छत्तीसगढ़ के बीजापुर के तर्रेम में शनिवार को पहली गोली जंगल से नहीं बल्कि गांव से निकली थी। जवान आमतौर पर गांव पर गोली नहीं बरसाते इसलिए वह असमंजस में रह गए। इसी बीच पहाड़ी से दनादन गोले बरसने लगे।
जब तक जवान संभल पाते, नक्सली हावी हो चुके थे। यही वजह है कि इस हमले में फोर्स को नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि वारदात में नक्सलियों को भी बड़ा नुकसान हुआ है। कम से कम 12 नक्सली मारे गए हैं
और दो दर्जन घायल हैं। नक्सली अपना नुकसान छिपाते हैं इसलिए वास्तविकता का पता जल्दी नहीं चलेगा पर घायल जवानों ने देखा है कि वह अपने साथियों का शव उठाने के लिए ट्रैक्टर लेकर आए थे।
असमंजस में फंस गए थे हमारे जवान, नक्सली भी यही चाहते थे
बस्तर आइजी सुंदरराज पी ने कहा है कि पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) की बटालियन आतंकी हुकूमत कायम करना चाहती है, जो फोर्स होने नहीं देगी।
कठिन भौगोलिक परिस्थिति व नक्सलियों का कोर इलाका होने के बाद भी अपने जान की परवाह न करते हुए सुरक्षाबलों के जवान नक्सलियों की मांद में घुसकर उन्हें ललकार रहे हैं। तीन अप्रैल को बीजापुर व सुकमा के सीमावर्ती जंगलों में सघन सर्चिंग की गई।
जवानों ने गुंडम, टेकलागुडम, जोनागुडम, अलीगुडम आदि नक्सली नंबर वन बटालियन के इलाकों में दबिश दी। नक्सलियों को उनके कोर इलाके से खदेड़ने के लिए तर्रेम के अलावा उसूर, पामेड़, मिनपा, नरसापुरम आदि कैंपों से जवान निकले थे।
नक्सलियों का बहादुरी से मुकाबला करते हुए उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया है। हमारे जवानों ने शहादत दी है पर इससे यह तो साफ हो गया कि अब कोई भी इलाका नक्सलियों का सेफ जोन नहीं है। बता दें कि इस घटना में 22 जवान शहीद हुए हैं, जिनका शव बरामद कर लिया गया है।
सूत्र बताते हैं कि नक्सलियों ने पूरी साजिश रचकर पहले गांव को खाली कराया, फिर वहां मोर्चा बनाया।
जवान यह समझ नहीं पाए कि इस गांव में आम नागरिक नहीं बल्कि नक्सली बैठे हैं। जवान पहाड़ी की ओर गोली दागते रहे जबकि नक्सलियों ने बड़ा मोर्चा गांव में खोल रखा था। इसी चूक की वजह से बड़ा नुकसान हुआ है।
फोर्स जब इलाके में सर्चिंग पर निकली तभी नक्सलियों ने गोपनीय ढंग से गांव खाली करा लिया और घरों में हथियार लेकर ग्रामीण वेशभूषा में जम गए।
पहाड़ी से फायरिंग करते हुए उन्होंने जवानों को गांव की ओर जाने पर मजबूर किया। 200 मीटर दूर गांव में नक्सली एलएमजी व राकेट लांचर जैसे खतरनाक हथियार लेकर बैठे थे।
फ्रंट लाइन में चल रहे जवानों पर आधुनिक हथियारों से हमला किया। जब तक जवान कुछ समझ पाते, कई शहीद हो चुके थे। जो बचे उन्होंने पेड़ों के पीछे मोर्चा संभाला।
जवान एक तरफ थे, जबकि नक्सली तीन ओर से गोलियां चला रहे थे। मुश्किल हालात में भी जवानों ने छह घंटे तक मोर्चा संभाले रखा।
नक्सलियों ने नजदीक के एक अन्य गांव जीरागांव को भी खाली करा रखा था।
जवानों के पास कहीं जाने का मौका नहीं था। बताया जा रहा है कि मौके पर ढाई सौ से ज्यादा नक्सली मौजूद थे।
एंबुश में फंसने के बाद जवानों के पास मुकाबला करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। उन्होंने विपरीत परिस्थिति में भी जमकर मुकाबला किया।
नक्सलियों की कई कमेटी हमले में शामिल
इस हमले में नक्सलियों की बटालियन नंबर वन के मुख्य लड़ाकों के साथ ही पामेड़, कोंटा, जगरगुंडा, बासागुड़ा एरिया कमेटी के लड़ाके शामिल थे।इनका नेतृत्व बटालियन का कमांडर माड़वी हिड़मा कर रहा था। सूत्र बता रहे हैं कि हिड़मा की मौजूदगी की सूचना बार-बार आ रही थी। ड्रोन कैमरे में भी इलाके में नक्सली देखे गए थे। यह नक्सलियों की बड़ी साजिश हो सकती है।
सच तो ये है कि माओवाद, नक्सलवाद के ऊपर लगाम लगाना CRPF और प्रादेशिक पुलिस के बस की बात नही है। दिन प्रतिदिन इनका तांडव बढ़ता ही जा रहा है। जैसा 1990 के समय मे कश्मीर में चल रहा था कमोवेश यहाँ भी वही स्थिति चल रही है। सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय राइफल ही इनका इलाज है। अगर पूरी स्वतंत्रता के साथ उन्हें काम करने दिया जाए तो। नही तो जवान शहीद होते रहेंगे और नेता, बड़े अधिकारी लोग सिर्फ निंदा करके काम चलाते रहेंगे।