lalu ke jungleraj ki kahani in hindi
– जब लालू के गुर्गे शहाबुद्दीन ने अपराध और बर्बरता की हदें पार की
– सीवान के व्यवसाई चंदा बाबू के 2 बेटों को तेज़ाब से नहला दिया
– लाश के टुकड़े कर बोरे में भरकर फेंक दिया था
-इसके बाद भी शाहबुद्दीन जीवन भर लालू का यार रहा
-शहाबुद्दीन के तेज़ाब कांड की वो टाइमलाइन, जिसे पढ़कर आप कांप उठेंगे…
lalu ke jungleraj ki kahani in hindi: बात वर्ष 2004 की है, बिहार के सीवान में शहाबुद्दीन का आतंक चरम पर था. सीवान में चंद्रेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू एक छोटे से व्यवसाई थे. मुख्य बाजार में दो दुकानें थीं. एक दुकान पर उनका बेटा सतीश बैठता था, दूसरे पर दूसरा बेटा गिरीश.
उन दिनों शहाबुद्दीन सीवान में अपनी खुद की अदालत लगाता था. उसके गुर्गे खुलेआम जमीनों पर कब्ज़ा, रंगदारी और वसूली करते थे.
अगस्त 2004 के पहले सप्ताह में शहाबुद्दीन के गुंडों ने चंदा बाबू के निर्माणाधीन मकान में बनी एक दुकान पर कब्जा करने की कोशिश की. चंदा बाबू ने इसका मुकाबला किया और दुकान पर कब्ज़ा नहीं होने दिया.
यहां से शहाबुद्दीन भड़क गया और शुरू हुआ उसकी बर्बरता का काला अध्याय…
lalu ke jungleraj ki kahani in hindi
वो 16 अगस्त, 2004 का दिन था, शहाबुद्दीन के गुर्गे के चंदा बाबू की किराने की दुकान पर रंगदारी मांगने पहुंचे. दुकान पर उनका बेटा सतीश बैठा था, जिससे 2 लाख रुपए मांगे गए. सतीश ने रंगदारी देने से माना कर दिया और कहा कि पैसे नहीं है. गुंडों ने मारपीट शुरू की तो सतीश का भाई 30-40 हजार रुपए देने को तैयार हो गया.
शहाबुद्दीन के गुंडों ने सतीश की दुकान पर धावा बोल दिय. नगदी लूट ली गई, दुकान ध्वस्त कर दी गई. इसके बाद शहाबुद्दीन के गुंडे सतीश को उठा ले गए.
थोड़ी देर बाद सतीश के भाई गिरीश की दुकान पर धावा बोल दिया और उसे भी उठा लिया. सतीश और गिरीश के भाई राजीव को भी उठा लिया गया.
अब आगे लालू के जंगलराज और शहाबुद्दीन के आतंक की बर्बर कहानी है…
चंदा बाबू के तीनों बेटों का अपहरण कर सीवान के प्रतापपुर ले जाया गया. प्रतापपुर में शहाबुद्दीन की कोठी थी. ईख के खेत के पास गिरीश और सतीश को पेड़ से बांध दिया. राजीव को बैठाकर रखा गया. कुछ देर बाद तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन वहां पहुंचा. शहाबुद्दीन ने अपना कोर्ट लगाया और फैसला सुनाया कि दोनों को तेज़ाब से नहला दो.
शहाबुद्दीन का फरमान सुनते ही उनके गुर्गों ने गिरीश और सतीश पर तेजाब डालना शुरू किया. दोनों पर तेज़ाब से भरी बाल्टियां उड़ेल दी गईं. सतीश और गिरीश तड़पते रहे, तेज़ाब से धुआं उठता रहा, गंध फैलती रही. जैसे जैसे सतीश और गिरीश चिल्लाते, शहाबुद्दीन और गिरीश उतना ही अट्टहास करते. इसके बाद दोनों की लाश के टुकड़े किए गए. लाश के टुकड़ों को बोरे में भरकर फेंक दिया गया.
चंदा बाबू का तीसरा बेटा एकदम सुन्न पड़ गया. राजीव को बंधक बना चंदा बाबू से फिरौती की मांग शुरू कर दी.
जिस दिन ये वारदात हुई, उस दिन चंदा बाबू अपने भाई के पास पटना गए थे. वारदात की ख़बर पूरे सीवान में आग की तरह फैल गई. किसी ने पटना में चंदा बाबू को फोन करके कहा कि वह सीवान न आएं वरना मार दिए जाएंगे. उन्हें बताया गया कि उनके दो बेटे मारे जा चुके हैं, जबकि एक बेटा राजीव कैद में है. राजीव वहीं शहाबुद्दीन की कैद में था. मगर दो दिनों बाद वह किसी तरह भागने में कामयाब हो गया.
राजीव किसी तरह से गन्ने से लदे एक ट्रैक्टर में छिपकर चैनपुर पहुंचा. वहां से वो उत्तर प्रदेश के पड़रौना जा पहुंचा. वहां उसने स्थानीय सांसद के घर शरण ली. इस दौरान चंदा बाबू की पत्नी, दोनों बेटियां और एक अपाहिज बेटा भी घर छोड़कर जा चुके थे.
चंदा बाबू का पूरा परिवार तबाह हो चुका था, लेकिन शहाबुद्दीन का खौफ और आतंक अभी भी जारी था.
चंदा बाबू हिम्मत जुटाकर सीवान पहुंच गए. उन्होंने वहां पुलिस अधीक्षक से मिलने की कोशिश की लेकिन मिल नहीं सके. थाने पहुंचे तो थानेदार कांप उठा और कहा कि तुरंत सीवान छोड़ दीजिए.
