Paliwal Rajput History: पालीवाल राजपूतों का इतिहास

Paliwal Rajput History in Hindi: भारत देश में क्षत्रियों का सबसे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास रहा है। क्षत्रियों ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जहां समाज के लोग एक एक इंच जमीन के लिए अपने भाई तक से लड़ रहे हैं वहीं देश की एकता अखंडता के लिए क्षत्रियों ने अपनी रियासतें तक दान कर दी। क्षत्रियों के हर वंश की अपनी एक महान वीरगाथा है, जिसे सिर्फ एक पोस्ट में समेट पाना संभव नहीं है। फिर भी हमारा प्रयास है कि प्रत्येक क्षत्रिय वंश द्वारा देश और मातृभूमि के लिए किए गए उल्लेखनीय योगदान के बारे में अपने पाठकों को जानकारी दें। इसी क्रम में आज हम आप लोगों को पालीवाल राजपूतों (paliwal rajput) के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं।

पालीवाल वंश की उत्पत्ति और इतिहास

उपनाम पालीवाल का मूल पाली+वाल (पाली का एक व्यक्ति) है। पाली के अधिकांश निवासी पालीवाल कहलाते हैं। पाली राजस्थान में एक जिला है। ऐसा माना जाता है कि पाली से लोग मुगल काल के दौरान विभिन्न स्थानों पर चले गए।

पाली भारत के थार रेगिस्तान में एक छोटा सा राज्य था, 13 वीं शताब्दी में किसी समय, वे तत्कालीन राज्य जैसलमेर में कुलधारा के क्षेत्र में चले गए। उनके मूल की पहचान पालीवाल द्वारा की गई थी।

पालीवालों राजपूतों (paliwal rajput) का समुदाय पूर्वी और पश्चिमी यूपी में चला गया। पूर्वी यूपी के आजमगढ़ अंबेडकर नगर जिलों में, पालीवाल राजपूत गांव 42 कोसी (दूरी की इकाई जैसे कोसी परिक्रमा) के क्षेत्र में फैले हुए हैं। पालीवाल राजपूतों से संबंधित इस क्षेत्र में सैकड़ों गाँव स्थित हैं। अहिरौली रानी मऊ और मकरही रियासत, हंसवर रियासत राजपूतों के अम्बेडकर नगर जिले में स्थित मुख्य गाँव में से एक है। कुछ परिवार उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चले गए।

पालीवाल राजपूतों (paliwal rajput) का पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में राजनीति में एक मजबूत गढ़ है। पालीवाल राजपूत पांडवों के वंशज हैं। पालीवाल राजपूतों का संबंध व्याघ्रपथ गोत्र से है। वे चन्द्रवंश के राजपूत हैं और राजा भरत के पूर्वज होने के नाते कुछ राजपूतों ने खुद को भारतवंशी बताया। पालीवाल राजपूत (paliwal rajput) अपने समय में महान सेनानी थे।

उदयपुर में मेवाड़ के शाही पुस्तकालय (उदयपुर के शाही परिवार से संबंधित एक निजी पुस्तकालय) में रखे पालीवाल के इतिहास (paliwal samaj ka itihaas) के बारे में कुछ ऐतिहासिक ग्रंथ हैं।

पालीवालों की उत्पत्ति से संबंधित दूसरा सिद्धांत

पाली राजस्थान मूल के पालीवाल राजपूत (paliwal rajput) मूल रूप से सोलंकी राजपूत हैं, कुछ का कहना है कि वे पांडवों के वंशज हैं और वे तोमर राजपूत हैं, यूपी में कुछ पालीवाल राजपूत हर अच्छे कार्य से पहले देवी काली माता और हाथी की प्रार्थना करते हैं। वहीं कुछ का मानना है कि पलवल राजपूतों की कुलदेवी पाली और राजस्थान में क्षेमकरी (खिलजी) माता है।

1100 ईसा पूर्व के बाद सोलंकी राजपूतों का राजवंश लुप्त हो गया और भविष्य में वाधेलों ने भी ऐसा ही किया। इस राजपूतों को राजा पाल (सोलंकी राजवंश के अंतिम राजा) के नाम से जाना जाता है। आगे उन्होंने व्याघ्र गोत्र को अपने वंश के रूप में लिखना शुरू किया।

पालीवाल राजपूतों (paliwal rajput) के पूर्वी यूपी के जिला आजमगढ़ के अरूसा गहाजी व अन्य और जिला अंबेडकरनगर जिले के मकरही, हंसवर, विमावल, मसेना मिर्ज़ापुर और उत्तर बिहार में पाँच गाँव हैं। पालीवाल राजपूत इन पाँच गाँवों से संबंधित थे, जो अपने शाही जीवन, बहादुरी और राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के लिए जाने जाते थे। पांच गांवों में सासामुसा, रामपुर माधो, दौदा, रामपुर उचकागांव और पहाड़पुर शामिल हैं।

पालीवाल (paliwal rajput) उपनाम का मूल पाली + वाल (पाली का एक व्यक्ति) है. पाली में रहने के कारण ही लोग पालीवाल कहलाए. पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था. पालीवाल राजपूत (paliwal rajput) राजस्थान के पाली के अलावा फैजाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़, और बिहार के गोपालगंज में भी पाए जाते हैं. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में भी पालीवाल जाति के लोग रहते हैं.

