Tarkulha Devi Mandir Gorakhpur: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में की जो आग पूरे देश में आजादी को लेकर भड़की थी. उसे पूरे पूर्वांचल में शहीद बंधू सिंह ने नेतृत्व दिया था, और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे.
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शहीद बंधू सिंह को 12 अगस्त सन 1858 को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर स्थित विशालकाय बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी.
कहा जाता है की अंग्रेजों ने गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर खुलेआम बरगद के पेड़ पर शहीद बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया लेकिन फंदा टूट गया था. ऐसा लगभग सात बार हुआ.
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अंत में स्वयं बंधू सिंह ने मां भगवती से अपने चरणों में बुलाने का अनुरोध किया. तब जाकर वह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.
इस दौरान जंगल के जिस स्थान पर बंधू सिंह अपनी देवी मां की पिन्डी रूप में पूजा करते थे वहां स्थित तरकुल का पेंड़ भी धड़ से टूट गया था और पेड़ से रक्त बहने लगा.
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आज भी भगवती मां को लोग तरकुलहा माता के नाम से पूजते चले आ रहे हैं. अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहाँ एक स्मारक भी बना हैं।
बंधू सिंह ने अंग्रेजो के सिर चढ़ा कर जो बलि कि परम्परा शुरू की थी वो आज भी यहाँ जारी है। अब यहाँ पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है, उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, साथ में लिट्टी भी दी जाती हैं। यह देश का इकलौता मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस इलाके में घना जंगल हुआ करता था जहां जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी।
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बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसका सिर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते थे।
तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर कैसे पहुंचे?
(How To Reach Tarkulha Devi Mandir Gorakhpur)
गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर गोरखपुर-देवरिया रोड पर मां तरकुलहा देवी मंदिर मार्ग का मुख्य गेट है। वहां से लगभग डेढ़ किमी पैदल, निजी वाहन या आटो से चलकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
जय माता दी !!
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