देखने में आ रहा है कि आजकल के बहुत से युवा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अपनी योग्यता और स्किल बढ़ाकर अपना भविष्य संवारने की जगह अपने जीवन का सबसे अनमोल समय राजनीति के चक्कर में पड़कर युवा नेता, पंडाल अध्यक्ष, वार्ड अध्यक्ष युवा मोर्चा आदि बनने में लग जाते हैं.
इनमें से ज्यादातर युवा ऐसे होते हैं जिनकी पारिवारिक और अर्थिक पृष्ठभूमि अच्छी होती है इसलिए शुरुआत में घर वाले भी इन्हें खुली छूट दे देते हैं जबकि सच तो ये है की इसका कोई भी निश्चित भविष्य नहीं होता और अंत में बर्बादी के सिवा कुछ हासिल नहीं होता।
लोग तो जानते हैं की ये बर्बाद हो रहा है इसे और चढ़ाओ, इसलिए नेताजी-नेताजी बोल चने के झाड़ पर चढ़ा देते हैं और ये नासमझ युवा गलतफहमी के शिकार होकर खुद में सांसद, विधायक और मंत्री देखने लगते हैं.
होता यह है कि जब ऐसे युवा नेताओं की उम्र 30 के आसपास पहुंचती है और उस युवा नेता की शादी होती है, तब उसे परिवार चलाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है.
असली समस्या अब शुरु होती है. जो व्यक्ति खुद को नेता मान चुका है, यहां तक की सांसद, विधायक के सपने देख चुका है और खुद को वीआईपी मानता है वह छोटा मोटा क्लर्क का काम करेगा नहीं. उसे कम से कम मैनेजर लेवल का पद तो चाहिए ही, लेकिन नेता गिरी के चक्कर में उसने अच्छे से पढ़ाई तो की नहीं की वो मैनेजर बन पाए.
यही वो समय होता है जब उसके सिर से नेतागिरी का भूत उतर चुका होता है और उसे असली दुनियादारी का ज्ञान होता है. अब वो युवा नेता खूब पछताता है, खुद को खूब कोसता है.
लेकिन वो कहते हैं न, “अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत”.
इसलिए मेरा आप सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है की यदि आपके घर, आस पड़ोस या रिश्तेदारी में कोई भी ऐसा युवा नेता दिखाई दे तो एक बार उसे जरूर समझाने की कोशिश करें की अपने जीवन का गोल्डन पीरियड नेतागिरी में नहीं अपनी योग्यता और स्किल को बढ़ाने में लगाए.
यकीन मानिए, यदि आप ऐसे एक भी युवा को समझाने में सफल हो जाते हैं तो, आप एक पूरे परिवार को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.
अंत में ऐसे सभी युवा नेताओं से यही कहना चाहूंगा की नेतागिरी के चक्कर में पड़ के अपना और अपने परिवार का भविष्य अंधकारमय मत करो, क्योंकि इस देश की राजनीति में अब परिवारवाद हावी हो चुका है.
अब एक सांसद, विधायक या मंत्री ही अपने बेटे को टिकट दिलाकर सांसद, विधायक या मंत्री बनवा सकता है या लाखों करोड़ों रुपए की थैली भेंट करोगे तब किसी पार्टी से टिकट मिलेगा. उसके बाद भी जीतने की 1% भी गारंटी नहीं.
कितना भी जनाधार बना लो टिकट खरीदने के लिए करोड़ों का चढ़ावा नहीं होगा तो सब व्यर्थ हो जायेगा. कोई धन पशु आएगा, पैसे फेंककर टिकट खरीदेगा और सांसद, विधायक, मंत्री बन जायेगा और तुम देखते रह जाओगे.
इस डगर में ठोकरों के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. जब तक तुम्हारे अंदर जोश और जुनून है, ये बड़े नेता तुम्हें अपने फायदे के लिए और भीड़ जुटाने के लिए इस्तेमाल करेंगे, फिर समय निकल जाने के बाद तुम न तो इधर के रहोगे न उधर के.
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