अब बसन्त में पीले फूल नहीं नेताओं द्वारा FOOL बनी जनता दिखती है

नेता आम आदमी से भिन्न प्राणी होता है इसलिए उसका सबकुछ आम आदमी से अलग ही होता है। नेताओं का बसन्त भी अलग तरह का होता है। वह परम सिद्ध होते हैं, वह माननीय होते हैं, वह अति विशिष्ट श्रेणी के प्राणी होते हैं। उनके पास समय की भीषण कमी होती है वह आम इंसानों से परे होते हैं वह वार्षिक योजनाओं में समय वेस्ट ना कर सीधे पंचवर्षीय इनवेस्टमेंट में विश्वास करते हैं।

यह पंचवर्षीय चुनाव रूपी बसंत उस कुंभ के समान होता है जिसमें नेता डुबकी लगाते ही माफिया से माननीय में बदल जाता है। यह चमत्कार उसी बसंत का परिणाम होता है जिसमें आम जनमानस की अपेक्षाओं की बलि देकर उपेक्षा की जाती है। 

इस बार के बसंत के लिए उन्होंने विशेष प्रबंध कर लिए हैं। स्वार्थ की सजावट से उनका घर चमक रहा है, कपट की कृपा बनी रहे ऐसा उन्होंने अभी-अभी ईश्वर से वरदान मांगा है, लालच के लड्डू थाल में सजा दिए गए हैं, दुष्टता का दीपक अपनी रोशनी चारों और बिखेर रहा है, मक्कारी के मनको की माला उन्होंने फेरनी शुरू कर दी है। 

साथ ही विश्वासघात का विस्फोट कर इसे धूम धमाके से मनाने की पूरी तैयारी कर ली है। अब बस इंतजार है तो उस शुभ मुहूर्त का जब मतदाता रूपी ईश्वर उन्हें इस बसंत में वोट रूपी प्रसाद दे जाए। 

वह वाकई सच्चे भक्त हैं दारू और मुर्गे का चढ़ावा चढ़ाने में कतई गुरेज नहीं करते हैं। उन्हें आशा है कि इस बार उनकी मेहनत रंग लाएगी और इस बसंत में अपने माथे पर जीत का काला टीका अवश्य लगाएंगे। 

अगर ऐसा नहीं होगा तो वसंत में पीले की जगह लाल रंग वाले खून की होली खेलने वाला विकल्प भी खुला रखे हुए हैं। यानी अब बसंत आता है तो साथ में सरसों के पीले फूल नहीं नेताओं के द्वारा फूल बनाई गई जनता दिखती है। 

अब बसंत में लोग पीले वस्त्र पहनकर प्रफुल्लित नहीं होते बल्कि उनके चेहरे विश्वासघात से पीले नजर आते हैं। अब इसके आने पर तरंग संचार नहीं होता है।

बसंत प्रतीक हो गया है उस तबके का जो प्रजातंत्र में उस तबके के पास होता है जिसे बस इसका दोहन करना है। वह समृद्धि लाता है, लेकिन उनके लिए जिन्हें इसका दोहन करना आता है। वह वंदना नहीं करते बल्कि खुद का वंदन करते हैं। वह अपने कद इतना ऊंचा कर लेते हैं कि बड़ी से बड़ी देवी शक्ति भी धूमिल सी प्रतीत होती है।

इस प्रजातांत्रिक बसंत की विधिवत पूजा-अर्चना भी की जाती है, जिसमें माफिया रूपी पुजारी धर्म रूपी धूपबत्ती के साथ वादों की आहुति देकर नेता रूपी जजमान को संतुष्ट करता है। 

“हवा सुर्ख बनकर आयी है इस बसंत में
लाल रंगों में ढल रही अब जिंदगानी है”

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