पूत कपूत तो का धन संचय?

दिवंगत सहाराश्री सुब्रत रॉय ने अपने दोनों बेटों की शादी में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए और देश विदेश के हर खास लोगों को इकट्ठा किया। इस आलीशान शादी में बड़े से बड़े नेता, बिजनेसमैन, हीरो, हीरोइन, स्पोर्ट्स पर्सन और समाज के खास व बड़ी शख्सियतों ने शिरकत किया। 
2004 में जब दोनों बेटों की शादी एक ही दिन हुई तो अमिताभ, सलमान से लेकर सुष्मिता, ऐश्वर्या ने गेट पर खड़े रह कर सबका स्वागत किया। क्रिकेटर्स और जानी मानी हस्तियां मेहमानों को खाना खिलाते नजर आईं। बाकी सजावट तो छोड़िए, एक करोड़ रुपए की डिजायनर मोमबत्ती जलाई गई जो डिंपल कपाड़िया की कंपनी पर एहसान जताने के लिए खरीदी गई थी। 
इस आलीशान शादी में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन अपने पूरे परिवार के साथ बारात में नाच रहे थे, देश के प्रधानमंत्री घुटने ख़राब होने के बावजूद मंच पर चढ़ कर वरवधू को आशीर्वाद दे रहे थे। देश का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं बचा था जिसकी गिनती देश के बड़े लोगों में होती हो और वो उस शादी में लखनऊ न पहुँचा हो, पच्चीसों मुख्यमंत्री पूरी केंद्र सरकार और यूपी सरकार वहाँ थी, लोकसभा, राज्यसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के मेम्बर शायद ही कभी एक साथ कहीं और जुटे हों।
गोरखपुर में एक छोटे से कमरे से सहारा फाइनेंस कंपनी की शुरुआत करने वाले सुब्रत रॉय उस वक़्त, आज के अंबानी अड़ानी और टाटा से भी ज़्यादा शक्तिशाली दिख रहे थे।
बिहार के अररिया में जन्मे सुब्रत राय कोलकाता में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद परिवार के साथ गोरखपुर आ गए थे। राजकीय पालीटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। सुब्रत का परिवार गोरखपुर के तुर्कमानपुर में गांधी आश्रम के पास किराए के मकान में रहता था। पिता के गोरखपुर से लौटने के बाद भी सुब्रत ने शहर नहीं छोड़ा और बेतियाहाता में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे।
सपने बेचने में महारथी या यूं कहें सपनों के सौदागार सुब्रत राय रिश्ते निभाने में भी करिश्माई थे। गोरखपुर के राजकीय पालिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के दौरान ही खास अंदाज के चलते युवाओं में वह खासे लोकप्रिय हो गए थे। 
सपने बेचने के महारथी सुब्रत का अंदाज इतना जरदस्त था कि रोजाना 100 रुपये कमाने वालों को भी उन्होंने 20 रुपये बचत करने को प्रेरित किया। ऐसा करने वालों का उन्होंने खाता खुलवाया और रुपये जमा कराकर सहारा के लिए पूंजी तैयार की। इसके बाद उन्होंने सिनेमा रोड पर यूनाइटेड टाकीज के पास छोटी सी दुकान में कार्यालय खोला।
महज 2000 रुपये एक कुर्सी व मेज के साथ सहारा इंडिया की नींव रखने वाले सहाराश्री सुब्रत राय फर्श से अर्श पर पहुंच गए।
फिर वक्त बदला, हालात बदले और सुब्रत रॉय जब सेबी, कानूनी घेरे और जेल के चक्कर में फंसे तो उनके दोनों बेटे हजारों करोड़ रुपए लेकर विदेश जा बसे। 
सुब्रत रॉय की मौत के बाद क़रीब दो दिन इंतज़ार के बावजूद दोनों बेटे और पत्नी अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। सहाराश्री के बेटों ने बड़े ही बेशर्मी और ढिठाई से आने में अपनी असमर्थता जता दी। शायद उन्हें डर हो कि सुब्रत रॉय और सहारा इंडिया के केस मुकदमे की गाज उन्हीं पर न गिर जाए। हालांकि अगर उन पर गाज गिरनी होगी तो विदेश से भी उठा लिए जाएंगे। 
शायद ऐसे ही मौके के लिए किसी शायर ने लिखा है:-
मेरी नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ी है ग़ैरों ने
मरे थे जिनके लिए वो रहे वज़ू करते”
आज के जमाने का सबसे बड़ा सच की बाप दादाओं की धन दौलत से प्रेम करने वाले खुद उनसे ही प्रेम करना भूल जाते हैं और जीते जी ही नहीं मरने के बाद अंतिम संस्कार और क्रिया कर्म तक से किनारा कर लेते हैं।
तभी तो कहा गया है :-
पूत कपूत तो का धन संचय
पूत सपूत तो का धन संचय”
सुब्रत रॉय ने अपने परिवार को दुनिया की हर शान ओ शौकत मुहैया कराने के लिए कितने तिकड़म किए, कितने गरीबों की खून पसीने और गाढ़ी मेहनत की कमाई लूट लिया लेकिन अंत में उन्हें क्या मिला?
जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है. जिनके लिए आप दुनिया का हर जतन करके एक एक पैसा जोड़ते हैं वही लोग अंत में आप से किनारा कर लेते हैं।
सुब्रत रॉय का अंत देखकर हम सभी को आत्म मंथन करने की जरूरत है कि क्या हम सब जो कुछ भी कर रहे हैं उसमें कुछ ऐसा तो नहीं कर रहे जिससे किसी गरीब या बेबस की बद्दुआ ले रहे हैं? 
ध्यान रखें की कहीं आप भी किसी मजबूर और बेबस की खुशियां मिटाकर अपने परिवार के लिए खुशियां तो नहीं जुटा रहे?
यदि आप दूसरों की खुशियां छीनकर अपने परिवार के लिए खुशियां जुटा रहे हैं तो आप की खुशियों पर धिक्कार है, क्योंकि असली खुशी ये नहीं, असली खुशी तो किसी मजबूर और बेबस के चेहरे पर खुशी लाने का कारण बनने में है।

Leave a Comment

45 − 39 =
Powered by MathCaptcha

error: Content is protected !!
How To Speed Up Laptop? ghar baithe online paise kaise kamaye how to make money online for free