कोरोना लॉकडाउन के बीच संक्रमण के साथ-साथ करप्शन, घूसखोरी, कालाबाज़ारी सभी कुछ तेजी से चल रहा है। देश में गहराई तक जड़ जमा चुका भ्रष्टाचार का नेटवर्क कोरोना महामारी के समय और भी तगड़े सिग्नल के साथ हर जगह अपनी उपस्थिति बार बार दर्ज करा रहा है। पुलिस हो या बनिया सब अपने अपने तरीके से जनता को चूसने में लगे हैं। और जनता इन दो पाटों के बीच पिस कर रह गयी है।
बनिया 25 रुपये किलो वाला आटा 35 रुपये, 60 रुपये किलो वाली दाल 120 रुपये, 30 रुपये का चॉवल 50 रुपये किलो में बेचकर कोरोना महामारी को एक नए बिज़नेस अवसर के रूप में कैश करा रहा है। वहीं कुछ करप्ट पुलिस वाले भी मौका पाते ही हाथ साफ कर दे रहे है, क्योंकि अपने देश की पुलिस का गठन तो आम लोगों को प्रताड़ित करने के लिए ही हुआ है शायद।
आज देश में यदि घूसखोरी और भ्रष्टाचार नहीं होता तो शायद कोरोना मरीजों की संख्या इतनी तेजी से नहीं बढ़ती। जरा सोचिए ऐसे में जब सभी राज्यों से जिलों तक के बॉर्डर सील हैं और कड़ी चौकसी है फिर भी लोग प्राइवेट एम्बुलेंस बुक करके दिल्ली से गोरखपुर तक बिना किसी रोक टोक और जांच के अपने परिवार सहित कैसे पहुंच जा रहे हैं।
सीएम सिटी गोरखपुर जो कि अभी तक ग्रीन जोन में था और यहाँ एक भी कोरोना पॉजिटिव केस नहीं था लेकिन पुलिस प्रशासन की लापरवाही के चलते यहाँ दिल्ली से 2 कोरोना पॉजिटिव मरीज बिना रोकटोक पहुंच गए। यहां तक की उन एम्बुलेंस और उनके ड्राइवर के बारे में पुलिस के पास कोई भी जानकारी नहीं है। न ही पुलिस के पास उन एम्बुलेंस का नम्बर ही है।
दिल्ली में रहने वाले मेरे एक मित्र ने बताया कि वहां तो एम्बुलेंस वाले मूवमेंट ई-पास आदि का जुगाड़ करके तैयार मिल रहे हैं जो 25-30 हजार रुपये में यूपी लाने की पूरी जिम्मेदारी ले ले रहे हैं। उनके पास घूसखोरी का ऐसा तगड़ा नेटवर्क है जिससे उनको तुरंत पास मिल जाता है।
जबकि दिल्ली में यदि कोई आम आदमी अपने किसी करीबी की मेडिकल इमरजेंसी होने या मरीज की हालत अत्यधिक नाजुक होने पर डॉक्टर द्वारा जारी किया गया रेफर लेटर होने के बावजूद E-Pass के लिए ऑनलाइन आवेदन कर रहा है तो उसका आवेदन हर बार रिजेक्ट कर दिया जा रहा है।
यूपी के रहने वाले वीरेंद्र सिंह गुरुग्राम स्थित एक कंपनी में क्वालिटी मैनेजर हैं। गांव पर अपनी माता जी की तबियत ज्यादा खराब होने और देखभाल न हो पाने की वजह से अभी मार्च में ही वीरेंद्र अपनी माता को अपने साथ गुरुग्राम ले गए थे जिससे उनका ठीक से इलाज करा सकें। परन्तु अपनी माता जी को गांव से लेकर जाने के कुछ दिन बाद ही हालात खराब हो गए और लॉकडाउन लगा दिया गया।
अब वीरेंद्र सिंह के सामने अपनी बीमार माता के इलाज को लेकर बड़ी कठिनाई सामने आ गयी। कोरोना का ऐसा भय था कि वे जिस अस्पताल जाते वही भर्ती करने से मना कर देता। इसी बीच उनकी माता की तबियत बहुत खराब होने पर किसी तरह उन्होंने एक दिन e-pass का इंतज़ाम किया तो गुरुग्राम में एक प्राइवेट अस्पताल में अपनी माता को दिखाया जहां डॉक्टर ने हार्ट ब्लॉकेज बताते हुए उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल को रेफर कर दिया।
इसी बीच जमातियों की करतूतों के कारण पूरा दिल्ली हॉटस्पॉट घोषित हो चुका था और पूरी तरह सील किया जा चुका था। ऐसे में वीरेंद्र के पास ऑनलाइन e-pass के लिए आवेदन करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था। वीरेंद्र सिंह ने लगातार 5 दिनों तक डॉक्टर का रेफर लेटर संलग्न करते हुए e-pass के लिए आवेदन किया परन्तु हर बार उनका आवेदन निरस्त कर दिया गया। उन्होंने स्थानीय सीएमओ तक से गुजारिश की और सरकारी एम्बुलेंस लेने का भी प्रयास किया परन्तु कहीं से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली। वीरेंद्र सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री से लेकर ग्रह मंत्री तथा पीएम तक को अपनी माता की मेडिकल रिपोर्ट के साथ ट्वीट करके मदद की अपील भी की। लेकिन 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में एक आम आदमी की पुकार हर बार भीड़ में कहीं दबकर दम तोड़ देती है। यहाँ दावे तो बड़े बड़े किये जाते हैं लेकिन धरातल की सच्चाई कुछ और ही होती है।
एक तरफ तो घूसखोरी तंत्र से एम्बुलेंस वाले तथा अन्य पहुंच वाले लोग तुरन्त e-pass का जुगाड़ बैठा ले रहे हैं वहीं दूसरी ओर यदि एक आम आदमी अपनी मरती हुई माँ को बचाने के लिए भी e-pass की मॉग करता है तो उसका आवेदन गैरजरूरी समझकर निरस्त कर दिया जाता है।
यही है इस देश के सिस्टम की ग्राउंड रियलिटी, जहां सब कुछ घूसखोरी के नेटवर्क से ही चलता है। यह इस देश का सबसे बड़ा नेटवर्क है जिसका सिग्नल हर जगह पकड़ता है। भ्रस्टाचार और घूसखोरी से आम आदमी का पीछा शमशान तक नहीं छूटने वाला। अंतिम संस्कार तक की रश्म में भी कहीं न कहीं घूसखोरी के नेटवर्क से होकर ही गुजरना पड़ता है अपने देश में।