जीवन के दो विराट सत्य

अंधेरा और सन्नाटा जीवन के दो विराट सत्य हैं, जिंदगी इनके मुकाबले कितनी स्वप्नवत और भगोड़ी है कौन है अपना, …

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क्योंकि मैं पुरुष हूँ

क्योंकि मै पुरुष हूँ पी जाता हूँ अश्रुधारा को भीतर ही कहीं, छलक गयीं आँखें कभी तो आँच आएगी पुरुषत्व पर …

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