तो क्या अब हिंदुस्तान में आयुर्वेद भी साम्प्रदायिक हो गया है?

जब बाबा रामदेव ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की कि उनकी कम्पनी Patanjali ने कोरोना की दवा बनाने में सफलता हासिल कर ली है, तो उसके तुरंत बाद से ही तमाम मीडिया में उनके खिलाफ पोस्टमार्टम और खिंचाई वाला दौर शुरू हो गया। तमाम न्यूज़ चैनलों और प्रिंट मीडिया में बाबा रामदेव की खिंचाई करते हुए यह कहा गया कि उन्होंने लोगों को मूर्ख बनाया है और उन्होंने इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल कोरोना के गंभीर मरीजों पर नहीं किया है। विरोध करने कई बहुत बड़े कारणों में से एक है अरबों खरबों का दवा का कारोबार। जिसमें पूरे विश्व में न जाने कितने बड़े ड्रग माफिया सक्रिय हैं। अमेरिका जैसे देशों में तो इन्हीं ड्रग माफियाओं की फंडिंग से पार्टियां चुनाव लड़ती और जीतती भी हैं। मतलब सरकार भी इन्हीं ड्रग माफियाओं के इशारे पर चलती है। यही कारण है कि कुछ दिन पहले ट्रम्प ने रेमडेसीवीर दवा को कोरोना के इलाज के लिए कारगर साबित किया था। दुनिया का सबसे बड़ा कारोबार है यह जिसमें न जाने कितने ही दलाल और बिचौलिए जी खा रहे हैं। अब एक लंगोट वाला बाबा इन सबकी दुकान बंद कराने पर लगा है लगभग मुफ्त इलाज निकालकर, तो तकलीफ तो होगी ही। बाबा के इस प्रयास को असफल बनाने की हर संभव कोशिश की जाएगी।


अब यह कोई पहला वाक्या नहीं है जब बाबा रामदेव और Patanjali का मीडिया और देश के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग ने विरोध करना शुरू किया है। वामपंथी तो हमेशा से बाबा रामदेव और पतंजलि का विरोध करते रहे हैं। मोटी बिंदी वाली वृंदा करात का विरोध तो हर किसी को याद होगा, जब मल्टी नेशनल कंपनियों से पैसा खाकर उसने पतंजलि के हर प्रोडक्ट को मांसाहारी साबित करने की पुरजोर कोशिश की थी। 
क्योंकि इस देश में तो हर चीज का विरोध होता है। इस देश में तो यदि हमारे देश की सेना दुश्मन के ठिकानों पर बम गिराकर आती है या उन्हें हानि पहुंचाती है तो उसका भी सबूत मांगा जाता है और सरकार की खिंचाई भी की जाती है। साथ ही सेना को भी झूठा साबित किया जाता है। 


इस देश में तो फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फ्रीडम ऑफ़ स्पीच अब बहुत ही खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है, जो कि अब एक देशद्रोही बनाने का काम कर रहा है। फ्रीडम आफ स्पीच और फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के बहाने अपने देश को बुरा भला कहना, देश की सेना को झूठा साबित करना, राष्ट्रध्वज का अपमान करना और देश विरोधी नारे लगाना, इस देश में अब यही सब होने लगा है।
गौरतलब है कि कोरोना के लिए पतंजलि की दवा का विकास पतंजलि रिसर्च इंस्टीटूट, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, जयपुर द्वारा संयुक्त शोध में किया गया है। पतंजलि के लगभग 500 वैज्ञानिकों ने कोरोनोवायरस का इलाज खोजने के लिए महीनों तक अथक प्रयास किया।



