हे शंकराचार्यों! इस देश में आपके बारे में बहुसंख्य हिंदुओं का ज्ञान यह है, कि वे यह तो जानते हैं कि दिल्ली के जामा मस्जिद का शाही इमाम कौन है, लेकिन वे आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठों पर विराजमान शंकराचार्यों के नाम तक नहीं जानते।
इस अज्ञानता के लिये कौन जिम्मेदार है?
धर्म की स्थापना व उसका प्रचार, प्रसार, मठों के अंदर विराजमान होकर, टिमरू के लठ्ठ को साइड में रखकर, कपाल पर चंदन का लेप करके, गले व कपाल पर रूद्राक्ष की माला पहनकर नहीं होता। उसकी स्थापना व प्रचार, प्रसार वैसे ही होता है, जैसे हिंदू धर्म के पितामह आदि शंकराचार्यजी ने किया, जो मात्र 37 वर्ष की अल्पायु में प्रभु चरणों में लीन होने से पूर्व, देश के चारों कोने में हिंदू धर्म के चार मठ स्थापित कर गए, जिन्होंने विधर्मियों से शास्त्रार्थ किया, उनको शास्त्र विद्या में परास्त करके सनातन से जोडा।
कश्मीर से लेकर केरल तक हिंदू कटता रहा, जलता व मरता रहा किंतु हमने कभी आपके मठों से किसी सरकार के समक्ष अपनी चिंता को प्रकट करते हुए नहीं देखा। वर्ण व्यवस्था में बंटा हिंदू ही ब्राहमण, ठाकुर, हरिजन, बनिया के नाम पर एक दूसरे के लिए जहर उगलता रहता है लेकिन हमने किसी भी मठ के शंकराचार्य को इन सभी वर्णो को एकजुट करने के लिए कोई मुहिम प्रारम्भ करते नहीं देखा। उल्टा, आप मठों में बैठकर शास्त्र ज्ञान देते रहते हैं कि यह उचित है, यह अनुचित है !
आपके ही सम्मुख, हिंदुओं का एक वर्ग विरक्त होकर उस फर्जी साईबाबा के चरणों में चला गया, आपके होते ही रामपाल, आसाराम बापू जैसे ढोंगी फल फूल गए लेकिन आप चारों के मुंह में दही ही जमा रहा।
आदि शंकराचार्य की जन्मस्थली केरल आज दूसरी वेटिकन सिटी बन चुकी है, देश में ईसाई मतावलम्बियों का ऐजेंडा कितने व्यापक स्तर पर काम कर रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है, किंतु आप चारों इस मसले पर भी शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर घुसाए हो।
आज नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी अपना वो मिशन पूरा करने जा रही है, जिस मिशन को इस पार्टी ने अपने स्थापना काल से ही अपने राजनैतिक स्वप्न में सर्वोपरि रखा, तो आप शास्त्र, महूर्त वगैरह की दुहाई देते नजर आ रहे हैं।
जिस राम मंदिर के एजेंडे को लेकर भाजपा अन्य पार्टियों के लिये अछूत बन गई कि कोई भाजपा के साथ न तो गठबंधन करता था, न ही हाथ मिलाता था। उस भाजपा को आज जनता ने श्री राम के नाम पर कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया ! इस पर गर्व करने के बजाय, आप उस पार्टी व सरकार को ही कोस रहे हैं?
जब टेंट में विराजमान एक खंडित ढाँचे के नीचे रामलला की पूजा अर्चना हो सकती है और आपको उस पर कभी आपत्ति नहीं रही, तो फिर एक निर्माणाधीन मंदिर के पूर्ण हो चुके प्रथम तल के एक कक्ष में श्री रामजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों नहीं हो सकती ?
हाँ, ये सत्य है कि भाजपा ने यह समय व महूर्त चुनावी लाभ लेने के लिये चुना है और क्यों न ले वह चुनावी लाभ? इसके लिए इस पार्टी व कार्यकर्ताओं ने क्या क्या नहीं देखा व क्या क्या नहीं सहा? भाजपा को पूरा हक है, वह श्रीराम मंदिर को लेकर जैसा चाहे वैसा करे।
इसलिए, हे शंकराचार्यो! आपको प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाना, तो मत जाइए। आपका फैसला शिरोधार्य !
इस ठंड में आप चारों शंकराचार्य एक जगह बैठकर, कंबल लपेटे, गर्म गौ दुग्ध पान करते हुए और शुध्द घी के लड्डू का भक्षण करके आराम फरमाइए, पर मुंह बंद रखने की कृपा कीजिए। ऐसे लोगों को मौका मत दीजिए जो सदा से हिंदू विरोधी रहे हों। आपके बयानों से समाज में भ्रम फैल रहा है।