Shaheed Ravindra Singh Gorakhpur: पूर्वांचल के गोरखपुर से ही देश की सियासत में पहली बार अपराधीकरण की शुरुआत हुई। दरअसल 70 के दशक में इमरजेंसी का दौर था। देश में जेपी आंदोलन सियासत के नए चेहरे जन्म दे रहा था। इस आंदोलन से कई युवा प्रभावित हुए और छात्र राजनीति में कूद पड़े। इसी दौर में गोरखपुर यूनिवर्सिटी में हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह छात्रनेता हुए। दोनों में ही वर्चस्व को लेकर जंग चल रही थी। खास बात ये थी कि इन्होंने छात्र राजनीति में जातिवाद का प्रयोग शुरू कर दिया था। बलवंत सिंह जहां ठाकुर लॉबी को जोड़ने में जुटे थे, वहीं दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ब्राह्मण युवाओं को अपनी तरफ जोड़ने की कोशिश करते।
ये वो दौर था जब पूर्वांचल की राजनीति में एक और युवा अपनी तेजी से अपनी पहचान बना रहा था। नाम था रविंद्र सिंह। रविंद्र सिंह 1967 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। इसके बाद 1972 में लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। तेज तर्रार छवि के रविंद्र सिंह ने देखते ही देखते गोरखपुर और आसपास के इलाकों में अपनी अच्छी पहचान बना ली थी। इसी को देखते हुए उन्हें जनता पार्टी ने 1977 में टिकट दिया। अपने पहले ही चुनाव में रविंद्र सिंह कौड़ीराम सीट से विधायक चुने गए। कहा जाता है कि रविंद्र सिंह वीरेंद्र शाही के करीबी थे, वीरेंद्र शाही धीरे-धीरे रविंद्र सिंह से ही राजनीति के गुर सीख रहे थे। लेकिन तभी रविंद्र सिंह की गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर हत्या हो जाती है। उन्हें गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर गोलियों से भून दिया जाता है।
स्व. सिंह जी छात्र जीवन से ही सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। वे आज़ाद भारत के पहले ऐसे विधायक बने जिन्हें गोरखपुर विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय दोनों का छात्रसंघ अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उनकी कर्मठता और लोकप्रियता के चलते 1977 में जनता पार्टी ने उन्हें कौड़ीराम विधानसभा से प्रत्याशी बनाया और वे भारी मतों से विजयी हुए।
विधानसभा में उनके सशक्त भाषणों और ईमानदार छवि से अपराध और दबंगई के सहारे राजनीति करने वालों की जमीन खिसकने लगी थी। यही वजह थी कि लखनऊ जाते समय गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई।
उनके न रहने के बाद भी उनकी विचारधारा जीवित रही। उनकी धर्मपत्नी गौरी देवी जी चार बार उसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गईं। समाज और राजनीति में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। 1971 के भारत-पाक युद्ध में युवाओं की फौज तैयार कर देश की सेवा करना, क्यूबा की राजधानी में भारत के युवाओं का प्रतिनिधित्व करना और आपातकाल के दौरान 20 महीने जेल में रहकर लोकतंत्र की रक्षा करना उनकी महान उपलब्धियों में शामिल है।
स्व. रवींद्र सिंह का संघर्षमय जीवन, ईमानदारी और कर्मठता आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। पूर्वांचल की राजनीति में अपने क्रांतिकारी विचारों और प्रभावशाली व्यक्तित्व से अमिट छाप छोड़ने वाले पूर्व विधायक स्व. रवींद्र सिंह जी की 46वीं पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
“बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना, तुम्हीं सो गये दास्तां कहते-कहते।।”