राजपूत काल से वर्तमान तक: 25% जीडीपी से 3.37% जीडीपी तक की समृद्धि की गिरावट

जहां कोई एक गज जमीन नहीं दे सकता, वहां राजपूत समाज का बलिदान और संघर्ष अनमोल हैं। 565 रियासतें, 43 गढ़, 18,700 किले, बल्कि 40 लाख एकड़ जमीन देकर भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने वाला भी राजपूत ही था।

भारत का इतिहास एक प्रेरणा है, जो हमें हमारे गौरवमयी अतीत और कठिन संघर्षों की याद दिलाता है। राजपूत काल वह स्वर्णिम समय था, जब भारत की आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य शक्ति पूरी दुनिया में पहचानी जाती थी। लेकिन आज, उस गौरव के कई पहलू धुंधले पड़ गए हैं, और यह बदलाव सिर्फ किसी एक वर्ग या समाज का नहीं, बल्कि हमारे देश की समग्र दिशा का परिणाम है।

राजपूत काल: समृद्धि का युग

जब राजपूतों ने देश के निर्माण में अपना योगदान दिया, तो भारत अपने समय की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्था था। वैश्विक जीडीपी में भारत का योगदान 25% था।

1. आर्थिक समृद्धि – व्यापार और उद्योग तेजी से बढ़े। भारतीय कारीगरी, मसाले, कपास और आभूषण दुनिया भर में प्रसिद्ध थे। भारत सोने और चांदी के भंडार से लैस था।

2. संस्कृति और कला – राजपूत किले, मंदिर, और स्थापत्य कला ने हमारे सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखा। संगीत, नृत्य, और शिल्पकला के वह अद्वितीय समय आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं।

3. सैन्य और शौर्य – राजपूतों के साहस और युद्ध कौशल ने भारत को कई युद्धों में विजय दिलाई। उनकी निष्ठा, साहस और समर्पण ने भारतीय सैन्य इतिहास को गौरवपूर्ण बना दिया।

राजपूत समाज की बदलती छवि

समय के साथ राजपूत समाज के खिलाफ कुछ गलत धारणाएं और नकारात्मक प्रचार फैलने लगे। इन प्रचारों ने समाज को अपनी पहचान छिपाने पर मजबूर कर दिया। पहले जहां समाज की स्थिति मजबूत थी, वहीं आज हमें कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

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आज का भारत: 3.37% जीडीपी योगदान

आज हम 3.37% की वैश्विक जीडीपी में योगदान दे रहे हैं, जबकि कभी भारत 25% जीडीपी में योगदान करता था। यह बदलाव हमारी दिशा के गलत मोड़ का परिणाम है।

समाज और देश के लिए एक नई शुरुआत की आवश्यकता

अब समय आ गया है कि हम अपने स्वाभिमान, संघर्ष और बलिदान को याद करें और फिर से उन मूल्यों को अपनाएं, जो हमें राजपूतों ने सिखाए। हमें अपने अतीत से प्रेरणा लेकर अपने समाज को फिर से सशक्त बनाना है, ताकि हम एक बार फिर उस समृद्धि, गौरव और सम्मान की ओर लौट सकें।

हम सभी को मिलकर एक नई शुरुआत करनी होगी, एक ऐसी शुरुआत जो हमारे देश और समाज को मजबूत और सशक्त बनाए।

इस पोस्ट का उद्देश्य किसी जाति या समाज के बीच कोई भेदभाव उत्पन्न करना नहीं है। मेरा मकसद केवल यह है कि हम सभी इस सच्चाई को समझें कि अपने स्वार्थ की पूर्ति और राजनीतिक लाभ के लिए राजपूत समाज को अनावश्यक रूप से बदनाम किया गया। वास्तव में, राजपूत वह थे जो अपने राज्य की सही दिशा और अपने लोगों की भलाई के लिए अपनी जान की बाजी लगाने से भी नहीं कतराते थे। वे वही वीर योद्धा थे जिन्होंने अपने राज्य और समाज के लिए शहादत दी, और जो किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटते थे।

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