पतंजलि ने जिस डॉo बलवीर सिंह तोमर के साथ मिलकर कोरोना की दवा बनाई है वे गजराराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर से पढ़े हुए हैं। डॉक्टर/प्रोफेसर बलवीर सिंह तोमर मॉडर्न मेडिकल साइंस की प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित संस्था निम्स यूनिवर्सिटी राजस्थान के चांसलर और सर्वेसर्वा हैं। डॉ बलबीर सिंह तोमर ने किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल स्कूल ऑफ मेडिसिन लंदन से पढ़ाई की। इसके बाद इंग्लैंड में काम भी किया। इंग्लैंड में हावर्ड यूनिवर्सिटी में डॉक्टर तोमर ने कई बड़ी रिसर्च भी की है।
लेकिन यहाँ सबसे अहम मुद्दा तो यह है कि अरबों खरबों के इस खेल में कैसे पतंजलि और बाबा रामदेव सारा क्रेडिट ले जाएं। कैसे एक भगवाधारी लंगोट वाला बाबा सबको पछाड़ देगा। यदि मल्टी नेशनल कंपनी दवा बनाती तो बीच में कमीशन खोरी करके भी बहुतों की कई पीढियों के वारे न्यारे हो जाते। अब ये कैसे बर्दाश्त होगा कि एक भगवा लँगोट वाला बाबा सबको पीछे छोड़ कर आगे निकल जाए। 
दवा भी इतनी सस्ती निकाल दी कि सबके अरमानों पर पानी फेर दिया। जबकि यहाँ तो कफ़न में भी कमीशन खाते हैं लोग। असली बात तो यही है, विरोध की जड़ यहां है। लेफ्ट वालों और खान्ग्रेसी चमचों को ये बात हजम नहीं होती कि कोई भगवा लंगोट वाला बाबा उनसे आगे निकल जाए। 



आयुर्वेद को भी इन लोगों ने अब हिंदुत्व और भगवा से जोड़ दिया है। आयुर्वेद का पूरी तरह साम्प्रदायिकरण करके रख दिया है इन लोगों ने। 
मदर टेरेसा को दुनिया एक महान संत के रूप में जानती है। सुनते हैं कि उनके छूने मात्र से कैंसर के मरीज भी ठीक हो जाया करते थे। लेकिन अंदर की सच्चाई यह है कि मदर टरेसा ईसाई धर्म की एक बहुत बड़ी Conversion एजेंट थी। 
ईसाईं धर्म में संत और महात्मा उसे माना जाता है जो अधिक से अधिक ईसाईकरण करवा सके, धर्मान्तरण (conversion) करा सके। जी हां यही सच है, जितने भी ईसाई धर्मगुरु होते हैं उनका सबसे बड़ा उद्देश्य पूरी दुनिया में अधिक से अधिक लोगों को ईसाई बनाना होता है। समय समय पर ऐसी खबरें भी देखने सुनने को मिलती रहती हैं जब इनके पादरियों द्वारा सामूहिक रूप से धर्मान्तरण कराया जाता है। 
आज जो भारत देश में ईसाई देखने को मिलते हैं वे कहां से आये हैं? हिंदुस्तान में सनातन धर्म हिन्दू है यहाँ अन्य जो भी धर्म आज दिखते हैं वे सब धर्मान्तरण (Conversion) की ही देन हैं। हिंदुस्तान में लोभ लालच देकर या जबरदस्ती धर्मान्तरण कराया गया है हिंदुओं का।



हिंदुस्तान में आज जो भी इसाई हैं वे सभी 2-3 पीढ़ी पहले तक हिन्दू अनुसूचित जाति-जनजाति के लोग थे। चूंकि उस समय छुआछूत प्रथा के कारण इन्हें समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिलता था इसलिए इन लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया। 
मुझे याद है जब मैं छोटा था तो ईसाई मिशनरीज द्वारा लाल रंग की बाइबिल मुफ्त बंटवाई जा्ती थी। उत्सुकतावश उस समय मैंने भी वो बाइबिल पढ़ी थी।
कई मुस्लिमों ने खुद ही मुझसे बताया कि वे पहले हिन्दू ही थे। और गांव से तो सबकी असलियत खुल ही जाती है। क्योंकि शहर में तो आकर अधिकतर लोग रंगा शियार बन जाते हैं लेकिन उनकी असली कुंडली का पता तो गांव से चल ही जाता है। 
मैं एक बार अपने गांव पर था तभी पोस्टमैन आया और किसी का लेटर देखकर उसका पता पूछने लगा। नाम के आगे चौधरी लिखा था तो छानबीन करने पर पता चला कि ये तो हरिजन बस्ती का फलां आदमी है जो मुम्बई में मजदूरी करता है। तब पता चला कि शहर में जाकर वो हरिजन से चौधरी बन चुका है।


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