वो बचपन की ‘रफ़ कॉपी’

जब हम पढ़ते थे उस वक्त यूं तो हर subject की कॉपी अलग होती थी। लेकिन एक कॉपी ऐसी थी जो हर subject को संभालती थी। उसे हम “रफ़ कॉपी” कहते थे 

यूँ तो रफ़ का मतलब खुरदुरा होता है।
लेकिन ये हमारे लिए बहुत ही सॉफ्ट, बहुत ही प्रिय और दिल के सबसे करीब होती थी।

क्योकि…वो All in One होती थी..
उसके कवर पर हमारा कोई पसंदीदा चित्र होता था। उसके पहले पन्ने पर डिजाइन में लिखा हुआ हमारा नाम। शानदार राइटिंग में लिखा हुआ पहला पेज। बीच में लिखते तो हिंदी थे पर लगता था जैसे कई भाषाओं का मिश्रण हो।



अपना लिखा खुद नही समझ पाते थे।
उस रफ़ कॉपी में हमारी बहुत सी यादें छुपी होती थी। वो दोस्ती की बातें..कुछ अजीबोगरीब ड्राइंग…कुछ खुशियां, कुछ बेमतलब के दर्द…और कुछ उदासी भी छुपी होती थी…उस रफ कॉपी में..

हम रफ़ कॉपी में कुछ ऐसे code words भी लिखते थे जो सिर्फ और सिर्फ हम ही समझ सकते थे या कुछ दिन बाद हम भी नहीं।

उसके आखिरी पन्नों पर वो राजा, मंत्री, चोर, सिपाही का स्कोर बोर्ड, वो दिल छू जाने वाली शायरी…कुछ आड़े टेढ़े से चित्र..मतलब हमारे बैग में कुछ हो न हो रफ़ कॉपी जरूर रहती थी।


लेकिन अब वो दिन काफी दूर चले गए और वो रफ़ कॉपी भी हमसे बहुत दूर चली गयी…न जाने कहाँ…

न जाने कहाँ होंगे वो बचपन के दोस्त?
न जाने कहाँ गुम हो गया वो प्यारा बचपन और न जाने कहाँ खो गईं वो बचपन की यादें?

लेकिन आज भी…

“जो दोस्तों के साथ बिताए पल, उनकी याद बाकी है”
“बचपन में जैसे जीते थे, वो अंदाज बाकी है”

आज भी बचपन की उस रफ़ कॉपी के हर पन्ने की याद इस दिल में कहीं बाकी है..

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