Akhil Bharatiya Kshatriya Mahasabha History: अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत का सबसे पुराना क्षत्रिय संगठन है। अंग्रेजों के समय में ही इसकी शुरुआत हुई और तमाम राजा महाराजाओं ने इस संगठन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। हालांकि आगे चलकर इसी संगठन से टूटकर तमाम नए संगठन भी बने और कुछ ने मिलते जुलते नाम भी रख लिए लेकिन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत में आज भी क्षत्रियों का सबसे बड़ा संगठन है। तो आइए आज जानते हैं अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का इतिहास। (Akhil Bharatiya Kshatriya Mahasabha History)
Akhil Bharatiya Kshatriya Mahasabha History
बिहार के राजा खड़ग बहादुर मल्ल मझौली और ठाकुर रामदीन सिंह ठिकानेदार (विलासप्रेस बांकीपुर) ने तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के 1860 के सोसाइटी रजिस्ट्रेशन कानून की कुनीति को भांपते हुए 1862 में गठित अपंजीकृत क्षत्रिय हितकारिणी सभा ही 19 October 1897 में क्षत्रिय महासभा के रूप में पंजीकृत हुई। पुन: क्षत्रिय महासभा को भंग करके 1986 में अखिल भारतीय महासभा का गठन हुआ। परन्तु 113/147 सालों का समाज के श्रेष्ठ संगठनिक पुरुषों के पुरुषार्थ का संकलन पुस्तक के रूप में उपलब्ध नहीं है।
1857 के स्वतंत्रता के इतिहास का अहम् योगदान था क्षत्रिय सभा के निर्माण में। अंग्रेजी शासन काल में, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजों द्वारा क्षत्रियों के विरुद्ध अपनाई गई कलुषित नीति के विरुद्ध विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए एक खुली अघोषित क्रांति थी जिसका प्रमुख केंद्र बिंदु उत्तर भारत था। शुरुआत में इसके सूत्रपात्र के दो मुख्य श्रोत “सैनिक क्रांति” और “जन क्रांति” थे। इसके सूत्रपात्र का जिम्मा शुरुआती दौर में उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पंजाब (वर्तमान हरियाणा) तथा आँध्रप्रदेश के उत्पीड़ित क्षत्रिय शासकों ने उठाया था।
संयुक्त प्रान्त, आगरा एवं अवध में, बनारस के राजा चेत सिंह की फांसी, रुहेलखण्ड के क्षत्रिय सरदारों के प्रति ईस्ट इंडिया कंपनी की उपेक्षा पूर्ण नीति और दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफ़र के दो बेटों को दिल्ली में बीच मार्ग पर खड़ा करके गोली मारने की घटना ने आग में घी डालने का काम किया। साथ ही क्षत्रिय राजाओं को गोद लेने की प्रथा को समाप्त करने की लार्ड डलहौजी की घोषणा ने भी भीषण जनक्रांति को जन्म दिया ।
विकिपीडिया के अनुसार 1857 के विद्रोह के बाद कई तालुकदारों और राजपूत एस्टेट धारकों की स्थिति, जिन्होंने क्रांतिकारियों का समर्थन किया या उनके साथ भाग लिया, समझौता कर लिया गया। अंग्रेजों ने उनकी कई जमीनों और संपत्तियों को जब्त कर लिया और उन पर भारी जुर्माना लगाया गया।
कालाकांकर के प्रमुख राजा हनुमंत सिंह ऐसे ही एक तालुकदार थे, जिन्हें 1857 के विद्रोह का समर्थन करने के लिए उनकी कई संपत्तियों से बेदखल कर दिया गया था। राजा हनुमंत सिंह ने महसूस किया कि उनके समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे अन्याय और आवाज को उठाने के लिए एक अखिल भारतीय संगठन आवश्यक था। उन्होंने अवध के अन्य तालुकदारों के साथ मिलकर वर्ष 1857 में राम दल नामक संगठन की स्थापना की। 1860 में इसका नाम बदलकर क्षत्रिय हितकारिणी सभा कर दिया गया । इस प्रकार राजपूत समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा और उनके लिए लड़ने के लिए एक संगठन का गठन किया गया था।
क्षत्रिय महासभा क्षत्रिय हितकारिणी सभा का उत्तराधिकारी है, जिसका नाम कोटला के ठाकुर उमराव सिंह, कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह और भिंगा के राजा उदय प्रताप सिंह के साथ अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह के नेतृत्व में 1897 में क्षत्रिय महासभा रखा गया था। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा 19 अक्टूबर 1897 को अस्तित्व में आई, जिसने क्षत्रियों और राजपूतों के हितों को बढ़ावा देने के लिए एक मंच तैयार किया।
