अपनी-अपनी कौम के गद्दार और वफादार?

सोचता हूँ कि अक्सर बहुत से हिन्दू लोग मुस्लिमों को गद्दार कहते हैं लेकिन मुझे लगता है कि वो कितने भी गद्दार क्यों न हों अपनी कौम, अपनी बिरादरी, अपने धर्म के प्रति सौ प्रतिशत वफादार होते हैं। जबकि हिंदुओं में अपनी कौम और अपने धर्म के प्रति गद्दार बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
इतिहास गवाह है कि जयचन्द न होता तो देश गुलाम न होता। ये जयचन्द कभी इस देश से खत्म नहीं हुए, ये तो बढ़ते ही जा रहे हैं। जब तो जयचंदों की पूरी फौज ही तैयार है इस देश में।



उदाहरण के तौर पर टॉप पर है कन्हैया कुमार, फिर आती है फिल्मी नचनिया स्वरा भास्कर, दीपिका पादुकोण की अभी नई एंट्री हुई है। अनुराग कश्यप भी लेफ्ट राइट हो गया लगता है। जावेद अख्तर & फैमिली से हिंदुओं को कुछ तो सबक लेना ही चाहिए कि अपनी कौम से वफादारी किस तरह निभाना चाहिए। नेताओं में तो बहुत बड़ी लिस्ट है। यहाँ गांधी फैमिली को कौम का गद्दार इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि इनका DNA तो फ़िरोज़ खान का है तो ये गद्दारी नहीं वफादारी ही कर रहे हैं सौ फीसदी। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव आदि राजनीति में हमारी कौम के कुछ मुख्य गद्दार हैं। यहां लेफ्ट वालों का जिक्र न करना तो इस टॉपिक को अधूरा छोड़ने जैसा ही है। ये लेफ्ट वाले तो पता नहीं किसके लेफ्ट चलते हैं, मुझे तो लगता है देशद्रोहियों के लेफ्ट चलते होंगे।


वैसे तो जेएनयू आजकल एक बड़ी फैक्ट्री है ऐसे कौम के गद्दारों को तैयार करने की। हम मुस्लिमों को गद्दार कहते हैं लेकिन असली गद्दार तो हिंदुओं के अंदर छिपे बैठे हैं। आज अपनी कौम में ये गद्दार न होते तो माइनॉरिटी वाले सिर पर चढ़कर नहीं मूत रहे होते इस देश में। एक मुस्लिम अपनी कौम के आतंकवादी का भी विरोध नहीं करता कभी, सिर्फ समर्थन करता है। क्योंकि वो अपनी कौम के प्रति सौ फीसदी वफादार है। वहीं हिंदुओं में छिपे गद्दार अपनी ही कौम के दुश्मन। धार्मिक कट्टरता क्या होती है हिंदुओं को इनसे सीखना चाहिए।
यदि इन परिस्थितियों को बदलना है तो सबसे पहले अपनी कौम में छिपे इन गद्दारों को ठीक करने की जरूरत है। स्वरा भास्कर जैसे लोगों को उनकी जड़, उनका DNA याद दिलाने की जरूरत है। वैसे भी अपने बॉलीवुड का इस्लाम प्रेम तो जगजाहिर ही है। वहां तो हर फिल्म में इनको महिमामंडित करने का रिवाज ही रहा है। वरना एक हकला खुद को अमिताभ के बराबर तो कभी न समझता। 
मुझे बहुत से लोग कट्टर हिन्दूवादी या साम्प्रदायिक का टैग लगाएंगे या लगाते होंगे, क्योंकि मैं मुस्लिम को मुस्लिम साफ साफ लिख देता हूँ जबकि अक्सर लोग ‘एक धर्म विशेष’ करके लिखते हैं। मेरी समझ से वो न तो धर्म है न ही विशेष है। धर्म आतंकवादी नहीं बनाता, धर्म जमाती बनाकर कोरोना नहीं फैलाता, धर्म सेवा में लगे डॉक्टरों पर हमले नहीं कराता। ये क्या धर्म है? कैसा धर्म है? मुझे आजतक नहीं समझ में आया। 
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना? तो फिर ये कैसा धर्म है जो सिर्फ बैर करना, हिंसा, अराजकता, अस्थिरता, संक्रमण फैलाना ही सिखाता है? ये धर्म नहीं है ये दुनिया का मैल है और सारी दुनिया इस मैल से साफ होना चाहती है।
#जय हिंद!!
#जय श्रीराम!!

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