चंदा बाबू छपरा के सांसद को लेकर पटना में एक बड़े नेता के पास गए. उस नेता ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि मामला सीवान का है, तो वह कुछ नहीं कर सकते.
तभी शहाबुद्दीन के गुर्गों ने चंदा बाबू के पटना वाले भाई को फोन कर धमकी दी. वो धमकी से इतना घबरा गए कि उन्होंने फौरन चंदा बाबू का साथ छोड़ दिया और फौरन अपना तबादला पटना से मुंबई करा लिया. वहां जाने के बाद भी उनको धमकी भरे फोन किए गए, जिसकी वजह से उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई.
भाई की मौत की खबर सुनकर चंदा बाबू बेहोश हो गए. अब चंदा बाबू सीवान छोड़कर पटना में रहने लगे. बेसुध घूमते चंदा बाबू को एक विधायक ने शरण दी. पटना में ही चंदा बाबू किसी तरह से एक बार फिर सोनपुर के एक बड़े नेता से मिले. नेता ने मदद का आश्वासन दिया और बिहार के डीजीपी नारायण मिश्र से बात की. डीजीपी ने आईजी को पत्र लिखा. आईजी ने डीआईजी को और फिर डीआईजी ने एसपी को पत्र लिखा लेकिन चंदा बाबू को कोई मदद नहीं मिली.
चंदा बाबू निराश होकर दिल्ली चले गए. वहां उनकी मुलाकात राहुल गांधी से हुई, मगर केवल आश्वासन मिला. हिम्मत करके चंदा बाबू फिर सीवान आए. सीवान आकर एसपी से मिले तो एसपी ने चंदा बाबू को सिवान छोड़ देने की बात कही. निराश होकर चंदा बाबू फिर से डीआईजी ए.के. बेग से मिलने पहुंच गए. डीआईजी ने उनकी बात सुनकर एसपी को फटकार लगाई और फौरन सुरक्षा देने के लिए कहा. उसके बाद चंदा बाबू को सुरक्षा मिल गई. तब वह सीवान में ही रहने लगे.
इस दौरान बिहार में RJD की सरकार थी. चंदबाबू की न तो सरकार सुन रही थी और प्रशासन पंगु बना हुआ था. 2005 में सरकार बदली NDA से नीतीश कुमार CM बने. इसके बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हुआ. उसी साल शहाबुद्दीन से दिल्ली से गिरफ्तार हुआ. नीतीश सरकार आने के बाद शहाबुद्दीन पर दर्ज मामलों की सुनवाई भी तेजी से होने लगी, लेकिन अभी शाहबुद्दीन का खौफ ख़त्म नहीं हुआ.
सालों गुजर गए लेकिन चंदा बाबू को न्याय नहीं मिला. शहाबुद्दीन को निचली अदालत ने इस बीच कई मामलों में सजा मिली और वह जेल में था. शाहबुद्दीन के खिलाफ 39 हत्या और अपहरण के मामले थे. 38 में उसे जमानत मिल चुकी थी और 39वां केस राजीव का था जो अपने दो सगे भाईयों की हत्या का चश्मद्दीद गवाह था.
चंदा बाबू हिम्मत हार रहे थे. 2014 में 26 मई को नरेंद्र मोदी ने PM पद की शपथ ली. 30 मई 2014 को चंदा बाबू के बेटे राजीव की शादी हुई. 19 जून 2014 को राजीव की कोर्ट में गवाही होनी थी, जिसके आधार पर शहाबुद्दीन को सजा मिलती. तभी 2016 जून 2014 को राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस तरह चंदा बाबू के 3 बेटे लालू यादव के दोस्त शहाबुद्दीन ने या तो मार दिए या मरवा दिए.
राजीव की हत्या के साथ शहाबुद्दीन की जमानत का रास्ता साफ हो गया था. आखिरकार 11 साल बाद शहाबुद्दीन जमानत पर बाहर आ गया. उसके बाहर आने से सूबे की सियासत में हलचल मच गई. तब सरकार की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कर दी और उसे फिर से जेल जाना पड़ा.
चंदा बाबू पूरा जीवन न्याय की लड़ाई लड़ते रहे. वे चाहते थे कि उनके बेटों के हत्यारे शहाबुद्दीन को फांसी हो. फांसी तो नहीं हुई लेकिन शहाबुद्दीन जेल में बंद जरूर रहा.
दिसंबर 2020 को न्यायालय में इंसाफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते चंदा बाबू का निधन हो गया. 1 मई 2021 को शहाबुद्दीन का कोरोना के कारण निधन हो गया
शहाबुद्दीन का बेटा ओसामा और बीवी हिना आज भी RJD में है. न्याय और मर्यादा के नाम पर अपने बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से निकालने वाले लालू यादव शहाबुद्दीन के आतंक पर हमेशा चुप रहे. सिर्फ चुप नहीं रहे बल्कि हमेशा शहाबुद्दीन का साथ दिया और आज भी दे रहे हैं.
आप स्वयं तय करें कि आखिर लालू और RJD का ये कैसा न्याय है, जहां उनकी सत्ता शहाबुद्दीन जैसे कुख्यात अपराधी को खुला संरक्षण देती है और बिहार के विकास में अपना योगदान देने वाले चंदा बाबू को उनका पूरा परिवार तबाह हो जाने के बाद भी न्याय नहीं मिलता.