हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है ये तो शायद हम सबको मालूम ही नहीं, लेकिन इस बात की पक्की गारंटी है कि हमारे समाज के कुछ लोग इस कोरोना महामारी से भी ज्यादा खतरनाक है।
आजकल हर जगह किसी शादी-विवाह या अन्य किसी भी फंक्शन में इतने अभद्र और अश्लील भोजपुरी गाने बजाये जाते हैं, जिन्हें सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है। आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे समारोहों में उपस्थित महिलाओं पर क्या बीतती होगी। ऐसे गाने बजने से वहां का पूरा माहौल अश्लीलता भरा हो जाता है। जिसके बाद वहां पर उपस्थित पुरुष जब ऐसे गाने सुनते हैं तो अपने आसपास से गुजर रही महिलाओं पर अश्लील कमेंट्स करते हैं।
ऐसा देखा गया है कि कई बार ये सब एक बड़े विवाद का कारण भी बनता है और शादी-विवाह जैसा शुभ समारोह मारपीट और खून खराबे वाला स्थान बन जाता है। आजकल आर्केस्ट्रा डांस में लेडीज डांसर का भी खूब चलन है, जो एक से एक अश्लील भोजपुरी गानों पर डांस करती हैं और लोग शराब पीकर उनके साथ ठुमके लगाने के लिए मारपीट खून खराबा सब करते हैं। मैंने अधिकतर आर्केस्ट्रा डांस वाली शादियों में जरूर बवाल होते देखा है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बसों, टेम्पो आदि में हर तरफ ड्राइवर अपनी पसंद के अश्लील भोजपुरी गाने जमकर बजाते दिखाई देते हैं। ऐसे सड़क छाप लोग जब किसी महिला को अपनी ऑटो या बस में बैठे हुए देखते हैं तो इनके अंदर का गटर छाप इंसान तुरंत बाहर आ जाता है और ऐसे लोग तेज आवाज में अश्लील गाने बजाना शुरू कर देते हैं। ऐसे लोगों के दो शौक जरूर होते हैं एक अश्लील गाने सुनना और दूसरा मुंह में गुटखा, खैनी भरे रहना और चारो ओर थूकते रहना। इनका ये गटर छाप शौक शाम होते होते थोड़ा और हाई होता है जिसके बाद ऐसे लोग दारू भी चढ़ा लेते हैं। फिर वही गिरते पड़ते घर जाना और बीवी-बच्चों से झगड़ा-मारपीट आदि। कुछ तो ऐसे महापुरुष भी हैं जो सुबह मुंह धोते ही एकाध पौवा मार लेते हैं। ये आज के हमारे समाज के ज्यादातर गटर छाप लोगों की दिनचर्या है।
हमारा देश और पूरा विश्व इस समय कोविड-19 महामारी का जबरदस्त शिकार हुआ है और जिस प्रकार से इस महामारी ने हम सब पर अपना कहर ढाया है, ऐसे युगपुरुष लोग उससे भी नहीं डरते। उनकी विशेष दिनचर्या पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा है कोरोना का। ये लोग न तो सरकार की किसी गाइडलाइंस को मानते हैं और न ही उन्हें अपनी या अपने परिवार की जान की कोई परवाह है।
ये कहना ज्यादा सही होगा कि यही हमारे समाज के ऐसे कलंक हैं जिनके कारण आज देश के सीधे सादे जिम्मेदार नागरिक, जो हर नियम कानून का पालन करते हैं और सारी सावधानी बरत रहे हैं उसके बाद भी वे कोरोना की चपेट में आकर अपनी जान गंवा रहे हैं।
आजकल शादियों का सीजन चल रहा है साथ ही देश में हर तरफ तबाही मची हुई है, लोग अस्पताल, बेड, इलाज, दवा, ऑक्सीजन के बिना मर रहे हैं। शमशान और कब्रिस्तान तक में लाइनें लगी हुई हैं। लेकिन जिनके यहाँ शादियां हैं उनके यहाँ देखिए तो कोई एहतियात, सावधानी या कोरोना गाइडलाइंस का पालन देखने को नहीं मिलेगा। हर तरफ जमकर भीड़-भाड़ और लोगों का झुंड हर शादी में देखने को मिल रहा है।
अब क्या हर जगह पुलिस जाकर डंडा भांजे? खुद हर गलती करेंगें और जब स्थिति बिगड़ेगी, लोग मरेंगे तो सरकार दोषी है? नागरिक होने और जिम्मेदार नागरिक होने में बड़ा फर्क है। नागरिक तो आप इसलिए हो गए कि आपने इस देश में जन्म लिया। लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक तो आपको खुद बनना पड़ेगा, यदि आपको अपने परिवार, अपने समाज, अपने राज्य और अपने देश को आगे बढ़ाना है तो। यह देश के हर नागरिक का पहला कर्तव्य है। सरकार को, सिस्टम को कोसने और दोष देने से आप अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते।
आप खुद सोचिए कि यदि आप अपने 3-4 सदस्यों वाले परिवार में सबको किसी नियम या गाइडलाइंस का पालन नहीं करा पा रहे तो 1,396,053,249 जनसंख्या वाले इस देश को कोई भी सरकार किस तरह संभाल पाएगी?
