Mughals) के छक्के छुड़ा दिये थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध (haldighati yudh) आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा (maharana) की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल (mughal) सेना भागने लग गयी थी।
अकबर की पराजय
महाराणा प्रताप (maharana pratap) मुग़ल सम्राट अकबर (mughal emperor akbar) से नहीं हारे। उन्होंने अकबर (akbar) एवं उसके सेनापतियो को हर बार धुल चटाई । हल्दीघाटी के युद्ध (haldighati yudh) में प्रताप जीते। महाराणा प्रताप (maharana pratap) के विरुद्ध हल्दीघाटी (haldighati) में पराजित होने के बाद स्वयं अकबर (akbar) ने जून से दिसम्बर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा प्रताप (maharana pratap) पर आक्रमण किया, परंतु महाराणा को खोज नहीं पाया, बल्कि महाराणा के जाल में फँसकर पानी भोजन के अभाव में सेना का विनाश करवा बैठा।
थक हारकर अकबर (akbar) बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया। पूरे सात माह मेवाड़ (mewad) में रहने के बाद भी अकबर (akbar) हाथ मलता अरब (arab) चला गया। शाहबाज खान (shahbaz khan) के नेतृत्व में महाराणा (maharana) के विरुद्ध तीन बार सेना भेजी गई परन्तु असफल रहा। उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में महाराणा (maharana) के विरुद्ध सेना भिजवाई गई और पिटकर लौट गया। 9 वर्ष तक निरन्तर अकबर (akbar) पूरी शक्ति से महाराणा (maharana) के विरुद्ध आक्रमण करता रहा और नुकसान उठाता रहा। अन्त में थक हारकर उसने मेवाड़ (mewar) की ओर देखना ही छोड़ दिया
मुगलों (mughals) की विराट सेना से हल्दी घाटी में उनका जो भीषण युद्ध (haldighati yudh) हुआ और वहां उन्होंने जो पराक्रम दिखाया, वह भारतीय इतिहास (Indian history) में अद्वितीय है। उन्होंने अपने पूर्वजों की मान-मर्यादा की रक्षा की और प्रण किया की जब तक अपने राज्य को मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक राज्य-सुख का उपभोग नहीं करेंगे। तभी से वह भूमि पर सोने लगे। वह अरावली के जंगलो में कष्ट सहते हुए भटकते रहे, परन्तु उन्होंने मुग़ल सम्राट (mughal samrat) की अधीनता स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया।
महाराणा प्रताप (maharana pratap) ने वीरता का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह अद्वितीय है। उन्होंने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया, वे वास्तव में जटिल थी, पर उन्होंने हार नहीं मानी। यदि राजपूतो (Rajput) को भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्ण स्थान मिल सका तो इसका श्रेय मुख्यत: राणा प्रताप (rana pratap) को ही जाता है। उन्होंने अपनी मातृभूमि को न तो परतंत्र होने दिया न ही कलंकित। विशाल मुग़ल (mughal) सेनाओ को उन्होंने लोहे के चने चबाने पर विवश कर दिया था। मुगल सम्राट अकबर (mughal samrat akbar) उनके राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था, किन्तु राणा प्रताप (rana pratap) ने ऐसा नहीं होने दिया और आजीवन संघर्ष किया।
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महाराणा प्रताप सिंह (maharana pratap singh), उदयपुर, मेवाड (udaipur, mewar) में सिसोदिया (sisodia) राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है।
महाराणा प्रताप के बारे में कुछ अविश्वसनीय तथ्य
