पूर्व DSP शैलेन्द्र सिंह ने मुख्तार अंसारी मामले में खोल दी मुलायम सरकार की पोल

मुख्तार अंसारी को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब से वापस यूपी भेजने का आदेश जारी कर दिया है। अब खबर आ रही है कि मुख्तार अंसारी को यूपी पुलिस नहीं खुद पंजाब पुलिस लेकर आएगी और उसे सीधे बाँदा जेल लाया जाएगा। इसके मद्देनजर बाँदा जेल की सुरक्षा व्यवस्था टाइट कर दी गयी है। उसे यहाँ एक अलग सेल में रखा जाएगा। अभी फिलहाल इसकी कोई तारीख तय नहीं हुई है। इस बीच मुख्तार अंसारी पर POTA (आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002) लगाने वाले पूर्व DSP शैलेन्द्र सिंह ने एक निजी चैनल को दिए गए अपने इंटरव्यू से फिर चर्चा में आ गए हैं। अपने इस इंटरव्यू में उन्होंने तत्कालीन मुलायम सरकार द्वारा मुख्तार अंसारी को बचाने के लिए उन पर बनाये गए राजनीतिक दबाव और उन्हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर करने की बात कही है। उनके इस इंटरव्यू से तत्कालीन मुलायम सरकार का असली चेहरा सबके सामने आ चुका है।


साल 2004 में उत्तर प्रदेश एसटीएफ के वाराणसी यूनिट के प्रभारी रहे पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह फिर से चर्चा में हैं। इसकी वजह यह है कि योगी सरकार ने उन पर किए गए केस वापस ले लिए हैं। शैलेंद्र सिंह पर मुलायम सरकार के जमाने में केस हुआ था और उन्हें जेल भी भेजा गया था।

उस समय इस मामले पर काफी हंगामा हुआ था। असल में सिंह ने माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए POTA (आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002) लगाया था। इसे वापस लेने के लिए उन पर इतना दबाव डाला गया कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के कुछ महीने बाद ही उन पर केस दर्ज किया गया था।


17 साल पुरानी इस घटना को लेकर एक टीवी चैनल से बात करते हुए सिंह भावुक हो गए और बताया कि उन पर किस कदर दबाव बनाया गया था। उन्होंने कहा कि उस समय में उन्होंने अपनी जान पर खेलकर मशीनगन बरामद किया था। कोई जाने को भी तैयार नहीं था। सबको डर था कि लाइटगन है पता नहीं कितनी फायर एक बार में हो। कौन बचेगा कौन मरेगा। उसके बाद भी ऐसा कहा गया कि आप लोग केस वापस लो नहीं तो आप लोगों को जेल में डाल देंगे। ऐसी धमकियों में कोई कैसे काम करता।


अपने इस्तीफे पर बात करते हुए वह बोले कि इन्हीं धमकियों के कारण उन्होंने सर्विस से बाहर होना चुना। आम नागरिकों की तरह जीना चुना। वह बोले कि उन्होंने अपने इस्तीफे से जनता को ये दिखाया कि उनके चुने हुए नेता किस तरह से काम करते हैं। इसलिए सोचें कि दोषी कौन है।
संघर्षों पर बात करते हुए शैलेंद्र ने कहा कि 17 साल हम किस परिस्थिति में थे, ये कोई नहीं पूछता है। नौकरी छोड़ने का दर्द नहीं है। लेकिन ये सोचते हैं कि हम लोग कैसी परिस्थितियों में जीते हैं। कैसे हमारी जान बची है। परिवार वाले चिंता करते हैं।


इस्तीफे के समय शैलेंद्र ने सिर्फ़ 10 साल की ड्यूटी की थी। 20-21 साल उनकी नौकरी के बचे थे। लेकिन बीच में ऐसे हालत पैदा हो गए कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वह बताते हैं कि वह जब जेल गए तो योगी आदित्यनाथ ने उनके परिवार को फोन करके कहा था, ‘जब मैं आऊँगा तो न्याय करूँगा।’ आज उन्होंने वही किया। वह कहते हैं, “मेरा परिवार उनका आभारी है। आगे किसी के साथ ऐसा न हो इसका मैं अनुरोध करूँगा”

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश का खूँखार माफिया नेता मुख्तार अंसारी इस समय पंजाब जेल में बंद है। पिछले दिनों वह मोहाली की कोर्ट में पेश हुआ। लेकिन उसे लेकर आई एंबुलेंस पर विवाद हो गया है। दरअसल जिस एम्बुलेंस से पुलिस ने उसे मोहाली कोर्ट में पेश किया, उसका रजिस्ट्रशन तो बाराबंकी जिले का है, लेकिन अब यह एंबुलेंस पंजीकृत ही नहीं है। इसके अलावा वह अस्पताल भी फर्जी है, जिसका नाम एंबुलेंस पर लिखा था।


खबर के अनुसार, जिस अस्पताल के नाम से एंबुलेंस नंबर UP41 AT 7171 का रजिस्ट्रेशन बताया जा रहा है, वह असल में है ही नहीं। इसकी मियाद साल 2015 में खत्म हो चुकी है। एंबुलेंस की फिटनेस भी साल 2017 में एक्सपायर हो चुकी है। बाराबंकी स्वास्थ्य विभाग के पास भी इसकी कोई जानकारी नहीं है।
यूपी पुलिस में डिप्टी एसपी विनोद सिरोही ने इस मामले में अपने फेसबुक पेज पर कुछ इस तरह से खुलकर अपनी प्रतिक्रिया लिखी है :-