देश में हर जगह ऐसे गांव और मोहल्ले हैं जहां खतरों के खिलाड़ी नियमों को तोड़कर सरकार को खुली चुनौती दे रहे है। देश का हर जिम्मेदार नागरिक इस महामारी से बचने की जद्दोजहद में लगा है, लेकिन कुछ समाज और इंसानियत के दुश्मन लोग सभी को मौत के मुंह में धकेल देना चाहते हैं।
शहर के लोगों में थोड़ी जागरूकता है लेकिन इस महामारी को लेकर ग्रामीण क्षेत्र में बिल्कुल छूट जैसी दिख रही है। लोग मास्क तक पहनना पसंद नहीं कर रहे हैं। और स्थानीय जनप्रतिनिधि भी सिर्फ 5 साल में एक बार उनका वोट लेने के लिए ही आते हैं, जागरूकता के लिए कोई ऐसा कार्य, कोई ऐसा एक्टिविटी पंचायत लेवल पर नहीं किया जा रहा है, जिससे लोग जागरूक हो और इस भयानक महामारी से बचने का उपाय और लोगों को बचाने की कोशिश कर सकें।
आप सोचिए ऐसे में जबकि लोगों की जान को खुद खतरा है तब पर भी लोग सरकार के मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग संबंधी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं, तो इस देश का क्या हाल होगा?
अपने इस लेख के माध्यम से मैं आज आप सभी से यह निवेदन करना चाहता हूं कि इस आपदाकाल में एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज निभाते हुए अपने परिवार, अपने समाज और अपने देश को बचाएं। ख्याल रहे कि आपकी एक छोटी सी लापरवाही सबके लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
“गुज़र रही है ज़िन्दगी ऐसे मुकाम से,
अपने भी दूर हो जाते हैं, ज़रा से ज़ुकाम से !
तमाम क़ायनात में “एक क़ातिल बीमारी” की हवा हो गई, वक़्त ने कैसा सितम ढा़या कि “दूरियाँ” ही ‘दवा” हो गई।
आज सलामत रहे, तो कल की सहर देखेंगे,
आज पहरे में रहे, तो कल का पहर देखेंगें।
सासों के चलने के लिए,
कदमों का रुकना ज़रूरी है,
घरों मेँ बंद रहना दोस्तों,
हालात की मजबूरी है।
अब भी न संभले, तो बहुत पछताएंगे,
सूखे पत्तों की तरह, हालात की आंधी में बिखर जाएंगे।
यह जंग मेरी या तेरी नहीं, हम सब की है,
इसकी जीत या हार भी हम सब की है ।
अपने लिए नहीं, अपनों के लिए जीना है,
यह जुदाई का ज़हर दोस्तों घूंट घूंट पीना है।
आज महफूज़ रहे तो
कल मिल के खिलखिलाएँगे,
गले भी मिलेंगे और हाथ भी मिलाएंगे। “
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Sanjay Rajpoot ji aapka ye article padha aur mai appki soch aur aapke vichaar se behad prabhavit hui.aasha hai aap aage bhi apni bahumulya vicharo se logo ko avgat karate rahenge aur kamna hai log padh kar apne me sudhar laye.
बहुत बहुत शुक्रिया!! ऐसे कमैंट्स पढ़कर जो खुशी मिलती है उसे शब्दों में बयाँ करना संभव नहीं..मेरा लिखना तभी सार्थक है जब आप जैसे हौसला बढ़ाने वाले पाठक हों…धन्यवाद🙏🙏