1898 में ‘राजपूत मासिक’ नामक एक समाचार पत्र शुरू किया गया। एसोसिएशन का पहला सम्मेलन आगरा के राजपूत बोर्डिंग हाउस में हुआ था। जम्मू और कश्मीर के महाराजा सर प्रताप सिंह ने लाहौर से पाक्षिक के रूप में राजपूत गजट नामक एक उर्दू प्रकाशन शुरू करने का प्रायोजन किया।
उस समय रियासतों के शासकों और बड़े ज़मींदारों का बोलबाला था और उन्होंने शिक्षा के लिए और क्षत्रिय समुदाय के छात्रों को प्राथमिकता देने के लिए अपने क्षेत्रों में विभिन्न स्कूल और कॉलेज शुरू किए।
हालाँकि, आज़ादी के बाद, उच्च क्षत्रिय जाति और उसके प्रभावशाली सदस्यों के लिए स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई। 1947 में भारत की आज़ादी के तुरंत बाद रियासतों को भारत संघ में मिला दिया गया और बाद में ज़मींदारी को भी समाप्त कर दिया गया और संघ दिशाहीन हो गया। हालाँकि, बिहार के एक प्रमुख राजपूत राजनेता बाबू राम नारायण की अध्यक्षता में, वर्ष 1955 में उज्जैन में बैठक हुई और संघ को पुनर्जीवित किया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की स्थापना के बाद से अब तक निम्न उल्लेखनीय व्यक्ति इस संगठन का नेतृत्व कर चुके हैं :-
- अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह – 1897
- महाराजा रामपाल सिंह (कालाकांकर)- 1899
- महाराजा प्रताप सिंह (जम्मू कश्मीर)- 1902 & 1913
- ले. कर्नल प्रताप सिंह (इदर)- 1903
- बीकानेर के जनरल महाराजा सर गंगा सिंह – 1904
- राजा कौशल किशोर सिंह (मझौली)- 1906
- राजा प्रताप बहादुर सिंह (प्रतापगढ़)- 1907
- सैलाना के महाराजा सर जसवन्त सिंह – 1911
- सैलाना के महाराजा ढालीप सिंह – 1920
- महाराजाधिराज सर नाहर सिंह जी (शाहापुरा)- 1922
- राव साहब गोपाल सिंह खरवा, अजमेर – 1924
- महाराजा सवाई सिंह जी (अलवर)- 1925
- महाराजा साहब सज्जन सिंह (रतलाम)- 1929
- सैलाना के महाराजा ढालीप सिंह – 1930
- महाराजा राम सिंह (ओरछा)- 1933
- कुंवर साहब सर विजय प्रताप सिंह (बागला)- 1940
- महाराजा राम रणविजय प्रताप सिंह बहादुर (डुमरांव)- 1941
- महाराजा कुमार विजय आनन्द (मोतिहारी)- 1942
- राजा कामाख्या नारायण सिंह (रामगढ़)- 1942 & 1953
- पन्ना के महाराजा यादवेन्द्र सिंह जूदेव – 1946
- अलवर के महाराजा सवाई तेज सिंह – 1947
- ठाकुर साहब कर्नल जोधपुर के मान सिंहजी भाटी – 1948
- बाबू राम नारायन सिंह (हजारीबाग)- 1955
- महाराजा लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर)- 1960
- सिंगरामऊ, जौनपुर के राजा श्रीपाल सिंह – 1986
- राजा डॉ. दिग्विजय सिंह (वाँकानेर)- 1997
- श्रीपाल सिंह (सिगरामऊ)- 2000
- पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिंह- 2004 से अब तक
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिंह हैं। 4 सितंबर 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्मे कुँवर हरिवंश सिंह ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक किया है। वे उत्तर प्रदेश की प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं। वे 2014 लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 16 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित किये गए थे। वे अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़े और विजयी हुए। उन्होंने बसपा के प्रत्याशी आसिफ निजामुद्दीन को 168222 वोटों के अंतर से हराया था। 74 वर्षीय कुंवर हरिवंश सिंह मुंबई के एक बड़े बिजनेसमैन भी हैं।
वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के सबसे सक्रिय पदाधिकारी राष्ट्रीय वरिष्ठ महामंत्री राघवेंद्र सिंह राजू हैं। इन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन को समर्पित कर दिया है। प्रतिदिन भारत के किसी न किसी स्थान पर कार्यक्रम करते हुए राघवेंद्र सिंह राजू देश भर के क्षत्रियों को एकजुट करने के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं। वे एक कुशल वक्ता होने के साथ ही क्षत्रियों के हितों के प्रति मुखर भी हैं और क्षत्रिय हित से जुड़े मुद्दों को प्रभावशाली तरीके से जनता और मीडिया के समक्ष रखने में भी सक्षम हैं।
राघवेंद्र सिंह राजू बताते हैं कि उन्हें जीवन में कई बार बड़े बड़े राजनैतिक दलों से ऑफर मिले लेकिन उनका उद्देश्य छात्र जीवन से ही राजनीति में न जाकर सिर्फ अपने समाज की लड़ाई लड़ने का रहा।