मोदी विरोध का एक तरीका ये भी…

अभी पिछले दिनों देवरिया (यूपी) जिले के बैतालपुर के एक गांव जंगल सहजौली जाना हुआ तो देखा सड़क के दोनों तरफ गन्दगी से बुरा हाल था। पता चला वहां के लोग आज भी सुबह-शाम सड़क किनारे ही निपटते हैं। 

मैंने जब पूछा कि क्या यहां मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान में लोगों के यहां शौचालय नहीं बनवाये गए हैं, तो लोगों ने बताया की सरकारी शौचालय तो सबके घरों में बन चुके हैं लेकिन यह यादव बहुल क्षेत्र है और यहां की अधिकतर आबादी समाजवादी पार्टी की समर्थक है इसलिए ये लोग मोदी और भाजपा के विरोध में जानबूझकर सड़कों पर गन्दगी फैलाते हैं। 
उनकी ये बातें सुनकर मैं हैरान रह गया और सोच में पड़ गया कि हमारे देश के लोगों की सोच किस दिशा में जा रही है? क्या इस तरह भी किसी राजनेता या पार्टी का विरोध किया जा सकता है? एक तरफ तो हमारा समाज फ़टी जीन्स पहनकर खुद को एडवांस साबित करता है वहीं दूसरी ओर सोच इतने निचले स्तर की? 
अभी कुछ दिनों पूर्व मेरा सन्त कबीर नगर जिले के मेंहदावल क्षेत्र में भी जाना हुआ था। वहां के मुस्लिम बहुल क्षेत्र के गांवों के लोगों का भी यही हाल था। अधिकतर महिला-पुरुष सुबह-सुबह सड़क के दोनों किनारे गन्दगी फैलाते दिखायी दिए। जबकि उन सभी के घरों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत मुफ्त शौचालय बना हुआ मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा। 
मतलब ये कि मोदी से नफरत है, उनका विरोध है तो ये लोग मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का विरोध खुलेंआम सडकों पर गन्दगी फैलाकर कर रहे हैं। या यूं कहें कि ये लोग स्वच्छ भारत अभियान को असफल बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि ये अभियान मोदीजी द्वारा चलाया गया था।
मोदी विरोध का इनका ये तरीका हास्यास्पद तो है ही साथ ही इनकी गिरी हुई सोच और छोटी मानसिकता को भी दर्शाता है। 


प्रजातन्त्र में हर व्यक्ति अपने मनपसन्द नेता या पार्टी को सपोर्ट करने के लिए स्वतंत्र है, या किसी भी पार्टी या नेता का विरोध करे तो ये उसकी इच्छा और सोच है, इसको कोई नहीं रोक सकता लेकिन स्वच्छ भारत अभियान का इस प्रकार से विरोध करना कहाँ तक जायज है? 
मोदी विरोधी ये लोग उनके विरोध में इस तरह से अंधे कैसे हो सकते हैं कि अपने ही आसपास और अपने ही घर के रास्तों पर गन्दगी फैलाएं? 
ऐसे अंध विरोधियों को कौन समझाए कि उनके द्वारा खुले में शौच करने से जो गन्दगी फैल रही है उससे मोदी जी नहीं बल्कि उनका अपना ही परिवार और उनकी भावी पीढ़ी ज्यादा प्रभावित होगी। 

कहा जाता है कि भारत देश बहुत से मामलों में अनोखा, अतुल्य है और यहां के लोग भी अनोखे हैं और उनकी सोच भी, लेकिन लोगों की इस तरह की सोच देखकर मुझे पहली बार अपने भारतीय होने पर गर्व नहीं बल्कि शर्मिंदगी हुई।

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