समाज में तेजी से बढ़ते नशे के चलन के लिये कौन जिम्मेदार है?

जो माहौल आजकल हर तरफ देखने को मिल रहा है वो धुंआ ही धुंआ है। हर फिल्म, टीवी सीरियल, वेब सीरीज में बड़ी शान से सभी को सिगरेट के कश लगाते दिखाया जाता है। बस नीचे चींटी जैसे अक्षरों में Cigarette Smoking Is Dangerous लिख दिया, क्योंकि सरकारी नियम है और हर विवाद और हर जिम्मेदारी से बच लिए। 

लेकिन क्या वार्निंग लिख देने से ही हम अपनी जिम्मेदारियों से बच सकते हैं? क्या ये निर्माता निर्देशक ये नहीं सोचते कि इस तरह हीरो को शान से सिगरेट के कश लगाते दिखाकर वे समाज के सामने क्या आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। जबकि हमारा समाज फिल्मों और सीरीज में दिखाए गए हर चीज और स्टाइल को कॉपी करता है। खासकर हमारे युवा तो उसे ट्रेंडिंग मानकर यूज करते हैं। 
यही कारण है कि आजकल 10th क्लास तक पहुंचते पहुंचते लड़के सिगरेट और बियर शुरू कर दे रहे हैं। इसका विस्तार मिलता है कॉलेज में जाकर जहां ये चीजें हद से ज्यादा बढ़ जाती हैं। खासकर जो लड़के पढ़ाई के सिलसिले में अपने घर परिवार से दूर रहते हैं वे तो पूरी तरह सिगरेट, शराब और गुटखे के आदी होते जा रहे हैं। आजकल हर तरफ माहौल ही ऐसा बन चुका है कि चाहकर भी कोई इन बुराईयों से  नहीं बच सकता। 
अब सवाल उठता है की आखिर इस तरह के माहौल के लिए कौन जिम्मेदार है? इस सवाल का जवाब तलाशने में हम खुद को भी कहीं न कहीं गुनहगार मानकर चले तब ही इस सवाल का जवाब हम ईमानदारी से दे सकेंगे। 

इस बात को एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिये एक पिता अपने बच्चों के सामने स्मोकिंग करता हो या सामने न भी करता हो लेकिन स्मोकिंग करता हो और ये बात उसके बच्चे भी जानते हों। अब यदि वो पिता अपने बच्चों से ये कहे कि बेटा सिगरेट नहीं पीना चाहिए, सिगरेट पीना बुरी बात है आदि। तो क्या इस बात का उस बच्चे पर कोई असर होगा? मुझे तो नहीं लगता। 
चाइल्ड साईकोलॉजी के मुताबिक आपके कहने का बच्चों पर कम असर होता है, बच्चे जो देखते हैं उसका सबसे ज्यादा असर उन पर होता है। मतलब आप बच्चों के सामने example क्या सेट कर रहे हैं? आप क्या आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं? 
ऐसे में जब एक बच्चा अपने चारों ओर सिगरेट फूंकते लोगों को ही देखेगा तो आप उससे क्या उम्मीद कर सकते हैं? टीवी पर, फिल्मों में हर तरफ उसे अच्छे बुरे सभी लोग सिगरेट फूंकते, शराब पीते ही दिखाई देंगे तो आप उस बच्चे से क्या उम्मीद करेंगे?
जब बार बार विज्ञापन में शाहरुख खान और अजय देवगन गुटखे की तारीफों के पुल बांधते नजर आएंगे, तो आप क्या उम्मीद करेंगे?

दोषी तो सरकार भी कम नहीं है, क्योंकि बिकेगा तो लोग इस्तेमाल तो करेंगे ही। सिगरेट या गुटखा के पैकेट पर वार्निंग लिख देने से की इससे कैंसर होता है, क्या सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो गयी? जो खरीदेगा वही वो वार्निंग पढ़ेगा, और जो खरीदेगा वो इस्तेमाल तो जरूर करेगा। क्योंकि उसने खरीदा ही इसीलिए है। 
तो मेरी समझ से सिगरेट, गुटखा या शराब के ऊपर वार्निंग लिखना एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं। क्योंकि सरकार ने ही तो इनको ‘License to kill’ दिया है। जब कैंसर से हर साल सबसे अधिक लोग मर रहे हैं तो क्यों नहीं सरकार इस जानलेवा जहर पर रोक लगा रही? 
फिल्मों, सीरियल और वेब सीरीज में ऐसी नशे की चीजों का ऑन स्क्रीन प्रदर्शन क्यों नहीं बन्द करा देती है हमारी सरकार? 
आजकल हम सब देख रहे हैं कि लॉकडाउन का सबसे ज्यादा उल्लंघन ये नशे के आदी लोग ही कर रहे हैं। क्योंकि सिगरेट, गुटखा, खैनी, शराब की लत वालों को जब तलब लगती है तो उनको कोई नहीं रोक सकता वो पूरी तरह अपने नशे की गिरफ्त में होते हैं। ऐसे लोग चाहे लॉकडाउन हो या कर्फ्यू हो वो घर से बाहर जरूर भागेंगे अपनी तलब मिटाने। और हमारी सरकार भी उनकी सेवा में हाजिर ही दिखाई देती है, तभी तो चाय नहीं बिक रही लेकिन शराब की दुकानें जरूर खुलनी चाहिए। क्योंकि अर्थव्यवस्था को नशेड़ी ही चला रहे हैं। 

हमारे देश में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध है, लेकिन क्या हकीकत में भी कहीं निषेध है? आपको हर सिगरेट की दुकान किसी सार्वजनिक स्थान पर ही मिलेगी। हर कालेज, स्कूल के आसपास ऐसी दुकानों की भरमार है जहाँ लड़के बड़े मजे से बैठकर सुट्टा मारते हैं। 
No-Tobacco Day मनाने से क्या होगा? सुना है आज की ऑनलाइन क्लासेज में तमाम कालेज वालों ने स्टूडेंट्स को शपथ (Oath) दिलाई है कि वो tobacco नहीं यूज करेंगे। लेकिन उससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। जब हर तरफ वही माहौल है तो इस माहौल में जन्म लेने वाला हर बच्चा उसी माहौल को ग्रहण (adopt) करेगा। यही सबसे बड़ा कटु सत्य है। 
इसलिए पब्लिक और NGO’s को मिलकर एक देशव्यापी मुहिम चलाना चाहिए जिसमें सरकार से मांग की जाए सभी नशे वाली चीजों पर हमेशा के लिए रोक लगाने हेतु। लेकिन जिस देश की अधिकतर आबादी खुद नशे की आदी हो वो उसके विरोध में कैसे खड़े होंगे? जिस देश में नशे के कारोबार से ही देश की एक बड़ी आबादी के घर का चूल्हा जलता हो, जो पुलिस की ऊपरी कमाई का सबसे बड़ा स्रोत हो, उसपर इस देश में रोक लग पाना सम्भव नहीं लगता। क्योंकि सरकारें तो सबको खुश करके ही चलेंगी क्योंकि उसे तो सबका वोट चाहिए। 
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