महाराणा प्रताप के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं, जिन पर लोगों का विश्वास करना शायद मुश्किल होगा, लेकिन वो सच है। जैसे उनके भाले का वजन 81 किलो, छाती का कवच 72 किलो, भाला, कवच, ढाल और दो तलवारें मिलाकर कुल वजन 208 किलो था। महाराणा प्रताप (maharana pratap) भाला और कवच सहित ढाल-तलवार का वजन मिलाकर कुल 208 किलो का वजन उठाकर युद्ध लड़ते थे। सोचिए तब उनकी शक्ति क्या रही होगी। इतने वजन के साथ रणभूमि में दुश्मनों से पूरा दिन लड़ना मामूली बात नहीं थी। महाराणा प्रताप का कद (maharana pratap height weight) 7 फुट और 5 इंच तथा उनका वजन 110 किलो था।
आज भी महाराणा प्रताप का कवच (maharana pratap ka kavach), तलवार (maharana pratap ki talwar) आदि वस्तुएं उदयपुर राजघराने के संग्रहालय (museum) में सुरक्षित रखे हुए है।
महाराणा प्रताप का घोड़ा- चेतक
महाराणा प्रताप (maharana pratap) जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। प्रताप के घोड़े के बारे में कई किस्से हैं। उनके घोड़े का नाम चेतक (chetak) था।
स्वामीभक्त चेतक जो हवा से भी ज्यादा तेज दौडता था उसने युद्ध में अपनी एक टांग कटने के बाद भी अपने स्वामी महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी से 5 km दूर तक सकुशल पहुंचाया। बुरी तरह घायल और लहूलुहान होने के बावजूद चेतक ने रास्ते में पड़ने वाले 26 फीट लम्बे नाले को पार करते हुए महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाकर ही अपने प्राण त्यागे।
हम आपको चेतक (chetak) की वो कविता पढ़ाते हैं जो कभी भारत के सरकारी स्कूलों के पाठयक्रम का हिस्सा हुआ करती थी।
श्याम नारायण पांडेय की चेतक पर लिखी यह कविता (poem on maharana pratap horse chetak) भी महाराणा प्रताप (maharana pratap) की तरह ही अजर-अमर है-
“रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से¸
पड़ गया हवा का पाला था।
गिरता न कभी चेतक–तन पर¸
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि–मस्तक पर¸
या आसमान पर घोड़ा था।।
जो तनिक हवा से बाग हिली¸
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं¸
तब तक चेतक मुड़ जाता था।। “
महाराणा प्रताप की जयंती (maharana pratap jayanti) विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
महाराणा प्रताप की मृत्यु (Death of Maharana Pratap)
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युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से 19 जनवरी 1597 को 57 वर्ष की आयु में महाराणा प्रताप की मृत्यु (Maharana Pratap ki mrityu) चावंड में हुई।
-चावंड गांव से लगभग डेढ़ मील दूर बण्डोली गांव है, उसके पास जो नदी बहती है, उसी नदी के किनारे महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का दाह संस्कार किया गया था।
-इस स्थल पर स्मारक स्वरूप एक छतरी बनी हुई है।
-चावंड राजस्थान (Rajasthan) के उदयपुर (Udaipur) से ऋषभदेव जाने वाली सड़क पर सघन अरावली पहाड़ियां के पठारी भाग में बसा हुआ एक गांव है।
-चावंड जिस पहाड़ी इलाके में बसा हुआ है, वह ‘छप्पन’ का इलाका कहलाता है।
महाराणा प्रताप (maharana pratap) की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे। उदारता ऐसी कि युद्ध में पकड़ी गई मुगल बेगमों को सम्मानपूर्वक उनके पास वापस भेज दिया था। इस योद्धा ने साधन सीमित होने पर भी दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल फल खाकर लगातार लड़ते रहे।
माना जाता है कि इस वीर योद्धा की मृत्यु पर अकबर (akbar) की आंखें भी नम हो गई थीं। अकबर (akbar) ने भी कहा था कि देशभक्त हो तो ऐसा हो।
अकबर (akbar) ने कहा था-
‘इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परंतु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्रों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परंतु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है। ‘
महान कौन? अकबर या महाराणा प्रताप?
(Who is Great? Akbar or Maharana Pratap?)
कितने लोग हैं जिन्हें अकबर की सच्चाई (reality of akbar) मालूम है और कितने लोग हैं जिन्होंने महाराणा प्रताप (maharana pratap) के त्याग और संघर्ष को जाना? प्रताप के काल में दिल्ली (delhi) में तुर्क सम्राट अकबर (mughal emperor akbar) का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य (mughal dynasty) की स्थापना कर इस्लामिक (islamic) परचम को पूरे हिन्दुस्तान (hindustan) में फहराना चाहता था। इसके लिए उसने नीति और अनीति दोनों का ही सहारा लिया। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर (akbar), महाराणा प्रताप (maharana pratap) को बंदी न बना सका।
भारतीय कम्युनिस्टों (communist) और अंग्रेजों ने पूरी दुनिया में सिकंदर (sikandar) की तरह अकबर (akbar) को महान सम्राट बना रखा है, लेकिन सत्ता और धर्म के नशे में चूर अकबर की सच्चाई (reality of akbar) को आज नहीं तो कल स्वीकार करना ही होगा।
वास्तव में महान तो महाराणा प्रताप (The Great Maharana Pratap) थे जिनको एक तुर्क ने भारतीय राजाओं के साथ मिलकर हर तरह से झुकाने या मौत के घाट उतारने का प्रयास किया, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने आत्मसम्मान को बचाए रखा और कभी भी अकबर (akbar) की अधीनता स्वीकार नहीं की।
महाराणा प्रताप (maharana pratap) ने भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगी भर उनके मुख से अकबर (akbar) के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर (akbar) को अपना बादशाह नहीं मानेंगे।
मेवाड़ के वीर यशस्वी महाराणा प्रताप (maharana pratap) ने कभी मुगलों के इस छद्म चेहरे की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर (akbar) ने उन्हें समझाने के लिए चार बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था, लेकिन महाराणा प्रताप (maharana pratap) ने अकबर (akbar) के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था।
अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं में शिकार की कमी कभी नहीं रही। वहाँ रहकर महानतम शिकारी Maharana Pratap घास की रोटी खाएगा, कभी भी ऐसा नहीं हुआ। हल्दीघाटी के युद्ध से लेकर निर्णायक दिवेर युद्ध तक और न ही उसके बाद। Maharana Pratap युद्ध की तैयारी करते रहे और कभी हारे नही। अगर Maharana Pratap हार जाते तो आज भारत भी एक इस्लामिक देश होता।
सवाल यह उठता है कि महानता की परिभाषा क्या है?
अकबर (akbar) हजारों लोगों की हत्या करके महान कहलाता है और महाराणा प्रताप (maharana pratap) हजारों लोगों की जान बचाकर भी महान नहीं कहलाते हैं। दरअसल, हमारे देश का इतिहास अंग्रेजों और कम्युनिस्टों ने लिखा है। उन्होंने उन-उन लोगों को महान बनाया जिन्होंने भारत पर अत्याचार किया या जिन्होंने भारत पर आक्रमण करके उसे लूटा, भारत का धर्मांतरण किया और उसका मान-मर्दन कर भारतीय गौरव को नष्ट किया।
देश के बाहर भी हैं महाराणा के उपासक
वियतनाम जैसे छोटे देश ने जब विश्व की महाशक्ति अमेरिका को हराया था तो वहाँ के राष्ट्र अध्यक्ष ने कहा था कि उसने महाराणा से प्रभावित हो कर युद्ध किया था। वही अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जब भारत आने वाले थे तो उन्होंने अपनी माँ से पूछा की आपके लिये भारत से क्या लाऊँ तो उनकी माँ ने कहा की तुम भारत से मेरे लिए हल्दी घाटी की मिट्टी लाना जिसे अपनी मातृभूमि के लिये वहाँ के राजा के साथ हज़ारों राजपूतों ने अपने रक्त से सींचा है।
आज आवश्यक है की हम महाराणा के आदर्शों को अपने अंदर सहेजें। भारत के शासकों और भारत के हर बच्चे, युवा को महाराणा बनने की आवश्यकता है तभी हम अपने देश को महान बना सकते हैं। यही उनके प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि होगी।
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*Disclaimer:- यह लेेेख ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है।
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