अयोध्या एवं राम जन्मभूमि हेतु पालीवाल राजाओं का योगदान

राम जन्मभूमि की लड़ाई में दोनों पालीवाल राजपूत (paliwal rajput) रियासतें हंसवर और मकरही का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता।

Paliwal Rajput's contribution in ramjanm Bhumi andolan

मकरही (पालीवाल वंश) के राजा संग्राम सिंह द्वारा आक्रमण:

नासिरुद्दीन हैदर के समय में मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुन: अपने रूप में लाने के लिए हिन्दुओं के 3 आक्रमण हुए जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गए। इस संग्राम में भीती, हंसवर, मकरही, खजूरहट, दीयरा, अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मिलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध में शाही सेना को हारना पड़ा और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का कब्जा हो गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों रामभक्तों का कत्ल कर दिया गया।

पालीवाल राजपूतों की रियासत मकरही हवेली अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश. ५२ कोस में फैली थी ये रियासत

Makarahi kothi

हंसवर राजा रणविजय सिंह द्वारा तीसरा आक्रमण और उनके वीरगति के पश्चात रानी जयराज कुमारी जी द्वारा आक्रमण:

देवीदीन पाण्डेय की मृत्यु के १५ दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने आक्रमण करने को सोचा। हालाकी रणविजय सिंह की सेना में सिर्फ २५हजार सैनिक थे और युद्ध एकतरफा थामीरबाँकी की सेना बड़ी और शस्त्रो से सुसज्जित थी, इसके बाद भी रणविजय सिंह ने जन्मभूमि रक्षार्थ अपने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध को श्रेयस्कर समझा। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए।

माताओं बहनों का जन्मभूमि के रक्षार्थ आक्रमण:

रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास। रानी जयराज कुमारी हंसवरक स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थ।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया.बाबर की आपर सैन्य सेना के सामने ३ हजार नारियों की सेना कुछ नहीं थी अतः उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा और वो युद्ध रानी जयराज कुमारी ने हुमायूँ के शासनकाल तक जारी रखा जब तक की जन्मभूमि को उन्होंने अपने कब्जे में नहीं ले लिया। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंदजी ने रामभक्तो को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। चूकी रामजन्म भूमि के लिए संतो और छोटे राजाओं के पास शाही सेना के बराबर संख्याबल की सेना नहीं होती थी अतः स्व्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं। इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ, हुमायूँ के समय १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये और १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया।

लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूर्ण रूप से तैयार शाही सेना फिर भेजी, इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।

इस युद्ध का वर्णन दरबारे अकबरी कुछ इस प्रकार करता है:

“सुल्ताने हिन्द बादशाह हुमायूँ के वक्त में सन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी दोनों अयोध्या के आस पास के हिंदुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 हमले करते रहे । रानी जयराज कुमारी ने तीन हज़ार औरतों की फौज लेकर बाबरी मस्जिद पर जो आखिरी हमला करके कामयाबी हासिल की। इस लड़ाई मे बड़ी खूंखार लड़ाई लड़ती हुई जयराज कुमारी मारी गयी और स्वामी महेश्वरानंद भी अपने सब साथियों के साथ लड़ते लड़ते खेत रहे।

संदर्भ: दरबारे अकबरी पृष्ठ 301

Haswar haweli

पालीवाल जमींदारी रियासत हंसवर अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश

वंश– चंद्रवंश

कुल – पालीवाल/परिवार/पलीवार

गोत्र – व्याघ्र पद

कुल देवी – मां काली

ईष्ठ देव – नाग & डीह बाबा (हाथी की पूजा)

रियासत का विस्तार – ८४ कोस (मौजूदा अम्बेडकर नगर, फैजाबाद, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़) तक था।

डिस्क्लेमर: यह लेख ऐतिहासिक पुस्तकों तथा विभिन्न सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर लिखा गया है। यह लेखक के निजी विचार नहीं हैं। यदि आप इस लेख के किसी अंश से असहमत हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बता सकते हैं।

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