जिस देश में 100 में 90 बेईमान हों, उस देश में ईमानदार नेता, ईमानदार अधिकारी या ईमानदार प्रशासन किसे पसंद आएगा?
कहने का मतलब ये कि ईमानदार का विरोध करने वालों की संख्या समर्थन करने वालों की संख्या से बहुत ज्यादा होगी। क्योंकि हर बेईमान, भ्रष्ठ, घूसखोर व्यक्ति को ईमानदार व्यक्ति से नफरत होना स्वाभाविक ही है।
इंसान की फितरत है कि जिससे उसके विचार और सोच मिलती है वो वैसे ही इंसान को पसंद करता है और सपोर्ट भी करता है।
अब यही सब अपने देश में भी आजकल चल रहा है। 100 में 90 लोग मोदी के खिलाफ एक सुर में बोल रहे हैं। मोदी की कमियां निकालना, उनके हर काम को गलत साबित करना, यही ऐसे लोगों का एकमात्र उद्देश्य बनकर रह गया है।
और जब हम किसी व्यक्ति का विरोध करने में इतने अंधे हो जाते हैं कि उसमें हमें सिर्फ कमियाँ ही कमियां नजर आने लगे तो हम ‘अंध-विरोधी’ की श्रेणी में आ जाते हैं।
‘अंध-विरोधी’ हो जाने पर हमें सामने वाले की अच्छाइयां भी बुराइयाँ ही लगने लगती हैं।
किसी भी व्यक्ति को नापने-तौलने का यदि हमने एक फिक्स पैमाना बना लिया तो फिर उसके बाद हम उस व्यक्ति का कभी भी पारदर्शी मूल्यांकन कर पाने की स्थिति में नही रह जाते।
यदि हमने अपने मन में ये पहले से ही ठान लिया है की हमें फलाँ व्यक्ति को बुरा साबित करना ही है और उसके हर काम को गलत साबित करना ही है तो ऐसे में क्या हम किसी व्यक्ति की अच्छाइयां देख पाएंगे?
किसी को सही या गलत साबित करने के पीछे भी सबका अपना अपना निहित स्वार्थ होता है।
भीड़ हमेशा से झूठ के साथ ही चली है, सत्य की राह में तो इंसान हमेशा अकेला ही रहा है।
इतिहास गवाह है कि जो जितना ही अच्छा होता है उसका उतना ही अधिक विरोध होता है। उसके उतने ही अधिक शत्रु भी होते हैं।
शायद किसी शायर ने सच ही कहा है…
“उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा”