जब भी हम कोई बॉलीवुड फिल्म देखते हैं तो उसको हम चार भागों में बांट सकते हैं। पहला भाग जब हल्की-फुल्की कॉमेडी, हंसी-मजाक, प्यार और हल्का-फुल्का माहौल रहता है। दूसरे भाग में थोड़ा टेंशन शुरू हो जाती है और थोड़ी बहुत मारधाड़ भी होती है। वहीं तीसरे भाग में लड़ाई और टेंशन बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
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उस वक्त कहानी का सस्पेंस अपने सबसे उच्च स्तर (Climax) पर पहुंच जाता है। फिर आता है कहानी का आखिरी और चौथा भाग जब विलेन पकड़ा जाता है और हीरो उसकी पिटाई करता है। फिर मारधाड़ खत्म होती है, बुराई का अंत होता है और हीरो-हीरोइन आपस में मिल जाते हैं। इस प्रकार लगभग हर मुम्बईया फिल्मी कहानी का एक सुखद अंत होता है।
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कहने का मतलब की लगभग हर टिपिकल मुंबईया फिल्मों में Happy Ending (सुखद अंत) का बहुत बड़ा महत्व है। बिना Happy Ending के अपने यहाँ फिल्में हिट ही नहीं होती है। क्योंकि यहाँ लोग पैसे खर्च करके फ़िल्म देखकर जब घर लौटते हैं तो वे खुशी-खुशी घर जाना चाहते हैं। यहाँ के लोग सिनेमा हॉल से घर लौटते समय अपने दिल पर कोई बोझ लेकर नहीं लौटना चाहते। क्योंकि अपने देश के लोग फिल्मी हीरो-हीरोइन से इतना अधिक Connected होते हैं कि वो पर्दे पर भी उनका बुरा होते क़त्तई बर्दाश्त नहीं कर पाते।
कई निर्माता निर्देशको ने कई बार कुछ प्रयोग किए जिसमें Happy Ending ना दिखाकर Sad Ending दिखाई गई लेकिन ऐसी सभी फिल्में बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई।
इस धरती पर आजकल जो कुछ चल रहा है, उसका भी देखा जाए तो यह तीसरा भाग है। सब जगह भय, अनिश्चितता और हिंसा की स्थिति चल रही है। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, मनुष्य बहुत ही दुखी और डरा हुआ है।
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कहा जाता है कि अंधकार कितना भी घना क्यों न हो समय आने पर वो छंट ही जाता है। और फिर एक नई सुबह आती है, नयी उम्मीदें, नयीं उमंग लिए। हमारे महान संतों ने बताया है कि जब दुनिया में बहुत ही दुख हो, हर तरफ निराशा का अंधेरा और हताशा हो तब समझना कि अब परिवर्तन रूपी नया सवेरा अधिक दूर नहीं है।
इस प्रकार देखा जाय तो आजकल धरती पर जो निराशा और हताशा का माहौल चल रहा है उसका भी आखिरी भाग जल्दी ही आने वाला है। उसके लिए हम सब को मानसिक रूप से तैयार रहना होगा। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना के साथ हमें स्वयं के परिवर्तन से पूरे विश्व का परिवर्तन करना होगा।
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आज के इस अशांति भरे वातावरण में जहाँ हर कोई परेशांन है, हर किसी को कोई न कोई तकलीफ है, अधिकांश लोग दुखी हैं। ऐसे में आइये मिलकर सबके कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करे। कहते हैं एक स्वर में की गयी प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। एक स्वर में हम उसे याद करेंगे तो वह जरुर सुनेगा।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः’
अर्थात…
“सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें”
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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