मुख्तार अंसारी एक फौजी से एलएमजी खरीद रहा था। इंटरसेप्शन से भांडा फूटा। एसटीएफ के डिप्टी एसपी शैलेन्द्र कुमार सिंह ने मुख्तार को मुलजिम बनाया तो उन पर सत्ता में बैठी मुलायम सरकार द्वारा मुख्तार को बचाने का दबाव बनाया जाने लगा। लेकिन शैलेन्द्र सिंह ने उनके आगे न झुकते हुए त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद बदले की कार्यवाही करते हुए उन पर उल्टा केस किया गया और जेल भेजा गया।
आज वो केस वापस हुआ है। आज शैलेन्द्र कुमार सिंह पर मुकदमा वापस हुआ। मैंने आज तक इस तरह की मांग नहीं की मगर पहली बार मेरी मांग है कि शैलेन्द्र जी को नौकरी में प्रोन्नति सहित लाया जाए। बात सिर्फ शैलेन्द्र सिंह की नहीं इस राह पर चलने की भी है।


किसी जाति धर्म या क्षेत्र के नाम पर आप किसी अपराधी को सपोर्ट नहीं कर सकते। लेकिन धर्म और जाति पर था सपोर्ट। ऐसा नहीं हुआ होता तो मुख्तार को राजनीतिक पार्टियां गले नहीं लगाती ।
जिन्होंने अलग-अलग समय पर ऐसा किया अगर कानून व्यवस्था की बात करते हैं तो लोग आज विश्वास नहीं करते , कथन और कर्म दोनों को देखा जाता है।

अपने अच्छा करने के सौभाग्य अवसर को खुदके दुर्भाग्य में परिवर्तित कर लिया निम्नस्तरीय अपराधियों को जनप्रतिनिधि तक बनाकर। ऐसे अपराधियों का बहुत बड़ा स्तेमाल होता था बूथ कैप्चरिंग में मगर कुछ लोगों की पूर्व योजनाएं इसलिए दम तोड़ गयीं क्योंकि EVM मशीन चुनाव आयोग ले आया तो अपराधियों का असर सीमित हो गया। हरेक को अपने गिरेबान में आज भी देखना चाहिए और पूर्व वक्त में भी।


अपराधी को जाति धर्म वर्ग के आधार पर समर्थन नहीं होना चाहिए। इस कालिख में सब दोषी रोने वाले हंसने वाले अगर आप अपराधी को अपने रिश्ते के नजरिये से देखते हैं।
जो अपने को आज विक्टिम समझें वो भी और जो अपने को विक्टिम समझते थे वो भी अपना आंकलन करें। उस निम्न स्तरीय बचकानी सोच में मैं साझी नहीं।

वे आगे लिखते हैं….
मेरा शैलेन्द्र जी से नाता नहीं रिश्ता नहीं और परिचय नहीं। लखनऊ में था 2008 में तब किसी मामले में इन्हें दुष्प्रचारित करने का एक अवसर आया था। मेरा कोई परिचय नहीं था। मैंने साफ तौर पर इंकार कर दिया।
मैंने हाल में इनका नंबर वाराणसी से लेकर बातचीत की थी। ये आजकल आर्गेनिक खेती कर रहे हैं लखनऊ में। कई लोग निर्णय के नुकसान पर प्रवचन देते हैं। ऐसे लोगों को देश पर शहादत भी बचकानी और औचित्यहीन लगती है।


(यूपी पुलिस में डिप्टी एसपी विनोद सिरोही की फेसबुक पोस्ट)
इस मामले में एक बात याद रखनी अत्यंत आवश्यक है की तत्कालीन बड़े अधिकारी जो आज धड़ाधड़ बयान दे रहें हैं, अपने संस्मरणों से लहर लूट रहें हैं, तब सभी सन्नाटे में थे, इनकी वर्दी का दम तब नहीं दिखा, तब मलाईदार पोस्टिंग चाहिए थी, आज रिटायरमेंट प्लान दुरुस्त करने में जुटे हैं।
DSP शैलेन्द्र सिंह मुख्तार से भिड़े, इस्तीफा दिये, शैलेन्द्र सिंह के त्याग को बारम्बार अभिनंदन।
यूपी पुलिस के इस पूर्व DSP के इस साक्षात्कार से नेताओं और राजनीति का घिनौना चेहरा अब सबके सामने आ चुका है। यही कारण है कि यूपी में ऐसे अपराधियों को फैलने फूलने का मौका मिला और उन्होंने अपना काला साम्राज्य स्थापित किया। 
यूपी में पूर्व की सरकारों ने राजनीति का पूरी तरह अपराधीकरण करके रख दिया था। या यूं कहें कि अपराधी, माफिया, बाहुबली ही सरकार चलाते थे। लेकिन सवाल ये उठता है कि यदि ईमानदार पुलिस अधिकारियों का यही हश्र होगा तो क्या कोई भी पुलिस ऑफिसर ऐसे अपराधियों, माफियाओं से टकराने की हिम्मत कर पायेगा? 

जहां शैलेन्द्र सिंह जैसे जाबांज पुलिस ऑफिसर को उनके काम के लिए सम्मान और प्रोन्नति मिलना चाहिए, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि वहीं उन्हें अपनी नौकरी तक गंवानी पड़ी और उल्टे जेल भी जाना पड़ा। एक अपराधी के खिलाफ कार्यवाही करने का खामियाजा उनके पूरे परिवार को उठाना पड़ा।
ऐसे जाबांज़ पुलिस ऑफिसर को शत शत नमन है! योगी सरकार को चाहिए कि शैलेन्द्र सिंह को सर्वोच्च पुलिस सम्मान प्रदान करे तथा उन्हें पुलिस विभाग के किसी उच्च पद पर पुनः बहाल किया जाय।
शैलेन्द्र सिंह का पूरा इंटरव्यू आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर देख सकते हैं…👇👇

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