गैंग्स ऑफ गोरखपुर

पूर्वांचल क्षेत्र की राजनीति और सामाजिक संरचना में गैंगवार और गुटबाजी की एक लंबी परंपरा रही है। इस क्षेत्र में कई ऐसे डॉन और गैंगस्टर उभरे हैं जिन्होंने अपने दबदबे से राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है। इन गैंगस्टर्स के पीछे उनके जाति आधारित संरक्षण और राजनीतिक संबंध रहे हैं। इस लेख में हम पूर्वांचल के इन गैंगस्टर्स और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
गोरखपुर: गैंगवार का केंद्र
गोरखपुर जिला पूर्वांचल क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण जिला है। यहां की राजनीति में तीन केंद्र रहे हैं – गोरखनाथ मठ, ब्राह्मण राजनीति का केंद्र ‘हाता’, और क्षत्रिय राजनीति का केंद्र ‘शक्ति सदन’। 
इन तीनों केंद्रों के बीच राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष चलता रहा है। 1970 के दशक में गोरखपुर यूनिवर्सिटी में दो प्रमुख नेता, बलवंत सिंह (ठाकुर) और हरिशंकर तिवारी (ब्राह्मण) के बीच इस संघर्ष ने खूनी रूप ले लिया।
हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही
हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के बीच चला यह गैंगवार 1980 के दशक तक चलता रहा। इस दौरान 50 से अधिक लोगों की हत्याएं हो गईं। तिवारी और शाही दोनों ने अपने-अपने जाति समूहों से राजनीतिक और सामाजिक संरक्षण प्राप्त किया। इस संघर्ष में कई नेता और गैंगस्टर उभरे, जिनमें से मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह प्रमुख हैं।
श्रीप्रकाश शुक्ला: उत्तर प्रदेश का सबसे खतरनाक गैंगस्टर
इस संघर्ष के बीच एक और गैंगस्टर का उदय हुआ, जिसने पूरे उत्तर प्रदेश में अपना दबदबा कायम कर लिया। वह था श्री प्रकाश शुक्ला। शुक्ला ने अपनी क्रूरता और हिंसक प्रवृत्ति से पूरे प्रदेश में अपना खौफ फैला दिया। उसने कई नेताओं और बाहुबलियों को मौत के घाट उतार दिया। अंततः 1998 में एक स्पेशल पुलिस टास्क फोर्स (STF) ने उसका सफाया कर दिया।
राजनीतिक संरक्षण और जाति आधारित गुटबाजी
इन गैंगस्टर्स को उनके जाति आधारित संरक्षण और राजनीतिक संबंध मजबूत करते रहे। हरिशंकर तिवारी को कई सरकारों में कैबिनेट मंत्री पद मिलता रहा, जबकि वीरेंद्र शाही और श्री प्रकाश शुक्ला को भी उनकी जाति के नेताओं का समर्थन प्राप्त था। इस प्रकार जाति और राजनीतिक संबंधों ने पूर्वांचल क्षेत्र में गैंगवार और अपराध को बढ़ावा दिया।
मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह: अगले दौर का संघर्ष
वीरेंद्र शाही के बाद पूर्वांचल में ठाकुरों का एक और प्रमुख नेता बृजेश सिंह उभरा। वह और मुख्तार अंसारी के बीच एक नया संघर्ष शुरू हुआ, जो अगले दो दशक से अधिक समय तक चलता रहा। यह संघर्ष भी जाति और राजनीतिक संरक्षण पर ही आधारित था।

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